असली हिंदुस्तान की झलक है- मिले सुर मेरा तुम्हारा

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 13-05-2021
पंडित भीमसेन जोशी (वीडियो ग्रैब)
पंडित भीमसेन जोशी (वीडियो ग्रैब)

 

आवाज विशेष/ नॉस्टेल्जिया     

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली    

बात अस्सी के दशक के उत्तरार्ध की है. 1988 की. उन दिनों, जब बिजली कम आया करती थी और अधिकतर टीवी कार्यक्रमों के लिए घरों में बैटरियों का चार्ज करके रखने का काम घर के सबसे जिम्मेदार नौजवान को दिया जाता था, बात तभी की है. किसी अहम कार्यक्रम के ऐन पहले एक गाना बजता था, एक ऐसा गीत जो विविधता से भरे हिंदुस्तान में बिना जोर-शोर की नारेबाजी के, बिना धूम-धड़ाके के देशभक्ति का जज्बा जगाता था. इस गीत में पूरी हिंदुस्तानियत थी और था पूरा हिंदुस्तान.

यह देश का अनाधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय गीत बन गया था, मिले सुर मेरा तुम्हारा.

याद आया? सुनहरे बैकग्राउंड में निकलता हुआ सूरज और वह समंदर की उछाल मारती लहरों में डिजॉल्व होता जाता है. फिर एक जलप्रपात नमूदार होता है और परदे पर दिखते हैं अपनी भारी आवाज के साथ राग भैरवी साधते, पंडित भीमसेन जोशी.

मिले सुर मेरा तुम्हारा

तो सुर बने हमारा..

सुर की नदियां हर दिशा से,

बहके सागर में मिले...

बादलों का रूप लेकर बरसें हल्के-हल्के

पंडित भीमसेन जोशी के बेटे जयंत जोशी ने बहुत पहले एक इंटरव्यू में कहा था, "'तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी राष्ट्रीय एकता को दर्शाने वाला एक गीत चाहते थे. जिसका प्रस्ताव पंडित भीमसेन जोशी यानी मेरे पिता को मिला. जिसके बाद ये कंपोजिशन तैयार की गई थी."

मिले सुर मेरा तुम्हारा बनाने के पीछे खड़ी टीम, संगीतकार और गीतकार


असल में, प्रधानमंत्री के आदेश के बाद दूरदर्शन ने दिवंगत सुरेश मल्लिक को भारत की एकता को दर्शाने वाले एक गीत के निर्माण के लिए कहा था, जिसे 15 अगस्त, 1988 को प्रसारित किया जाना था. मल्लिक की रचनात्मकता की यात्रा उसी दिन से शुरू हुई थी.

मल्लिक ने भारतीय संगीत की विभिन्न धाराओं को एकसाथ लाने की सोच के साथ अपना काम शुरू किया था. वह एक ऐसी फिल्म बनाना चाहते थे जो एक राष्ट्रीय गीत बन सके. लेकिन हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत, लोकप्रिय और पारंपरिक के साथ आधुनिक संगीत का मिलाना बेहद मुश्किल था. मल्लिक 13 भाषाओं और क्षेत्रों को एक फिल्म में, एक गीत में समेटना चाहते थे जो न सिर्फ कर्णप्रिय हो बल्कि आंखों को भी भली लगे.

पंडित भीमसेन जोशी की सलाह पर, राग भैरवी को आधार बनाया गया. यह राग संपूर्ण राग माना जा है और अब मल्लिक को ऐसे शब्दों की तलाश थी जो उनके मकसद के लिहाज से फिट बैठ सके. मल्लिक कई बड़े गीतकारों के साथ बैठे. अपने नौजवान एकाउंटेंट मैनेजर के साथ भी, जिसमें रचनात्मकता के कुछ गुण उन्हें दिख रहे थे. आखिरकार 17 बार खारिज होने के बाद, अठारहवीं बार में सही लफ्ज मिल गए. वही, मिले सुर मेरा तुम्हारा.

यह नौजवान अकाउंट मैनेजर थे पीयूष पांडेय जो बाद में विज्ञापन के दुनिया में बेहद मशहूर हुए.

अमिताभ बच्चन, जीतेंद्र और मिठुन जैसे दिग्गजों को एक साथ छोटे परदे पर लाना एक बड़ी कामयाबी थी और विस्मयकारी अनुभव भी


अब समस्या संगीत की थी. मल्लिक ने दो मेधावी लोगों की मदद की, लुईस बैंक्स और दिवंगत पी वैद्यनाथन, जिनके पास शास्त्रीय संगीत का अपार अनुभव था. साथ मिलकर इन दोनों ने गाने को पंडित भीमसेन जोशी, बालमुरली कृष्ण और लता मंगेशकर से गवाया.

फिर शुरू हुआ इसका प्रोडक्शन, जिसके लिए नामी-गिरामी चेहरों की जरूरत थी. लेकिन मकसद बहुत उच्च आदर्शों वाला था इसलिए बड़े नामों को जुटाना भी मुश्किल नहीं था. लेकिन 30 बेहद व्यस्त कलाकारों को 20 लोकेशनों पर जुटाना वाकई टेढ़ी खीर थी.

आप इस गाने के एक-एक शॉट को देखें जो बमुश्किल तीन सेकेंड के लिए स्क्रीन पर ठहरते हैं, पर हर शॉट की अपनी एक कहानी है.

