डॉ. फ़िरदौस ख़ान
गुरुवाणी यानी गुरबाणी का अर्थ है गुरु की बानी। सिखों के गुरुओं और गुरु ग्रंथ साहिब के अन्य रचनाकारों द्वारा रचित विभिन्न रचनाओं को गुरबाणी कहा जाता है। गुरबाणी और सूफ़ीवाद में बहुत समानताएं हैं। गुरबाणी सिख गुरुओं की शिक्षाओं से संबंधित है, जबकि सूफ़ीवाद इस्लाम पर आधारित है।
गुरु ग्रंथ साहिब में मुस्लिम संत हज़रत ख़्वाजा फ़रीदुद्दीन गंजशकर रहमतुल्लाह अलैह यानी बाबा फ़रीद और कबीर की रचनाएं भी शामिल हैं। इससे सहज की अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इनमें कितनी ज़्यादा समानताएं हैं।
तौहीद यानी एकेश्वरवाद
गुरबाणी और सूफ़ीवाद में एकेश्वरवाद पर ज़ोर दिया गया है। दोनों ही मानते हैं कि सृष्टि का निर्माता एक ही परमेश्वर है। उसी ने सृष्टि की रचना की है और इस सृष्टि में जो कुछ है, सब उसी ने बनाया है। दोनों ही मानते हैं कि सृष्टि की रचना एक नूर से हुई है। सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक कहते हैं-
ਅਵਲਿਅਲਹਨੂਰੁਉਪਾਇਆਕੁਦਰਤਿਕੇਸਭਬੰਦੇ॥
ਏਕਨੂਰਤੇਸਭੁਜਗੁਉਪਜਿਆਕਉਨਭਲੇਕੋਮੰਦੇ॥੧॥
अवलि अलह नूर उपाइआ कुदरति के सभ बंदे।।
एक नूर ते सभ जग उपाइआ कहुन भले को मंदे।।
अर्थात
अव्वल अल्लाह नूर उपाया क़ुदरत के सब बंदे।
एक नूर ते सब जग उपजा कौन भले कौन मंदे।।
अर्थात पहला नूर अल्लाह है। उसने अपनी क़ुदरत से सब जीवों को पैदा किया है। सभी जीव एक ही नूर से पैदा हुए हैं, इसलिए न कोई भला है और न कोई बुरा है। कहने का मतलब यह है कि सब एक समान हैं।
क़ाबिले-ग़ौर है कि क़ुरआन और गुरु ग्रन्थ साहिब में समानता की बात कही गई है, इसलिए सिख गुरु और सूफ़ी दोनों ही समानता की शिक्षा देते हैं। मस्जिदों, दरगाहों और गुरुद्वारों में धर्म, जात और अमीर-ग़रीब आदि का कोई भेदभाव नहीं किया जाता। यहां कोई भी आ सकता है।
अल्लामा इक़बाल कहते हैं-
एक ही सफ़ में खड़े हो गए महमूद ओ अयाज़
न कोई बंदा रहा, न कोई बंदा नवाज़
सूफ़ी मानते हैं कि अल्लाह ने अपने नूर से आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पैदा किया। फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नूर से कायनात की तामीर की। इस बारे में बहुत सी हदीसें हैं। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं-“अव्वला मा ख़लाख़ल्लाहु नूरी”
यानी अल्लाह तआला ने सबसे पहले मेरा नूर बनाया।
एक अन्य हदीस में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं- “अना मिन नूरिल्लाह वल ख़लका कुल्लु हुम मिन नूरी”
यानी मैं अल्लाह के नूर से हूं और कायनात की सारी चीज़ें मेरे नूर से बनाई गयी हैं।
परमेश्वर का अस्तित्व
परमेश्वर के अस्तित्व के बारे में जो बात क़ुरआन में कही गई है, वही बात गुरु ग्रन्थ साहिब यानी गुरबाणी में कही गई है। क़ुरआन करीम में अल्लाह तआला फ़रमाता है-
ऐ मेरे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तुम कह दो कि अल्लाह ही वाहिद है। अल्लाह सबसे बेनियाज़ है। अल्लाह न किसी का बाप है और न किसी का बेटा है। और न उसका कोई हमसफ़र है।
इसी तरह गुरु ग्रन्थ साहिब में गुरु नानक कहते हैं-
आदि सचु जुगादी सचु।
है भी सचु नानक होसी भी सचु।।
अर्थात गुरु नानक कहते हैं कि हे नानक! अकाल पुरख आरम्भ से ही अस्तित्व वाला है, युगों के आरम्भ से मौजूद है। इस समय भी मौजूद है और आगे भी मौजूद रहेगा।
परमेश्वर से प्रेम
