बाज़ार में हिंदी की हुंकार: एक भाषा की बढ़ती ताक़त

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 20-09-2025
Hindi roars in the marketplace: The growing power of a language
Hindi roars in the marketplace: The growing power of a language

 

sनवीन चौधरी

एक देश जहाँ सर्वाधिक हिंदी भाषी हैं वहाँ हम हिंदी पखवाड़ा मनाते हैं.हिंदी भाषी देश में पढ़ाई से लेकर नौकरी तक अंग्रेजी का बोलबाला है.हिंदी मध्य वर्ग की भाषा से खिसकते हुए निम्न आय वर्ग की भाषा बनने लगी लेकिन अब इस वर्ग में भी बच्चे अंग्रेजी माध्यम में पढ़ते हैं.

यह सब पढ़ते हुए यह चिंता उत्पन्न है कि हिंदी भाषा को बचाया कैसे जाये? इसी चिंता के बीच कुछ ऐसे आँकड़े हैं, कुछ ऐसी सच्चाईयां हैं जो बताती हैं कि हिंदी की ताकत कम नहीं हुई.अकादमिक लोग इसे कैसे भी देखें लेकिन बाजार हिंदी की इस ताकत को न सिर्फ पहचान रहा है बल्कि इस्तेमाल भी कर रहा है.

हिंदी: संस्कृति से आगे, बाज़ार की ताक़त

भारत में हिंदी अब केवल संवाद की भाषा नहीं रही, बल्कि धीरे-धीरे यह देश की सबसे प्रभावशाली आर्थिक और सांस्कृतिक शक्ति बनती जा रही है.53करोड़ से अधिक मातृभाषा बोलने वाले और 65करोड़ से अधिक लोगों द्वारा दूसरी या तीसरी भाषा के रूप में प्रयोग किए जाने के साथ हिंदी आज व्यवसाय, मीडिया और डिजिटल तकनीक की प्रमुख भाषा बन चुकी है.

हिंदी का सफ़र

उत्तर भारत की क्षेत्रीय बोली से शुरू होकर हिंदी ने राष्ट्रीय पहचान हासिल की और अब डिजिटल युग में यह नए शिखर छू रही है.इसकी सबसे बड़ी ताक़त है इसका अनुकूलन और अपनाने की क्षमता.यही कारण है कि सरकारी संस्थान, कंपनियाँ और कंटेंट क्रिएटर्स इसे प्राथमिकता दे रहे हैं.

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विज्ञापन और मीडिया की भूमिका

हिंदी के उत्थान में विज्ञापन उद्योग ने निर्णायक भूमिका निभाई है.जब बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भारतीय बाज़ार में आईं, उन्होंने ग्राहकों से उनकी भाषा में जुड़ने की ज़रूरत समझी.“ठंडा मतलब कोका-कोला” जैसे बहुचर्चित कैंपेन ने हिंदी के सांस्कृतिक भाव को इस्तेमाल किया और कोक को सीधा उपभोक्ता से जोड़ दिया.

आज हिंदी मीडिया विज्ञापन का सबसे बड़ा हिस्सा लेता है.2024में कुल ₹34000करोड़ रुपये के टीवी विज्ञापन खर्च में से 33%हिंदी के मनोरंजन चैनलों को मिला, जबकि अंग्रेज़ी चैनलों को महज़ ₹300–350करोड़। हिंदी समाचार और खेल चैनल को मिले विज्ञापन का आंकड़ा अलग है.प्रिंट मीडिया में भी हिंदी का दबदबा है—देश के टॉप 10अख़बारों में से 6हिंदी के हैं.

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डिजिटल दौर में हिंदी

डिजिटल क्रांति ने हिंदी को और मज़बूत किया है.हाल के वर्षों में हिंदी कंटेन्ट के उपयोग में 94%की वृद्धि दर्ज की गई.हिंदी बोलने, सुनने, देखने की प्रमुख भाषा है। गूगल पर 65%लोग अब वॉयस सर्च कर रहे हैं। इस आधार पर:

•              गूगल ने “प्रोजेक्ट वाणी” पहल से हिंदी वॉइस रिकग्निशन को मज़बूत किया.

•              अमेज़न पर हिंदी किताबों की बिक्री पाँच साल में 25%बढ़ी.

•              यूट्यूब और इंस्टाग्राम पर हिंदी कंटेंट क्रिएटर्स तेज़ी से उभरे.

ई-कॉमर्स, ऑनलाइन शिक्षा और सोशल मीडिया पर हिंदी इंटरफेस और लोकलाइजेशन अब कंपनियों की अनिवार्य रणनीति बन चुके हैं.

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चुनौतियाँ भी कम नहीं

हिंदी के बढ़ते प्रभाव के बीच कुछ गंभीर चुनौतियाँ भी सामने हैं। सबसे बड़ी चिंता युवाओं की लिखित हिंदी की कमजोर पकड़ है.राजस्थान जैसे राज्यों में अंग्रेज़ी माध्यम सरकारी स्कूलों का प्रयोग असफल रहा क्योंकि शिक्षक भी हिंदी में ही सहज थे.परिणामस्वरूप विद्यार्थी न तो हिंदी में दक्ष हो पाए, न ही अंग्रेज़ी में.तकनीकी बाधाएँ भी मौजूद हैं—तेज़ इंटरनेट और हिंदी डिजिटल टूल्स की कमी अब भी ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में महसूस की जाती है.

हिंदी बाज़ार की आर्थिक क्षमता

फिर भी हिंदी का आर्थिक बाज़ार लगातार फैल रहा है.

•              ई-कॉमर्स कंपनियाँ अब उत्पाद विवरण और सेवा सामग्री हिंदी में तैयार कर रही हैं.

•              हिंदी इन्फ्लुएंसर्स और यूट्यूबर्स ने लाखों दर्शकों को जोड़ा है, जिससे ब्रांड्स को नया प्लेटफ़ॉर्म मिला है.

•              हिंदी किताबों और साहित्य का बाज़ार भी मज़बूत हो रहा है.

ग़ौरतलब है कि ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में रहने वाले हिंदी उपभोक्ता अब डिजिटल माध्यम से सीधे जुड़ रहे हैं और उनकी क्रयशक्ति भी लगातार बढ़ रही है.

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भविष्य की राह

हिंदी के लिए संभावनाएँ अपार हैं.वॉइस-बेस्ड सर्च और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस जैसी तकनीकें इसे और सुलभ बनाएँगी। साथ ही, हिंदी पर गर्व और सांस्कृतिक जुड़ाव इसकी लोकप्रियता को और मज़बूत करेगा.हालाँकि, लिखित दक्षता और तकनीकी बाधाओं को दूर किए बिना हिंदी अपनी पूरी क्षमता तक नहीं पहुँच पाएगी.

शिक्षा नीति और डिजिटल निवेश यहाँ अहम भूमिका निभाएँगे.फिर भी एक बात साफ़ है—हिंदी केवल साहित्य और संस्कृति की भाषा नहीं रही, बल्कि यह भारत की आर्थिक प्रगति और डिजिटल भविष्य की भाषा बन चुकी है.आने वाले वर्षों में हिंदी सिर्फ़ संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि विकास का सबसे बड़ा साधन भी होगी.

(नवीन चौधरी, लेखकऔर संपादक)