जब संघ प्रमुख मुसलमानों के बीच पहुँचे: लखनऊ से निकला एक अहम संदेश

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 13-12-2025
When the RSS chief reached out to Muslims: An important message emerged from Lucknow.
When the RSS chief reached out to Muslims: An important message emerged from Lucknow.

 

आवाज़ द वॉयस | नई दिल्ली

“पहले ज़मीन तैयार करनी होती है, फिर उस पर चला जाता है। संघ के सौ साल के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है। अब इसे प्रांत स्तर तक ले जाना है। आज मैं आपके बीच आया हूँ, आगे संघ के अन्य प्रमुख लोग भी आपसे संवाद करेंगे।”ये शब्द राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत के हैं, जो उन्होंने 23 नवंबर को लखनऊ में मुसलमानों के एक विशेष कार्यक्रम में कहे।

यह कार्यक्रम इंटरफेथ हार्मनी फाउंडेशन ऑफ इंडिया के बैनर तले आयोजित हुआ था, जिसकी अध्यक्षता डॉ. ख्वाजा इफ्तिखार अहमद ने की। करीब एक महीना बीस दिन पुराने इस कार्यक्रम का वीडियो अब सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है। मीटिंग ऑफ माइंड्स द्वारा जारी इस वीडियो में शिया धर्मगुरुओं समेत लगभग 100 इस्लामिक स्कॉलर्स की मौजूदगी दिखाई देती है।

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वीडियो के डिस्क्रिप्शन में दावा किया गया है कि यह लखनऊ का एक ऐतिहासिक क्षण था, जब RSS प्रमुख मोहन भागवत ने सभी पाँच प्रमुख इस्लामी विचारधाराओं-हनफ़ी, मालिकी, शाफ़ई, हंबली और जाफ़री का प्रतिनिधित्व करने वाले सौ से अधिक वरिष्ठ मुस्लिम विद्वानों को संबोधित किया। 23 नवंबर 2025 को आयोजित इस कार्यक्रम को भारत के इतिहास में पहली बार RSS और मुस्लिम विद्वानों के बीच खुले, आमने-सामने संवाद के रूप में प्रस्तुत किया गया।

कार्यक्रम में 100 से अधिक उलेमा, बुद्धिजीवी और समुदाय के नेता आपसी सम्मान और समझ के माहौल में एकत्र हुए। मुख्य भाषण सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने दिया, जबकि फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. ख्वाजा इफ्तिखार अहमद ने अपने शुरुआती संबोधन से संवाद का माहौल बनाया। लखनऊ के समन्वयक प्रोफेसर शकील किदवई ने शहर की ओर से अतिथियों का स्वागत किया।

डॉ. भागवत ने अपने भाषण में कहा कि हिंदू-मुसलमानों के बीच मौजूद हज़ार साल पुरानी गलतफहमियाँ एक झटके में दूर नहीं हो सकतीं। इसके लिए धैर्य और निरंतर प्रयास की ज़रूरत है; जल्दबाज़ी में किया गया काम बिगड़ भी सकता है। उन्होंने कहा कि संघ के सौ वर्ष पूरे होने के अवसर पर वे विभिन्न जगहों पर व्याख्यान दे रहे हैं और इसी क्रम में आज मुसलमानों के बीच आए हैं।

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उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि जब वे इस कार्यक्रम में आने वाले थे, तब कुछ लोगों ने दिल्ली बम धमाकों का हवाला देकर उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने इसे नज़रअंदाज़ किया। “यहाँ बैठे लोग कोई आतंकवादी थोड़ी हैं, जिनसे मिलने मैं आया हूँ,” उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा।

डॉ. भागवत ने इतिहास की ओर इशारा करते हुए कहा कि भारत पर समय-समय पर कई आक्रमण हुए, विभिन्न धर्मों के लोग यहाँ आए, जिससे सदियों से आपसी गलतफहमियाँ बनी रहीं। अंग्रेज़ों ने न सिर्फ़ इन गलतफहमियों का दुरुपयोग किया, बल्कि उन्हें और बढ़ाया। “इन्हें दूर करना हम सबकी साझा ज़िम्मेदारी है। संघ का दर्शन यही है,भारत तभी विश्व का नेतृत्व करेगा, जब हम एक होंगे,” उन्होंने कहा। उन्होंने संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के विचारों का हवाला देते हुए कहा कि आज का संघ उसी दर्शन को आगे बढ़ा रहा है।

