एक स्पेशल चाइल्ड की मां की डायरी - दो
अगर इन चार सालों में तक्ष ने मुझे कुछ सिखाया है, तो वो ये है कि एक ऑटिस्टिक बच्चे की परवरिश सिर्फ उसे समझने भर की बात नहीं है—बल्कि ये दुनिया का सामना करने की कहानी भी है.ये उन नजरों की बात है, उन फ़िज़ूल की सलाहों की जो कभी माँगी ही नहीं गईं, और उन भारी चुप्पियों की, जो शब्दों से कहीं ज़्यादा कह जाती हैं.
मुझे आज भी वह दिन याद है,जब तक्ष को सार्वजनिक जगह पर मेल्टडाउन(घबराहट में चिल्लाना)हुआ था.हम सुपरमार्केट में थे.रोशनी तेज़ थी. भीड़ बहुत ज़्यादा थीऔर किसी का मोबाइल रिंगटोन बजा जिसने उसे पूरी तरह से परेशान कर दिया.
वह अचानक रोने लगा, चीखने लगा, लात मारने लगा, बुरी तरह से बेचैन हो गया.मैं उसके पास घुटनों पर बैठ गई, वो सब किया जो मैंने सीखा था—धीमे स्वर में बात करना, गहरी सांसें लेना, धैर्य रखना.
लेकिन हमारे आसपास नज़रों का एक दायरा बन गया.कुछ लोग फुसफुसा रहे थे.एक महिला ने अनुशासन पर कुछ कहा.दूसरी ने मुंह बनाकर कहा, “इनके बच्चे को कोई दिक्कत है.” और ऐसे चली गई जैसे हमसे दूरी बनाना ज़रूरी हो.
उस दिन मैं घर लौटते वक्त रोती रही.तक्ष के मेल्टडाउन(घबराहट में चिल्लाना)की वजह से नहीं, बल्कि लोगों की प्रतिक्रिया की वजह से.उन्होंने एक परेशानी में डूबे बच्चे को नहीं देखा.उन्होंने सिर्फ बदतमीजी देखी.उन्होंने मेरी कोशिशों को नहीं देखा.बस मेरी नाकामी महसूस की.
तब से मैं थोड़ी मज़बूत हो गई हूं.लेकिन सच कहूं, तो गलत समझे जाने की वो टीस कभी पूरी तरह जाती नहीं.क्यों इतना मुश्किल है कि लोग सतह के नीचे देखने की कोशिश करें? क्यों हम सभी बच्चों को एक जैसे साँचे में ढालने की कोशिश करते हैं, जबकि कोई भी बच्चा एक जैसे साँचे में बना ही नहीं?
मैं चाहती हूँ कि लोग समझें—ऑटिज़्म कोई शर्म की बात नहीं.ये कोई त्रासदी नहीं है.ये सिर्फ दुनिया को देखने और महसूस करने का एक अलग तरीका है.तक्ष भले ही आपकी आंखों में आंखें डालकर न देखे, लेकिन वो आपको देखता है.अपने ही तरीके से. एक खूबसूरत खामोशी में.
वो अभी बोलता नहीं, लेकिन मुझे सब कुछ कह देता है.अपनी आँखों से, अपने हाथों से, हमारे रोज़मर्रा के रूटीन में थिरकते हुए.वो सब कुछ देखता है जो हम में से कई लोग नहीं देख पाते.दीवार पर पड़ती परछाइयों की दिशा, पंखे की सटीक रफ्तारऔर एक पत्ते का बाकी पत्तों से पहले मुड़ जाना.
वो पूरे दिल से प्यार करता है. गहराई से महसूस करता है.दुनिया के दिए हर डर से बेखबर पूरी तरह भरोसा करता है.क्या ये सब सराहे जाने लायक नहीं?
