द्विवेदी युगः राष्ट्रचेतना और साहित्य से जन-जुड़ाव का कालखंड

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 11-09-2025
Dwivedi era: A period of national consciousness and people's connection with literature
Dwivedi era: A period of national consciousness and people's connection with literature

 

dडॉ.संजीव मिश्र

कच्चा घर जो छोटा सा था,

पक्के महलों से अच्छा था।

पेड़ नीम का दरवाजे पर,

सायबान से बेहतर था।

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की कविता 'प्यारा वतन' की ये पंक्तियाँ हमें सौ साल से भी पहले ले जाती हैं.वह बीसवीं सदी की शुरुआत थी.हिंदी साहित्य में वैविध्य के बीच सुधार, भाषा-शुद्धि और आदर्शवाद पर जोर दिया जा रहा था.उस काल खंड में सरस्वती पत्रिका के संपादक महावीर प्रसाद द्विवेदी के नेतृत्व में हिंदी में खड़ी बोली के अधिपत्य पर जोर दिया गया और समग्र रूप से देश में हिंदी और हिंदी साहित्य को आम जनता तक पहुँचाने की मुहिम चली.

1900 से 1920के बीच के उस साहित्यिक कालखंड का नामकरण तो आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर द्विवेदी युग पड़ा, किंतु इस दौर में उन्हें मैथिलीशरण गुप्त, अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध, रामनरेश त्रिपाठी, श्रीधर पाठक आदि का भी भरपूर साथ मिला.

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी

द्विवेदी युग में राष्ट्रीय चेतना और सामाजिक सुधार पर भी पूरा जोर दिया गया.इस कालखंड में साहित्य पर आदर्शवाद का प्रभुत्व भी स्थापित हुआ.भारत के स्वर्णिम अतीत के साथ देशभक्ति, सामाजिक सुधार और स्वभाषा-प्रेम भी इस युग की कृतियों में स्पष्ट दिखता है.

ऐसा नहीं था कि शृंगार को इस युग में महत्व नहीं दिया गया, किंतु नीतिवादी विचारधारा के कारण शृंगार का वर्णन मर्यादित हो गया.हाँ, इस युग में कथा-काव्य का विकास भी खूब हुआ.यह वह दौर था, जब अंग्रेज़ों का तांडव चरम पर था.

dजनता में असंतोष और क्षोभ की भावना प्रबल थी और ब्रिटिश शासक लोगों का आर्थिक-मानसिक-शारीरिक सोशण कर रहे थे.देश में स्वाधीनता सेनानी पूर्ण स्वराज्य की माँग कर रहे थे.ऐसे में इस काल के साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं से देश की दुर्दशा का चित्रण करने के साथ देशवासियों को आज़ादी प्राप्ति के लिए प्रिरत भी किया.

इसके परिणाम स्वरूप देश में राजनीतिक व भाषाई चेतना के साथ आर्थिक चेतना भी जाग्रत हुई.स्वयं महावीर प्रसाद द्विवेदी की लिखी ये पंक्तियाँ इसका प्रमाण हैः

बल दो हमें ऐक्य सिखलाओ

संभलो देश होश में आओ

मातृ भूमि सौभाग्य बढ़ाओ

मेटो सकल क्लेश।।

द्विवेदी युग के कालखंड में जब राजनीतिक चेतना बढ़ रही थी और सांस्कृतिक पुनरुत्थान मूर्त रूप ले रहा था.इस कारण राष्ट्रीयता का भाव द्विवेदी युग के साहित्य का मुख्य केंद्रबिंदु बन गया.भारत के अतीत पर गर्व के साथ देशभक्ति से ओतप्रोत रचनाएँ सामने आईं.

