गुलाम कादिर
आज दुनिया एक ऐसे दौर में पहुँच चुकी है जहाँ रील और सेल्फी का जुनून हर समझदारी पर भारी पड़ता नज़र आता है। हाल ही में एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें एक शव के पास खड़े लोग सेल्फी ले रहे थे। यह दृश्य बताता है कि अब इंसान परिस्थिति, संवेदना और माहौल की कोई परवाह नहीं करता। यही हालत धार्मिक स्थलों पर भी देखने को मिलती है। इबादत की जगहें जहाँ शांति, तल्लीनता और आध्यात्मिकता का अनुभव होना चाहिए, वहाँ लोग मोबाइल कैमरा लेकर रील और फोटो बनाने में लगे रहते हैं। सऊदी अरब ने इसी बदलते व्यवहार और बढ़ते अव्यवस्था को देखते हुए हज 2026 के लिए मक्का की मस्जिद अल-हरम और मदीना की मस्जिद अन-नबवी के अंदर किसी भी तरह की फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का बड़ा निर्णय लिया है।

यह प्रतिबंध पहले भी कई बार लगाया गया था, लेकिन इस बार इसे बेहद सख्ती से लागू किया जाएगा क्योंकि पिछले वर्षों में आगंतुकों ने नियमों की अनदेखी करते हुए धार्मिक स्थानों को सोशल मीडिया कंटेंट का माध्यम बना दिया था। सऊदी अधिकारियों का कहना है कि इस निर्णय के पीछे कई गंभीर कारण हैं।
सबसे बड़ा कारण यह है कि फोटो और वीडियो बनाने की लगातार कोशिशों से मस्जिदों का पवित्र माहौल प्रभावित हो रहा था। काबा के सामने इबादत की बजाय लोग लगातार पोज़ देते और वीडियो शूट करते दिखने लगे थे। ऐसे दृश्य न केवल स्थान की गरिमा को कम करते हैं, बल्कि अन्य लोगों की तल्लीनता भी तोड़ते हैं।

दूसरा बड़ा कारण सुरक्षा है। मस्जिद अल-हरम और मस्जिद अन-नबवी दुनिया के उन धार्मिक स्थलों में हैं जहाँ हर क्षण लाखों लोग मौजूद रहते हैं। इन भीड़ों में जब लोग अचानक फोटो लेने के लिए रुक जाते हैं, तो धक्का-मुक्की, जाम और हादसों की स्थिति बन जाती है। सुरक्षा कर्मियों ने कई बार ऐसी हरकतों को गंभीर जोखिम बताया है, विशेष रूप से ब्लैक स्टोन, काबा, रौदा और मस्जिदों के प्रवेश द्वारों पर।
तीसरी बड़ी समस्या प्राइवेसी का उल्लंघन है। हर साल विभिन्न देशों से लाखों लोग हज और उमरा के लिए आते हैं। इन लोगों में से कई नहीं चाहते कि उनकी तस्वीरें या वीडियो किसी अजनबी के मोबाइल कैमरे से सोशल मीडिया पर पहुँच जाएँ।
लेकिन आज की डिजिटल दुनिया में बिना अनुमति की रिकॉर्डिंग आम बन चुकी है, जिससे शिकायतें बढ़ती जा रही थीं। चौथी बात धार्मिक गरिमा की है। सऊदी सरकार के अनुसार मस्जिद अल-हरम और मस्जिद अन-नबवी मनोरंजन, शूटिंग या सोशल मीडिया प्रदर्शन के लिए नहीं, बल्कि शुद्ध इबादत के लिए हैं। इसलिए इन स्थानों को कंटेंट बनाने का मंच बनाना उनकी पवित्रता के खिलाफ है। पिछले वर्षों में कई बड़े सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर यहाँ व्लॉग शूट करते हुए देखे गए, जिसमें आसपास मौजूद लोग असहज महसूस करते थे।
पिछले कुछ वर्षों के अनुभवों ने इस प्रतिबंध को और आवश्यक बना दिया। 2017 में पहली बार इस संबंध में औपचारिक रोक लगाई गई थी। 2024 और 2025 में मंत्रालय ने कई बार तीर्थयात्रियों को सेल्फी और वीडियो से बचने की हिदायत दी, लेकिन अधिकांश लोग इस पर ध्यान नहीं देते थे। 2025 में रोक को मीना, अराफात और मुज़दलिफा तक भी बढ़ाया गया। इसके बाद सरकार ने तय किया कि 2026 के हज सीजन में इसे पूर्ण और अनिवार्य रूप से लागू किया जाए।
लेकिन इस प्रतिबंध के अपने फायदे और नुकसान दोनों हैं। फायदे की बात करें तो पहला लाभ यह है कि मस्जिदों का रूहानी और शांतिपूर्ण माहौल वापस लौटेगा। लोग इबादत पर ध्यान देंगे, न कि मोबाइल कैमरे पर। भीड़भाड़ में कमी आएगी क्योंकि लोग फोटो लेने के लिए अचानक नहीं रुकेंगे। इससे आवाजाही सुचारू होगी और हादसों का खतरा कम होगा।
प्राइवेसी की सुरक्षा मज़बूत होगी और किसी की तस्वीर बिना अनुमति सोशल मीडिया पर नहीं पहुँचेगी। धार्मिक स्थानों की गरिमा भी बनी रहेगी, क्योंकि यह जगहें शोहरत पाने या सोशल मीडिया कंटेंट बनाने के लिए नहीं हैं। इसके अलावा, सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर भी रोक लगेगी, क्योंकि कई लोग अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए मस्जिदों के अंदर वीडियो बनाते थे।

