पहनावाः जींस है सदा के लिए

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 20-11-2021
जींस है सदा के लिए
जींस है सदा के लिए

 

आवाज विशेष । पहनावा   

मंजीत ठाकुर

जींस न तो कभी फैशन से बाहर गया था और न शायद निकट भविष्य में इसके फैशन से बाहर होने का कोई अंदेशा है. जींस पैंट की खासियत यही है कि इसको किसी भी कपड़े के साथ मैच करके पहना जा सकता है. हिंदुस्तान में खासतौर पर जींस पैंट ने चूड़ी-बिंदी और नवविवाहितों के हाथ में मौजूद चूड़ा के साथ इस लिबास ने अपनी खास सांस्कृतिक फ्यूजन के दर्शन कराए हैं. फिर क्या कमीज, क्या कुर्ता और क्या ही टी-शर्ट, जींस हर पहनावे के साथ फिट बैठ जाता है.

जींस के बारे में मशहूर है कि यह धरती पर सबसे अधिक पहना जाने वाला कपड़ा है. एक वक्त था कि जींस मजदूर और नाविक पहना करते थे लेकिन आज फिल्मी परदे पर नमूदार होने वाले नायकों से लेकर नेता तक, पत्रकारों से लेकर कामगार तक, हर किसी के पास जींस होता है और वे इस बड़े चाव से पहनते भी हैं.

  जींस टिकाऊ होता था और इसलिए कामगारों में प्रचलित था 


जीन्स का नाम सुनते ही आपके जेह्न में एक लफ्ज गूंजता होगा और वह है ‘डेनिम’. क्या आपको पता है कि यह शब्द कहां से आया? डेनिम शब्द आया है डि नाइम्स बल्कि और सही कहें तो Serge de Nîmesसे. जो फ्रांस का एक शहर है. यही नेम्स वह शहर है जहां पर खेस जैसी बिनाई वाला ये कपड़ा बुना जाना शुरू किया गया था.

आर्थिक इतिहासकार और अर्थशास्त्री अनिंद्य सेनगुप्ता कहते हैं, “18वीं शताब्दी में इटली के जेनोआ में बनाए जाने वाले सर्ज या खेस(मोटे कपड़े) या कॉर्डरॉय की तरह ही नेम्स के वर्कर्स ने भी बनाने की कोशिश की. कॉर्डराय एक तरह का मोटी बिनाई का सूती कपड़ा होता है. यह कपड़ा इटली के शहर जेनेवा के मजदूरों और फौजियों के बीच बहुत पॉपुलर था और उस समय जेनेवा से जिनिस शब्द बना और उससे बना जीन्स. वे लोग वैसा ही कपड़ा तो नहीं बना पाए, लेकिन एक नए प्रकार का फैब्रिक जरूर बना दिया. जिसका नाम उन्होंने ‘Serge de Nîmes’ रखा. बाद में इस नाम को छोटा करके डेनिम रख दिया. इस तरह डेनिम का आविष्कार हुआ.”

   डेनिम कपड़ों शुरू में सिर्फ नीले रंग के होते थे


इस मोटे कपड़े में ताना दो बानाओं के बीच से यानी वेफ्ट दो वार्प धागों के बीच से गुजारा जाता है.

 सेनगुप्ता के मुताबिक, “लगभग सभी ऐसे डेनिम कपड़े इंडिगो यानी नील में रंगे जाते थे. असल में, नील में रंगे जाते थे वार्प थ्रेड यानी कपड़े की लंबाई वाले धागे और वेफ्ट यानी चौड़ाई वाले धागे सफेद ही रखे जाते थे. इससे डेनिम कपड़ों मे एक तरफ तो नीला रंग दिखता था लेकिन दूसरी तरफ सफेद ही होता था.”

सेनगुप्ता बताते हैं कि जींस की आविष्कार का रिश्ता भारत से भी है. वह कहते हैं, “असल में, डेनिम कपड़ों को नीला रंग देने के लिए उसे नील में रंगा जाता था और नील की खेती होती थी भारत में. और इस तरह ब्लू डेनिम के साथ ब्रिटिश कनेक्शन यह भी था. यानी नील के जरिए ब्रिटेन और भारत का रिश्ता भी है.” 

काउबॉयज फिल्मों ने जींस को लोकप्रियता दी, तस्वीरः टॉम मिक्स फिल्म 'द अनटेम्ड' (1920)


1851 में, लेवी स्ट्रॉस जर्मनी से न्यूयॉर्क आए. उनके भाई का कपड़ों का ही बिज़नेस था. दो साल वहां उन्होंने अपने भाई के साथ काम किया. वह सैन फ्रांसिस्को चले गए. वहां जाकर उन्होंने सूखे फैब्रिक के साथ कॉटन के कपड़े भी बेचना शुरू कर दिया.

