झारखंड का पलामू प्रमंडल लंबे समय से गरीबी, बेरोजगारी और नक्सली गतिविधियों के कारण चर्चा में रहा है। जंगलों और पहाड़ों से घिरा यह इलाका अक्सर अभाव और पिछड़ेपन की तस्वीर पेश करता है। लेकिन इन्हीं हालातों में एक ऐसा इंसान खड़ा है, जिसने अपने संघर्ष और जज्बे से लोगों की सोच बदलने का काम किया। नाम है- सत्तार खलीफा, जिन्हें लोग प्यार से पेंटर जिलानी कहते हैं। आवाज द वॉयस की खास प्रस्तुति द चेंज मेकर्स सीरीज झारखंड की राजधानी रांची से हमारे सहयोगी जेब अख्तर ने पेंटर जिलानी पर यह विस्तृत न्यूज़ रिपोर्ट की है।
संघर्षों से गढ़ी पहचान
जिलानी का बचपन मुश्किलों से भरा रहा। पिता का साया बचपन में ही उठ गया था। परिवार को संभालते हुए उन्होंने किसी तरह बीए तक की पढ़ाई की। अभावों के बीच पढ़ाई आसान नहीं थी, लेकिन उनका मन किताबों से ज़्यादा लोगों की मदद करने में रमता था। यही वजह है कि आज वे विश्रामपुर की हर गली में ऐसे शख्स के तौर पर जाने जाते हैं, जो दूसरों की परेशानी में सबसे पहले साथ खड़ा मिलता है।
उनकी लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब इलाके में नक्सलियों और उग्रवादियों का गहरा प्रभाव था, तब भी वे बेखौफ डाल्टेनगंज तक का सफर करते थे। विश्रामपुर से 50 किलोमीटर दूर जिला मुख्यालय डाल्टेनगंज तक उनके आने-जाने में न तो नक्सली रोकते थे और न उग्रवादी पूछताछ करते थे। यह भरोसा और सम्मान उनकी पहचान की गवाही है।
पलामू और गढ़वा जिलों में गरीब, दलित, महादलित और हाशिए पर खड़े लोग उन्हें अपना सहारा मानते हैं। राशन कार्ड बनवाने की समस्या हो, पेंशन की लड़ाई हो या फिर पानी की परेशानी, हॉस्पिटल में इलाज कराना हो, जिलानी हर जगह मौजूद रहते हैं। जिलानी बताते हैं, वे अब तक 500 से ज़्यादा लोगों का राशन कार्ड बनवा चुके हैं और उतने ही परिवारों को पेंशन की सूची में शामिल करवा चुके हैं। खुद अभावों में जीते हुए भी वे जब किसी बुजुर्ग और दिव्यांग को पेंशन पाते देखते हैं, तो यह उनकी सबसे बड़ी जीत लगती है।
सामाजिक मुद्दों पर खुला मोर्चा
जिलानी बताते हैं, कुछ महीने पहले नगर परिषद क्षेत्र के सैकड़ों वृद्ध, विधवा और दिव्यांग लोगों को चार महीने तक पेंशन नहीं मिला था। भूख और लाचारी से परेशान लोग जिलानी के पास पहुंचे। उन्होंने पहले प्रशासन से निवेदन किया, लेकिन जब कोई सुनवाई नहीं हुई तो वे आमरण अनशन पर बैठ गए। कई दिनों तक चला संघर्ष आखिरकार रंग लाया और सरकार को पेंशन का भुगतान करना पड़ा।
इसी तरह विश्रामपुर में गर्मी आते ही पानी की किल्लत सबसे बड़ी समस्या बन जाती है। खराब पड़े चापाकलों और अधूरी टैंकर सप्लाई से लोग त्रस्त रहते हैं। जिलानी ने इस मुद्दे पर कई बार धरना-प्रदर्शन किया। जहां चापाकल खराब थे, वहां मरम्मत करवाई और जब तक दुरुस्त नहीं हुए, तब तक टैंकर से पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करवाई। उनकी मेहनत से कई इलाकों में स्थायी समाधान भी हुआ। भविष्य की ज़रूरतों को समझते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री से विश्रामपुर को अनुमंडल बनाने की मांग भी की है।
