यासमीन बानो
विवाह, निकाह, शादी समारोह, ये सभी नाम विवाह बंधन और उस से जुड़े उत्सव के लिए उपयोग किए जाते हैं. शादी फारसी शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है खुशी और खुशी का इजहार . संस्कृत में इसके लिए विवाह शब्द का प्रयोग होता है. अरबी में इसके लिए एरोस शब्द . मुसलमानों ने इन सभी शब्दों और रिवाजों को बहुत उदारता से अपनाया है.
देश के अलग-अलग हिस्से में शादी विवाह के कई रस्म ओ रिवाज भिन्न होते हैं, लेकिन मूलरूप से शादी को किसी भी देश, संस्कृति या धर्म में प्रचलित वह रिवाज है जिसके माध्यम से एक पुरुष और एक महिला के बीच कानूनी, धार्मिक और शारीरिक संबंध स्थापित होते हैं.
रिश्ता चाहे माता-पिता द्वारा कायम किया जाए, चाहे लड़का लड़की इसे स्वयं के पसंद से करना चाहे या ऑनलाइन संबंध वेबसाइटों के माध्यम से हो , विवाह का मुख्य उद्देश्य किसी की नैतिकता की रक्षा करना और समाज को बुराई से बचाना है.
दूसरा उद्देश्य एक व्यक्ति के जीवन में दूसरे व्यक्ति की भागीदारी और मदद करना है. इसके अलावा विवाह सुख-सुविधा प्राप्त करने और मानव जाति की निरंतरता को जारी रखने का भी एक साधन है.समाज चाहे कोई भी हो, शादी और रिश्ता ढूंढने का तरीका एक जैसा है.
आप किसी भी वर्ग से हों, आपका परिवार आपके लिए रिश्ता ढूंढता है. यदि लड़का या लड़की किसी को पसंद करते हैं, तो परिवार रिश्ता आगे बढ़ा देता है. यह प्रचलन बहुत समय से लोकप्रिय है. हमारे देश में इसे बहुत बाद में स्वीकृति मिल.
हमारे समाज में विवाह की कई रस्में प्रचलित हैं, जिनमें उबटन मलाई, मेंहदी लगाना, दुल्हन बनाई, जोड़ा पहनाई, जूता चुराई , डोला छेकाई, मुंह दिखाई जैसी कई रस्में हैं.इनके अलावा, कुछ स्व-निर्मित और उद्देश्यहीन रिवाज हैं जिन्हें बेमानी माना जा सकता है.जहां तक पोशाकों की बात है, तो ये कई प्रकार के होते हैं, जिनमें उबटन, मेहंदी, शादी, शहाने और दूसरे जोड़े शामिल हैं.
कई लोगों ने इन रीति-रिवाजों को व्यक्तिगत और पारिवारिक अहंकार भी बना लिया है. यदि कोई दूल्हा, दुल्हन या उनके परिवार के सदस्य इन रीति-रिवाजों से छुटकारा पाना चाहें, तो उन्हें गरीबी और बेईमानी के ताने भी सुनने पड़ते हैं. ‘तुम हमारी नाक काट दो,’ ‘यदि तुम मेंहदी जैसी रस्मों पर खर्च करने की औकात नहीं थी, हमें बता देते, हम सब आपकी मदद करते, कम से कम नाक तो नहीं कटती’, जैसे ताने सुनने पड़ते हैं.
मांझा यानी हल्दी की रस्म
मुसलमानों में जितने भी समुदाय हैं, उन सभी के अपने-अपने विशिष्ट और अलग-अलग रीति-रिवाज हैं. शादी से पहले, सगाई की रस्म के बाद तरह-तरह की रस्में निभाई जाती हैं जिसमें हल्दी की रस्म लगभग सभी जगह आम है.
