International Plastic Bag Free Day: आपकी सेहत को इस तरह खा रहा है प्लास्टिक!

Story by  अर्सला खान | Published by  [email protected] | Date 03-07-2025
International Plastic Bag Free Day: This is how plastic is eating away your health!
International Plastic Bag Free Day: This is how plastic is eating away your health!

 

आवाज द वॉयस/नई दिल्ली 

 
प्लास्टिक ने हमारे जीवन को जितनी सुविधा दी, उतनी ही खामोशी से यह हमारी सेहत के लिए एक गंभीर खतरा बन चुका है. आज हम जिस हवा में सांस ले रहे हैं, जो पानी पी रहे हैं, जो खाना खा रहे हैं — उसमें सूक्ष्म कणों के रूप में प्लास्टिक मौजूद है. चिंता की बात यह है कि यह प्लास्टिक अब सीधे हमारे शरीर में प्रवेश कर रहा है, और हमें कई तरह की बीमारियों की ओर धकेल रहा है.
 
प्लास्टिक का इतिहास: सुविधा से संकट तक

प्लास्टिक की शुरुआत 20वीं सदी के आरंभ में एक औद्योगिक चमत्कार के रूप में हुई थी. 1907 में बेकलाइट नामक पहला सिंथेटिक प्लास्टिक विकसित किया गया। फिर 1950 के दशक में इसका उपयोग तेज़ी से बढ़ा. यह सस्ता था, टिकाऊ था और हर जगह इस्तेमाल किया जा सकता था — पैकेजिंग, बर्तन, खिलौने, गाड़ियाँ, कपड़े, दवाइयों तक में.
 
 
 
लेकिन जिस चीज़ को हमने अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बना लिया, वह समय के साथ एक ऐसी सामग्री बन गई जो सड़ती नहीं, घुलती नहीं, और अंततः हमारे पर्यावरण और शरीर तक पहुंचने लगी.
 
शरीर में कैसे घुस रहा है प्लास्टिक?

आज प्लास्टिक के कण हर जगह हैं — इन्हें माइक्रोप्लास्टिक और नैनोप्लास्टिक कहा जाता है. ये कण इतने छोटे होते हैं कि हमारी आँखों से दिखाई नहीं देते, लेकिन ये हमारी खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर चुके हैं. वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि एक व्यक्ति हर हफ्ते औसतन 5 ग्राम प्लास्टिक निगल रहा है, जो कि एक क्रेडिट कार्ड के वजन के बराबर है.
 
खाद्य पदार्थों के माध्यम से

प्लास्टिक की बोतलों में पानी स्टोर करने पर माइक्रोप्लास्टिक उसमें घुलने लगते हैं. समुद्री जीव-जंतु, जैसे मछलियाँ और झींगे, समुद्र में फैले प्लास्टिक को निगल जाते हैं और जब हम उन्हें खाते हैं, तो वह प्लास्टिक हमारे शरीर में पहुंचता है. खाने को प्लास्टिक कंटेनर में गर्म करने पर भी रसायन भोजन में मिल जाते हैं.
 
हवा के जरिए

हमारे घरों में मौजूद सिंथेटिक कपड़े, फर्नीचर, प्लास्टिक की वस्तुएं हवा में महीन प्लास्टिक रेशे छोड़ती हैं। हम इन्हें सांस के साथ अंदर ले जाते हैं.
 
त्वचा और सौंदर्य उत्पादों के माध्यम से

कई फेस वॉश और स्क्रब में मौजूद छोटे-छोटे एक्सफोलिएटिंग बीड्स असल में प्लास्टिक होते हैं। त्वचा के माध्यम से यह शरीर में प्रवेश कर सकते हैं.
 
प्लास्टिक शरीर में जाकर क्या करता है?

आंतों की दीवार में जमा हो सकते हैं, जिससे सूजन, पाचन समस्याएं और इम्यून सिस्टम पर असर हो सकता है. कुछ अध्ययनों में यह भी पाया गया है कि प्लास्टिक कण रक्त प्रवाह और हृदय प्रणाली तक पहुंच सकते हैं. हार्मोनल असंतुलन, गर्भवती महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य पर असर, और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के लिए भी ये जिम्मेदार हो सकते हैं.
 
WHO ने लोगों को चेताया?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), संयुक्त राष्ट्र और कई वैज्ञानिक संस्थानों ने बार-बार चेतावनी दी है कि प्लास्टिक का बढ़ता उपयोग न केवल पर्यावरण, बल्कि मानव स्वास्थ्य पर भी सीधा हमला है. 2023 में हुए एक वैश्विक अध्ययन में पहली बार मनुष्य के फेफड़ों, लिवर और रक्तप्रवाह में माइक्रोप्लास्टिक पाए गए थे, जिसने पूरी दुनिया को चौंका दिया था.
 
 
 
समाधान क्या है?

सिंगल यूज प्लास्टिक से बचना सबसे पहला कदम है.
स्टील, कांच और मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करें.
पानी की बोतलें और खाना प्लास्टिक कंटेनर में स्टोर न करें.
फैशन में सिंथेटिक कपड़ों की जगह प्राकृतिक रेशों का उपयोग करें.
फेसवॉश और कॉस्मेटिक्स खरीदते समय जांचें कि उनमें माइक्रोबीड्स न हों.
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Disclaimer : प्लास्टिक ने हमें सस्ती और टिकाऊ जिंदगी दी, लेकिन अब यही प्लास्टिक हमारे शरीर में ज़हर बन चुका है. यह ज़रूरी है कि हम व्यक्तिगत स्तर पर प्लास्टिक से बचने के प्रयास करें, और सरकारों पर भी इसका व्यापक उपयोग रोकने का दबाव डालें. याद रखिए, हम जिस प्लास्टिक को आज फेंक रहे हैं, वह कल हमारे शरीर में लौट रहा है.