खास बात यह है कि इसके लिए जो मानचित्र झारखंड सरकार को सौंपा गया, वह खुद जिलानी ने तैयार किया है। पलामू का राशन सिस्टम लंबे समय से सवालों के घेरे में रहा है। डीलरों की तरफ से कम राशन देने की शिकायतें आम हैं। जिलानी ने इस पर भी मोर्चा खोला। उन्होंने बार-बार प्रदर्शन किए और कई लोगों को उनका हक दिलवाया। अब क्षेत्र के डीलरों को पता है कि अगर कोई गड़बड़ी होगी तो पेंटर जिलानी सीधे मैदान में उतरेंगे।
यही तेवर उन्होंने तब भी दिखाए जब विश्रामपुर और आसपास के सरकारी अस्पतालों में प्रसव के लिए 4000 रुपये तक वसूले जा रहे थे। यह पूरी तरह गैरकानूनी था। जिलानी ने भ्रष्ट चिकित्सकों के खिलाफ खुलकर लड़ाई लड़ी और आखिरकार जीत भी हासिल की। नतीजा यह हुआ कि आज किसी भी अस्पताल में इस तरह का भ्रष्टाचार नहीं होता।
प्रधानमंत्री आवास योजना के ब्रांड एंबेसडर
जिलानी की पहचान सिर्फ एक समाजसेवी की नहीं है। वो पेंटिंग करते हैं और इससे जो भी कमाई करते हैं, उसे भी लोगों की मदद में खर्च कर देते हैं। वे कहते हैं, उनके लिए कला साधन है, और समाज सेवा साध्य। बहरहाल, लंबे समय तक लगातार काम करने का असर यह हुआ कि प्रशासन ने भी उन्हें गंभीरता से लेना शुरू किया। हाल ही में उन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) का ब्रांड एंबेसडर बनाया गया। इसका मकसद उन लोगों को जागरूक करना है जो अब तक योजना का लाभ नहीं उठा पाए थे। यह सम्मान न केवल उनके लिए, बल्कि पूरे विश्रामपुर के लिए गर्व की बात है।
प्रशासन और जनता के बीच के पुल
चुनाव के समय जब नेता वोट मांगने आते हैं, जिलानी लोगों को याद दिलाते हैं कि असल विकास पंचायत और वार्ड स्तर पर होना चाहिए। नगर परिषद की नाकामियों पर वे लगातार सवाल उठाते हैं। खासकर पानी की समस्या और चापाकलों की मरम्मत पर उन्होंने इतना दबाव बनाया कि आखिरकार प्रशासन को जरूरी कदम उठाने पर विवश होना पड़ा।
जिलानी की पहचान केवल पलामू तक सीमित नहीं है। मददगार स्वभाव और संघर्षशील छवि ने उन्हें पड़ोसी जिले गढ़वा तक लोकप्रिय बना दिया है। चाहे स्वास्थ्य से जुड़ी दिक्कत हो या सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवाना हो, लोग गढ़वा से भी उनके पास मदद मांगने आते हैं।
कला, गीत और बदलाव की आवाज़
उनका एक और चेहरा है, कला और गीत का। वे अच्छे पेंटर हैं और साथ ही गीत भी लिखते और गाते हैं। इन गीतों में वे समाज की समस्याओं, अधिकारों और बदलाव की बात करते हैं। वे कहते हैं, “मेरे पास ऊंची डिग्रियां नहीं हैं, लेकिन जनता की तकलीफ मेरी सबसे बड़ी किताब है।”
पलामू और विश्रामपुर जैसे इलाके अक्सर गरीबी और बदहाली से पहचाने जाते हैं। लेकिन पेंटर जिलानी जैसे लोग इस अंधेरे में रोशनी की किरण बनते हैं। वे साबित करते हैं कि बदलाव केवल सरकार या नेताओं से नहीं आता, बल्कि ज़मीनी स्तर पर काम करने वाले जुनूनी लोगों से आता है। जिलानी की यही कहानी विश्रामपुर की पहचान है- एक ऐसी आवाज़, जो अभावों के बीच भी उम्मीद गढ़ रही है।