मुझे किसी की दया नहीं चाहिए.मुझे समझ चाहिए.मुझे लोगों से ये नहीं चाहिए कि वे मेरे बेटे को “सह लें”—मुझे चाहिए कि वे उसे देखें, सच में देखें, और उसे अपनाएं.
अगर मैं हर शिक्षक, हर कैशियर, हर पार्क में मिलने वाले माता-पिता से कुछ कह सकूं, तो मैं बस इतना कहूंगी:वो अपने तरीके से सामान्य है—‘सबका अपना-अपना नॉर्मल होता है’.
कृपया, बच्चे के मेल्टडाउन पर जज न करें.ये खराब परवरिश नहीं .ये एक बच्चा है, जो अपनी पूरी कोशिश कर रहा है, एक ऐसी दुनिया में जहाँ सब कुछ बहुत तेज़, बहुत तेज़, बहुत ज़्यादा है.
दयालु बनिए!भले ही वो आपके जवाब का वैसा जवाब न दे, जैसा आप उम्मीद करते हैं, लेकिन आपकी मेहरबानी उस पर असर डालती है.धैर्य रखिए!आँखों से मिलना, शब्दों से जुड़ना, भावनाओं से रिश्ता बनाना—ये सब कुछ अलग तरीके से आता है। लेकिन जब आता है, तो वो जादू से कम नहीं होता.
अपने बच्चों को सिखाइए। उन्हें सवाल पूछने दीजिए.उन्हें तक्ष के साथ खेलने दीजिए.उन्हें ये सिखाइए कि अलग होना गलत नहीं होता—वो बस अलग होता है.
मेरे सबसे दिल को छू लेने वाले पलों में से एक वह था जब एक पड़ोसी के छोटे बेटे ने अपनी माँ से पूछा, “तक्ष क्यों नहीं बोलता?” माँ ने उसे चुप नहीं कराया.उसने बस कहा,“वो अपने तरीके से बात करता है.तुम्हें बस सीखना होगा कि उसे कैसे सुनना है.”
ना कोई असहजता, ना कोई डर—बस एक सहज स्वीकार्यता.
यही दुनिया मैं चाहती हूँ—परफेक्ट नहीं, पर दयालु !
एक ऐसी दुनिया जहाँ तक्ष स्कूल जा सके बिना किसी ‘लेबल’ के.
जहाँ वो बस खुद होकर जी सके. बिना ये साबित करने की ज़रूरत कि वो कैसा है.
जहाँ ऑटिज़्म को छिपाया नहीं जाता या “ठीक” नहीं किया जाता—बल्कि समझा और अपनाया जाता है.
एक माँ के रूप में, मैं उसे दुनिया से छुपाना नहीं चाहती.मैं चाहती हूँ कि वो इसमें जी सके. इसे जान सके,.इससे जुड़ सके.लेकिन ये तभी मुमकिन है जब दुनिया भी थोड़ा आगे बढ़कर उसका स्वागत करे.
तो अगर आप कभी मेरे जैसे किसी बच्चे को देखें—जो शायद हाथ नहीं हिलाता, खुशी में अपने हाथ फड़फड़ाता है, या जब दुनिया बहुत शोरगुल वाली हो जाए तो रोने लगता है—तो नज़रें फेरिए मत.
फुसफुसाइए मत। बस मुस्कुरा दीजिए.
जिज्ञासु बनिए, आलोचक नहीं.सवाल कीजिए, मानकर मत चलिए.क्योंकि उस पल के पीछे एक पूरी कहानी होती है, जिसे सुना जाना बाकी होता है.और उस बच्चे के पीछे, ज़्यादातर बार, एक माँ होती है—मेरे जैसी—जो अपनी पूरी ताकत से सबकुछ संभाले हुए है.हमेशा ये उम्मीद रखती है कि एक दिन दुनिया उसके बच्चे को वैसे देखेगी, जैसे वो है.
अगली बार तक,एक माँ—जो अब भी दयालुता पर यकीन रखती है.
सपना
( एक क्रिएटिव राइटर)
जारी.....
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