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स्वदेशी का भाव भी जाग्रत किया गया.मैथिली शरण गुप्त की कृति ‘भारत-भारती’ स्वतंत्रता संग्राम में बेहद चर्चित व प्रभावी सिद्ध हुई तो स्वयं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने राष्ट्रकवि की संज्ञा दी थी.भारत के लिए वे कहते हैः

हरा-भरा यह देश बना कर विधि ने रवि का मुकुट दिया

पाकर प्रथम प्रकाश जगत ने इसका ही अनुसरण किया

द्विवेदी युग में आदर्शवादी और नीतिपरक साहित्य की रचना हुई.असत्य पर सत्य की विजय का भाव कविताओं का हिस्सा बना और स्वार्थ-त्याग, कर्तव्यपालन, आत्मगौरव आदि ऊँचे आदर्शों की प्रेरणा दी गई है.

मैथिलीशरण गुप्त की कृति ‘साकेत’, अयोध्या सिंह उपाध्याय  ‘हरिऔध’ की कृति ‘प्रियप्रवास’ और रामनरेश त्रिपाठी की ‘मिलन’ ऐसी ही रचनाएँ हैं.हरिऔध ने तो कृष्ण को भी ईश्वर के रूप में न दिखाकर आदर्श मानव व लोकसेवक के रूप में चित्रित किया.वे लिखते हैः

विपत्ति से रक्षण सर्वभूत का, सहाय होना असहाय जीव का।

उबारना संकट से स्वजाति का, मनुष्य का सर्व प्रधान धर्म है।

द्विवेदी युग में आमजन को साहित्य का विशय बनाया गया.सामान्य मनुष्य के सुख-दुख को सहज भाव से प्रस्तुत कर साहित्य को उनसे जोड़ा गया.मैथिली शरण गुप्त की ’किसान’, सियारामशरण की ’अनाथ’ और गया प्रसाद शुक्ल ‘सनेही’ की ’कृषक क्रंदन’ इसी श्रेणी की रचनाएँ हैं.सनेही जी ने किसानों की समस्याओं पर लिखने के साथ देशभक्ति का आवेग सहेजे गीत भी लिखे.उनकी उनकी एक कविता 'स्वदेश' का यह छंद आज भी जोश ला देता हैः

जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं।

वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।।

यह दौर प्राकृतिक सौंदर्य और समाज सुधार के लेखन के लिए भी याद किया जाता है.इस युग में जीवन से जुड़े सभी विषयों पर साहित्य लिखा गया.साथ ही स्वच्छंद काव्यधारा का प्रवर्तन भी हुआ.इसी युग के कवि श्रीधर पाठक के लेखन में पर्यावरण से प्रेम भी साफ दिखाई देता है.अपनी एक कृति ‘भारत धरनि’ में वे लिखते हैः

सेत हिमगिरि, सुपय सुरसरि, तेज-तप-मय तरनि

सरित-वन-कृषि-भरित-भुवि-छवि-सरस-कवि-मति-हरनि

बंदहुँ मातृ-भारत-धरनि

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श्रीधर_पाठक

द्विवेदी युग को साहित्य के नवजागरण काल भी कहा जाता है.इस युग का साहित्य खड़ी बोली को भाषा-सौंदर्य व कोमलता के साथ विचारों या भावों को ठीक तरह से स्पष्ट रूप से प्रकट करता है.इस काल में अभिव्यंजना की क्षमता भी समृद्ध हुई.

द्विवेदी युग ने साहित्य को इस तरह दिशा दी, कि इसके बाद शुरू हुए छायावाद युग को विस्तार के लिए स्तंभ से मिल गए.द्विवेदी युग व छायावादी युग के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में देखे जाने वाले रामनरेश त्रिपाठी ने अपनी एक रचना में ईश्वर से धन-समृद्धि की जगह ज्ञान और दुर्गुणों को दूर करने की अभिलाषा व्यक्त कीः

हे प्रभो! आनंददाता ज्ञान हमको दीजिए।

शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए।

लीजिए हमको शरण में हम सदाचारी बनें।

ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रत-धारी बनें॥

(डॉ संजीव मिश्र, कमिशनिंग एडिटर, पेंगुइन -स्वदेश)