यह शादी की एक ऐसी रस्म है जिसमें शादी से कुछ दिन पहले दुल्हन पीली पोशाक पहनकर बैठती और उसके बदन पर हल्दी का उबटन लगाया जाता है. अधिकांश परिवारों में दुल्हन को चटाई पर बैठाकर हल्दी लगाई जाती है.
इस अवसर पर दूल्हे के घर से हल्दी आती है और शादी से कुछ दिन पहले एक विशेष समारोह में दुल्हन को लगाई जाती है. समय और परिस्थितियों के साथ इन समारोहों में बदलाव आए हैं. पहले हल्दी समारोह शादी से कम से कम एक सप्ताह पहले आयोजित किया जाता था.
उस दिन दुल्हन को उसकी पीली पोशाक पर हल्दी लगाई जाती थी. इस अवसर पर उपहार देना भी आम बात है. समय के साथ इसमें वृद्धि देखी गई है. सहेलियां या पेशेवर गायक ढोल की थाप पर गीत गाते हैं और नृत्य करते हैं.
इस दिन के बाद से दुल्हन घर से बाहर नहीं निकलती. केवल घर के कुछ खास लोग ही उसे देख पाते है. इस दौरान घर से बाहर निकलना अच्छा शगुन नहीं माना जाता.पुराने जमाने में भारत में शादी तय होने के बाद दुल्हन का घर ही रीति-रिवाजों का केंद्र होता था.
महीनों तैयारी होती थी. उबटन पीसने की रस्म से लेकर चावल चुनने, गेहूं की सफाई-पिसाई की रस्म तक. गांव की महिलाएं चावल चुनने के साथ गीत भी गाती थीं. कई जगहों पर, विभिन्न रिश्तेदारों से चावल आते थे. बारात और घर मेहमानों की खातिरदारी के लिए तैयार किए जाते थे. शादी से पहले घर की पुताई जरूर होती है.
इसी तरह मेहंदी की रस्म और संगीत भी है. मेहंदी समारोह आमतौर पर शादी से एक दिन पहले आयोजित किया जाता है ताकि दुल्हन का रंग निखर कर सामने आए. मेहंदी की रस्म में जहां दूल्हे के घर से आई मेहंदी दुल्हन के हाथों पर सजाई जाती है, वहीं दुल्हन की सहेलियां भी अपने हाथों पर मेहंदी लगाती हैं. कई परिवारों में इस रस्म के दौरान मिरासी के गीत-संगीत का भी प्रोग्राम चलता है.
रास्ता रोकाई की रस्म
कुछ शादियों में यह रिवाज होता है. जब दूल्हा-दुल्हन विदा होकर अपने कमरे में जाने लगते हैं तो दूल्हे की बहनें उनका रास्ता रोक लेती हैं. बहनों की मांग होती है कि उन्हें मुंह मांगी रकम अदा की जाए. उसके बाद ही बहनें दूल्हा-दुल्हन को कमरे में जाने का रास्ता देती हैं.
परंपराओं के मुताबिक, जब दूल्हा दुल्हन को लेने आता है तो दुल्हन की सहेलियां उसके रास्ते में दीवार बन जाती हैं. दुल्हन की सहेलियां दूल्हे का रास्ता छोड़ने के बदले न केवल पैसे लेती हैं, उनकी पसंद के गीत भी ससुनाती हैं.
मुँह दिखाई
शादी के मौके पर पत्नी को उपहार देने की परंपरा किसने शुरू की, यह तो कोई नहीं जानता. मगर आम तौर पर जीवन की शुरुआत के इस मौके पर हर व्यक्ति अपनी पत्नी को एक यादगार उपहार देना चाहता है. यह रिवाज मुसलमानों में आम है.
कुछ लोग इस मौके पर महंगे गहने और कार या मोबाइल आदि गिफ्ट करते हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने अपने अनोखे तोहफों से न सिर्फ अपनी दुल्हन को इम्प्रेस किया है बल्कि खबरें भी बनाई हैं.