उनका कहना था कि भारत में रहने वाला हर व्यक्ति,जो खुद को हिंदू, हिंदवी या भारतीय मानता है असल में एक ही है, बस अभिव्यक्ति के तरीके अलग-अलग हैं। उन्होंने कहा कि पहले संघ ने हिंदुओं और सनातन परंपरा के मानने वालों को संगठित किया, जिससे समाज मजबूत हुआ और आज उनकी बात सुनी जा रही है। “अब हम दूसरे समुदायों के बीच जा रहे हैं। पूजा पद्धतियाँ अलग हो सकती हैं, लेकिन हम 144 करोड़ लोग भारतीय हैं,” उन्होंने जोर देकर कहा।

मॉब लिंचिंग के मुद्दे पर डॉ. भागवत ने स्पष्ट किया कि यह संघ का दृष्टिकोण नहीं है। यदि संघ से जुड़ा कोई व्यक्ति ऐसे कृत्य में शामिल पाया जाता है, तो संगठन उसका समर्थन नहीं करता। “ऐसे मामलों में हम लोगों को कानून का सहारा लेने की सलाह देते हैं। संघ का नजरिया लड़ाने का नहीं, जोड़ने का है,” उन्होंने कहा।

केंद्र की बीजेपी सरकार पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि संघ का सरकार से कोई सीधा संबंध नहीं है, हालांकि संघ से जुड़े कुछ लोग सरकार में हैं, जिनके माध्यम से संघ की बातें वहां तक पहुँच जाती हैं। लेकिन राजनीति वोटों से चलती है, इसलिए सरकार फैसले भी उसी गणित को देखकर करती है। उन्होंने मुसलमानों की ओर इशारा करते हुए कहा कि कई बार समुदाय की बातें सरकार तक पहुँचाई गईं कुछ मानी गईं, कुछ नहीं।

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संघ में मुसलमानों को जोड़ने के सवाल पर उन्होंने कहा कि एकता के साथ ही सभी समस्याओं का समाधान संभव है, लेकिन यह प्रक्रिया भी धीरे-धीरे ही आगे बढ़ेगी।उन्होंने दोहराया, “हड़बड़ी में काम बिगड़ जाता है,” 

हालांकि, इस वायरल वीडियो को लेकर आलोचनाएँ भी तेज़ हैं। कमेंट बॉक्स में जहाँ कुछ लोग डॉ. भागवत के विचारों का समर्थन कर रहे हैं, वहीं विरोध करने वालों की भी कमी नहीं। कुछ टिप्पणियों में डॉ. ख्वाजा इफ्तिखार अहमद और जफर सरेशवाला का नाम लेकर कार्यक्रम को ‘प्रायोजित’ बताया गया। एक यूज़र ने लिखा, “पहले जफर सरेशवाला और अब ख्वाजा इफ्तिखार अहमद,दोनों ही प्रायोजित कार्यक्रमों के आयोजक हैं। हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और।”

एक अन्य टिप्पणी में आरोप लगाया गया कि RSS अपने गुप्त एजेंडे का प्रचार कर रहा है और समझदार लोग इसके छिपे उद्देश्यों को पहचान सकते हैं। टिप्पणीकार के अनुसार, “हमारा नारा ‘विविधता में एकता’ था, लेकिन अब इसे ‘विविधता से एकता’ में बदला जा रहा है। यह अलग-अलग समुदायों,मुसलमान, ईसाई आदि की पहचान को नकारता है और सांस्कृतिक पहचानों को मिटाने की कोशिश करता है। यही इसका असली एजेंडा है।”

इस तरह, लखनऊ का यह कार्यक्रम जहाँ एक ओर संवाद और सामंजस्य की नई पहल के रूप में देखा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर यह गहरे राजनीतिक और वैचारिक विवादों का केंद्र भी बन चुका है।