गुरबाणी और सूफ़ीवाद में दोनों ही में परमेश्वर से प्रेम करने पर ज़ोर दिया गया है। परमेश्वर को पाने के लिए प्रेम को सर्वोत्तम मार्ग बताया गया है।
बाबा फ़रीद कहते हैं-
विरहा विरहा आखिए, विरहा हुं सुलतान
जिस तन विरहा ना उपजै, सो तन जान मसान।
अर्थात बाबा फ़रीद कहते हैं कि जो व्यक्ति परमेश्वर के विरह में नहीं तड़पता, उसका जीवन श्मशान की तरह सूना है।
इस बारे में संत कबीर कहते हैं-
जा घट प्रेम न संचरे, सो घट जान मसान।
जैसे खाल लुहार की, सांस लेतु बिन प्राण।।
अर्थात संत कबीर कहते हैं कि जिस हृदय में प्रेम नहीं होता, वह श्मशान के समान है। यह लोहार की धौंकनी की तरह है जो चलती तो है, लेकिन उसमें प्राण नहीं होते।
इस बारे में अमीर ख़ुसरो कहते हैं-
ख़ुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग।
तन मेरो मन पीउ को, दोउ भये एक रंग।।
अर्थात अमीर ख़ुसरो कहते हैं कि उनके सौभाग्य की रात बहुत अच्छी तरह से बीत गई। उसमें प्रियतम परमेश्वर का साथ मिला यानी उसके ज़िक्र में रात बीती। तन मेरा था, लेकिन मन प्रियतम परमेश्वर का था और दोनों एक ही रंग हो गए यानी उनमें कोई भेद नहीं रहा। परमेश्वर के ज़िक्र में जब बंदा खो जाता, तो फिर वह ‘वह’ नहीं रहता, बल्कि वही यानी परमेश्वर हो जाता है। यह प्रेम की इन्तिहा है, इबादत की इन्तिहा है।
संगीत का इस्तेमाल
गुरबाणी और सूफ़ीवाद दोनों में ही संगीत का ख़ूब इस्तेमाल किया जाता है। गुरु ग्रन्थ साहिब की बानी रागों पर आधारित है। सूफ़ी संगीत सुप्रसिद्ध है। हज़रत अमीर ख़ुसरो रहमतुल्लाह अलैह ने सितार और ढोलक जैसे वाद्य यंत्रों को ईजाद किया।
उन्होंने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की एक विधा तराना का भी आविष्कार किया। मारिफ़ुन्नग़मात के रचयिता राजा नवाब अली के मुताबिक़ तराना दिल्ली घराने के अमीर ख़ुसरो का ईजाद किया हुआ है। गुरुद्वारों में कीर्तन होता है और दरगाहों पर क़व्वालियां होती हैं।
कर्मकांडों और बाह्य आडम्बरों का विरोध
गुरबाणी और सूफ़ीवाद दोनों में ही प्रेम, पवित्रता और सादगी पर ज़ोर देते हुए कर्मकांडों व आडम्बरों का विरोध किया गया है। संत कबीर कहते हैं-
पोथी पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होय।।
अर्थात संत कबीर कहते हैं कि दुनिया ने बड़ी-बड़ी किताबें पढ़-पढ़कर जीवन बिता दिया, लेकिन कोई भी विद्वान नहीं बन पाया। जो व्यक्ति प्रेम के ‘ढाई अक्षर’ का वास्तविक अर्थ समझ लेता है, वही सच्चा विद्वान बन जाता है।
गुरु का महत्व
गुरबाणी और सूफ़ीवाद दोनों में गुरु को बहुत महत्व दिया गया है। इस्लाम में गुरु का बहुत ऊंचा स्थान है। इस बारे में बहुत सी हदीसें हैं। गुरु का आदर-सम्मान करना शिष्य पर अनिवार्य है। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं- “वह हमारी उम्मत में से नहीं है, जो बड़ों की इज़्ज़त न करे और छोटों पर मेहरबानी न करे और आलिम का हक़ न पहचाने. (मुसनद, तबरानी, हकीम)
इस बारे में संत कबीर कहते हैं-
गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, का के लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोविन्द दियो बताय।।
अर्थात संत कबीर कहते हैं कि अगर गुरु और गोविन्द दोनों एक साथ खड़े हों तो पहले गुरु के चरणों में प्रणाम करना चाहिए, क्योंकि उन्होंने ही गोविन्द से मिलाने का मार्ग दिखाया है।
(लेखिका आलिमा हैं और उन्होंने फ़हम अल क़ुरआन लिखा है)