दूसरी ओर, इस प्रतिबंध से कुछ चुनौतियाँ भी सामने आएँगी। सबसे बड़ी कमी यह है कि लोग अपनी हज यात्रा की यादें तस्वीरों के रूप में संजो नहीं पाएंगे। बहुत से लोग जीवन में पहली बार हज करते हैं और चाहते हैं कि वे उस पल को कैमरे में कैद करें। कई ऐसे बुजुर्ग भी होते हैं जिन्हें शायद दोबारा हज करने का मौका नहीं मिलता। उनके लिए यह प्रतिबंध थोड़ा दर्दनाक महसूस होगा।
इसके अलावा, इतने बड़े पैमाने पर इस नियम को लागू करना आसान नहीं होगा। लाखों लोगों के बीच यह देखना कि कौन मोबाइल निकाल रहा है, सुरक्षा टीमों के लिए चुनौती रहेगा। कुछ लोग इस प्रतिबंध को धार्मिक आज़ादी में दखल के रूप में भी देख सकते हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि यह आदेश सुरक्षा और पवित्रता बनाए रखने के लिए है। साथ ही, तीर्थयात्री अब अपनी व्यक्तिगत तस्वीरों की जगह पूरी तरह आधिकारिक रिकॉर्डिंग पर निर्भर होंगे, जो हर किसी की आवश्यकता पूरी नहीं कर पाएगी।

क्रिकेटर इरफान और यूसुफ पठान परिवार के साथ हज और उमराह के दौरान. सभी तस्वीरें सोशल मीडिया से
फिर भी, यह कहना गलत नहीं होगा कि हज का असली उद्देश्य दिखावा, प्रदर्शन या सोशल मीडिया पर वायरल होना नहीं है। हज का मकसद है अल्लाह की इबादत, तौबा, सब्र और आत्मिक शुद्धि। कैमरे से दूरी शायद इस अनुभव को और गहरा बनाएगी। इसका मतलब यह नहीं कि यादें बनाना गलत है, परंतु इबादत की जगहों पर उसका तरीका और समय मायने रखता है। यदि सऊदी सरकार भविष्य में नियंत्रित या निर्धारित फोटो-ज़ोन बनाए, तो यह दोनों पक्षों के लिए संतुलित समाधान हो सकता है।
लेकिन काबा, रौदा और मस्जिद के भीतर पूर्ण प्रतिबंध पूरी तरह उचित और आवश्यक कदम है।अंततः यह निर्णय लाखों लोगों की सुरक्षा, पवित्रता और आध्यात्मिक अनुभव की रक्षा के लिए लिया गया है। अब यह तीर्थयात्रियों की ज़िम्मेदारी है कि वे इस नियम को सम्मान से स्वीकार करें और हज को उसकी असल रूहानी भावना के साथ पूरा करें।