सेनगुप्ता के मुताबिक, “आधुनिक जींस या धातु के रिवेट्स या बटनों के साथ डेनिम पैंट की खोज कैलिफोर्निया में की गयी थी जब एक दर्जी जैकब डेविस ने खदानों में काम करने वाले मजदूरों के लिए इस तरह की पैंट बनानी शुरू की. जल्द ही, डेविस ने अपनी दुकान के लिए कपड़े की आपूर्ति करने वाले लेवी स्ट्रॉस के साथ साझेदारी में 20 मई, 1873 को अपने खास किस्म के पतलून के लिए एक ट्रेड मार्क हासिल कर लिया.”

जैकब ने इन पेंट्स को मजबूत बनाने के मकसद से इनमें तांबे की कील (रिवेट्स) लगाने का फैसला किया. यह कील ऐसी जगह लगाई जाती थी जहां से पैंट के फटने का सबसे ज्यादा खतरा होता है. जैसे -पॉकेट आदि.

डेनिम का कपड़ा बनाने के लिए दो या उसे ज्यादा धागों के ताने बाने से बुनना होता था. जहां एक धागे का एक ताना ‘नील’ से रंगा होता था, वहीं दूसरा ताना सफ़ेद या किसी और रंग से रंगा होता. जीन्स के शुरुआती समय में इसे या तो बहुत मेहनत करने वाले माइनर पहनते थे या फिर ‘काऊबॉय’. समय के साथ यह धीरे-धीरे पोलो खेलने वाले लोगों के बीच भी बहुत मशहूर हो गई. यही वजह है आज के समय में भी पोलो खिलाड़ी प्रैक्टिस के समय ब्लू जींस पहनते हैं और मैच खेलने के लिए सफ़ेद जीन्स को पहनते हैं.

हालांकि इसे 1960 के दशक तक ओवरऑल कहा जाता था, बाद में बेबी बूमर्स ने उन्हें 'जीन्स' कहना शुरू कर दिया था. बेबी बूमर्स उस जनरेशन को कहा जाता है जो 1946 से 1964 के बीच पैदा हुई थी.

सेनगुप्ता बताते हैं, “जैकब डेविस और लेवी स्ट्रॉस ने जो पेटेंट कराया था वह 1890 के दशक में खत्म हो गया और तब तक ब्लू डेनिम ओवरऑल अमेरिकी कामकाजी वर्ग का यूनिफॉर्म बन चुका था. पहले विश्वयुद्ध के दौरान ली यूनियन आल्स जीन्स सभी अमेरिकी सैन्य कर्मियों के लिए मानक पोशाक में शामिल हो चुका था.”

1920 और 1930 के दशक में, हॉलीवुड के हैंडसम काउबॉयज जैसे कि गैरी कूपर ने ब्लू डेनिम ट्राउजर्स पहनने शुरू कर दिए थे.

जीन्स के मशहूर होने की एक बड़ी वजह रही हॉलीवुड की फिल्में. हॉलीवुड फिल्मों के हीरोज की रफ और टफ छवि के लिए जींस फिट बैठती थी. लेकिन इसका श्रेय सबसे पहले जाता है जेम्स डीन को. 1955 में, जेम्स की फिल्म ‘रिबेल विदाउट अ कॉज’में उन्होंने टी-शर्ट, एक चमड़े का जैकेट और जीन्स पहनी थी. यह फिल्म काफी हिट रही और जींस भी. 

क्लिंट ईस्टवुड ने फिल्मों में जींस पहनी थी (तस्वीरः फिल्म फॉर अ फ्यू डॉलर्स मोर (1965) का एक दृश्य


यह फिल्म पहले ब्लैक एंड व्हाइट बननी थी लेकिन बाद में स्टूडियो ने इसको रंगीन बनाने का फैसला किया था. डीन की जीन्स को जान-बूझकर और भी डार्क बनाया गया ताकि लोगों का ध्यान उसकी तरफ जाए. और ऐसा ही हुआ. जींस अमेरिका के किशोरों में बहुत लोकप्रिय हो गई.

इससे पहले 1953 में मार्लिन ब्रांडो ने भी जीन्स को काफी चर्चित किया था. उन्होंने अपनी फिल्म 'द वाइल्ड वन' में पूरे समय इसे पहनकर रखा है. महिलाओं के बीच जींस को लोकप्रिय बनाने का श्रेय जाता है मर्लिन मुनरो को.   

जीन्स के साथ पब्लिक के रोमांस की ये शुरुआत थी.

दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान, यानी 1939 से 1945 के बीच, अमेरिकी फौजियों ने अपने ड्यूटी के बाद के समय में पहने जाने वाले ब्लू ओवरऑल्स से दुनिया का परिचय कराया. और इस के बाद डेनिम के विश्वविजय की यात्रा की शुरुआत हुई. 1930 के दशक तक, जिंजर रोजर्स समेत हॉलीवुड के कई आइकॉन डेनिम पैंट्स पहनने लगे थे और इससे जीन्स के पहनावे को महिलाओं के बीच भी लोकप्रियता मिल गई और यह फैशन स्टेटमेंड बनने लगा.

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साठ के दशक में लिवाइस जींस का एक विज्ञापन


सेनगुप्ता कहते हैं, “मर्लिन ब्रांडो भी रील और रीयल लाइफ में जीन्स पहनते थे. विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद 1950 के दशक में, डेनिम की पतलूनें अमेरिकी युवाओं के लिए छुट्टियों में पहनने वाला पसंदीदा लिबास बन गया था. मर्लिन ब्रांडो और जेम्स डीन जैसे सितारों को जीन्स पहनता देखकर भी यह क्रेज बढ़ता गया.”

सेनगुप्ता के मुताबिक, “1960 के दशक में हिप्पियों और वियतनाम युद्ध के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे युवाओं का पहनावा डेनिम ही होता था. अब हम जिसे जीन्स कहते हैं, उन दिनों डेनिम का वो ट्राउजर विरोध प्रदर्शनों की वरदी की तरह बन गई थी.”

बाद में सत्तर के दशक के बाद के सालों में और अस्सी के दशक में फटी या डेस्ट्रॉएड जीन्स भी काउंटर कल्चर ट्रेंड या सांस्कृतिक मुखालफत के चलन के तौर पर उभरी. इग्गी पॉप्स, सेक्स पिस्टल और मडोना जैसे सिलेब्रिटीज ने फटी हुई जींस को प्रचलित कर दिया.

सत्तर के दशक के खत्म होते होते, जीन्स ने फैशन की दुनिया पर परचम लहरा दिया था. 1976 में केल्विन क्लेन पहले टॉप डिजाइनर रहे जिन्होने रैंप पर डेनिम को जगह दी. 1981 में जब 15 साल के ब्रूक शील्ड्स ने यह ऐलान किया, और ये ऐलान बहुत मशहूर रहा कि उनके और उनकी जीन्स के बीच कुछ नहीं होता तो ये बात फैशन की दुनिया में खूब उछली थी.

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 स्टेजकोच (1939) के सेट पर जॉन वेन


भारत में जीन्स का आना सत्तर के दशक में हो पाया. फिल्म शोले जो 1975 मे रिलीज हुई थी उसमें अमिताभ बच्चन डेनिम पहने दिखते है. लेकिन अस्सी के दशक तक शहरी मध्यमवर्ग के टीनेजर अपने विदेश में रहने वाले रिश्तेदारों पर ही डेनिम पैंट के लिए निर्भर रहते थे. भारतीय बाजारों में लिवाइस, ली या रैंगलर के आने से पहले हम सब न्यू पोर्ट, रफ ऐंड टफ या एक्सकैलिबर जीन्स ही पहना करते थे और इनमें से अधिकतर ब्रांड श्री अरविंद मिल्स के हुआ करते थे. 1990 के दशक तक यह कंपनी दुनिया में डेनिम के सबसे बड़ी उत्पादक थी.

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हिंदी फिल्मों में परदे पर अमिताभ सबसे पहले डेनिम पहने दिखते हैं. तस्वीरः शोले (1975)


पश्चिमी दुनिया की ही तरह 1990 के दशक में भारत में भी जीन्स लोकतांत्रिक पहनावे के तौर पर उभरा, जिसमें फैशन का यह ट्रेंड सामाजिक बाधाओं और बाध्यताओं, जेंडर और अमीरी-गरीबी से परे था. पश्चिमी दुनिया में जीन्स के ट्रेंड में बीच बीच में बदलाव भी आए लेकिन भारत में हम कब क्लासिक फिट से बैगी से लो वेस्ट और फिर से फिटेड क्लासिक लुक में लौट आए हैं इसका हमें पता भी नहीं चला.

हिंदुस्तान में जींस में कुछ खासियतें भी जुड़ीं, जैसे कि एसिड वॉश्ड या रिप्ड वैराइटीज या फिर लड़कियों के लिए कशीदे वाली जीन्स.

हिंदुस्तान में जींस के साथ हर तरह की परंपराएं का फ्यूज़न हुआ है. चूड़ियों और बिंदियों के साथ साथ कुरती तक. जो भी हो, जीन्स ने पहनावे को एक बराबरी का लुक दिया है. और अब ये हमारे पहनावे के सबसे अहम हिस्सों में से एक है.