जैसा कि पहले भी जिक्र किया जा चुका है इस गीत का ओपनिंग सीक्वेंस पंडित भीमसेन जोशी का है, जो एक जलप्रपात के पास गीत गा रहे हैं. अपने एक इंटरव्यू में इसके निर्माता कैलाश सुरेंद्रनाथ ने बाद में कहा कि इसी झरने पर उन्होंने लिरिल का विज्ञापन भी शूट किया था. पंबर फॉल्स कोडैकैनाल में है और अब तो इसको लिरिल फॉल्स ही कहा जाता है.

आप देश के हर हिस्से के दृश्य देखते हैं, कुछ सितारों को पहचानते हैं, कुछ को पहचानने की कोशिश में लगे रहते हैं कि दूसरा सितारा स्क्रीन पर आ जाता है. फिर आप अचानक ऑफ स्पिनर गेंदबाज नरेंद्र हीरवानी को देखते हैं, जिन्होंने एक ही पारी में दस विकेट लेकर नया रिकॉर्ड कायम किया होता है कि अगले पहल रवींद्र संगीत में तोमार सूर, मोदेर सूर सुनते हुए कोलकाता के भूमिगत मेट्रो से उतरते बंगाली भद्रपुरुषों में से एक चेहरा पहचानते हैं, अरे अरूण लाल. लाल, उस वक्त भारत के ओपनर थे.

इस फिल्म में दो बार ट्रेन दिखती है. इनमें से एक तो कोलकाता मेट्रो है जो इस फिल्म की शूटिंग के कुछ साल पहले ही ऑपरेशनल हुई थी और दूसरी ट्रेन थी डेक्कन क्वीन, जो आपको हरे-भरे खेतों के बीच से गुजरती नजर आती है.

आप अगर आज भी इस गाने के कुछ शॉट देखें तो उस वक्त के लिहाज से अद्भुत नजर आते हैं. मिसाल के तौर पर, ताजमहल का एरियल शॉट ही लें. इसके लिए सुरेंद्रनाथ आगरा जाकर एयर मार्शल से मिलकर आए थे. एयर मार्शल सहृदय थे और उन्होंने इस शूट के लिए भारतीय वायुसेना का हेलिकॉप्टर भी उपलब्ध कराया था. यह बात दीगर है कि यह अनुमति देने की वजह से उक्त अफसर मुश्किल में फंस गए और बाद में उस हेलिकॉप्टर का किराया सुरेंद्रनाथ को चुकाना पड़ा.

अगर आप गौर से देखेंगे तो पलभर के लिए इस वीडियो में आपको कमल हासन भी नजर आते हैं. उन्हें फिल्म में शामिल कर पाना भी बस किस्मत की ही बात थी. असल में, जब इस वीडियो के लिए एम बालमुरलीकृष्ण के साथ बीच पर शूटिंग हो रही थी तो हासन भी आ गए थे. अपने गुरु के उलट, हासन वीडियो में प्रमुखता से दिखाने से मना कर रहे थे और इसलिए उनको अपने गुरु के संगीत का आनंद उठा रहे शिष्य के तौर पर कट-अवे में दिखाया गया है.

एक के बाद एक स्क्रीन पर नमूदार होते जा रहे सितारों की एकरसता लुईस बैंक्स के कीबोर्ड पर उंगलियों के चलने वाला शॉट तोड़ता है. लता मंगेशकर ने तिरंगे जैसी साड़ी पहनी है, यह तो हमें बाद में पता चला, जब यह रंगीन टीवी पर देखा गया. उस वक्त अधिकतर घरों में ब्लैक ऐंड व्हाइट टीवी सेट होते थे, फिर भी, यह लता का अपना विचार था.

फिर आप, शबाना आजमी, तनूजा, कांजीवरण साड़ी में हेमा मालिनी, शिफॉन में शर्मिला टैगोर, वहीदा रहमान को देखते हैं. उस समय इतने सारे सितारों को एक साथ टीवी पर देखना विस्मयकारी था. आप उबरे भी नहीं होते हैं कि स्क्रीन पर अमिताभ बच्चन, जीतेंद्र और मिठुन चक्रवर्ती एक दूसरे को थामे कोरस में गाते हैः मिले सुर मेरा तुम्हारा.

टीवी के सामने पालथी मारकर बैठी भीड़ एक साथ चिल्लाती हैः गज्जब. जबरजस्त!

 

मिले सुर मेरा तुम्हारा को सुनिए तो आपको पुराने दिन याद आएंगे


मिले सुर वाला गीत पहली दफा लाल किले पर प्रधानमंत्री के संबोधन के ठीक बाद प्रसारित किया गया था. पहली बार में उत्कृष्टता हासिल करना वाकई मुश्किल होता है पर मल्लिक के लिए यह मैग्नम ओपस था. आखिर, बुजुर्ग भीमसेन जोशी जिस गीत की शुरुआत करते हैं उसको फिल्म के बीच में नौजवान पीढ़ी (अभिनेता) आगे बढ़ाती है और अंत तीन रंगों के कपड़े पहने बच्चे करते हैं. आखिर, इस एकता के संदेश को बच्चों को ही तो आगे ले जाना है.

पंडित भीमसेन जोशी ने एक बार पीयूष पांडेय से कहा भी कि भले ही शास्त्रीय गायन की दुनिया में लोग उन्हें जानते हों पर इस फिल्म ने उनको घर-घर तक पहुंचा दिया. 

मिले सुर मेरा तुम्हारा के साथ भावनात्मक तौर पर नई पीढ़ी शायद नहीं जुड़ पाई है, लेकिन अस्सी के दशक के बच्चे खासतौर पर इसे अपने टीवी देखने के तजुर्बे से जोड़ेंगे. हिंदुस्तान की विरासत को संभालने का संदेश तो खैर है ही, पर इसके साथ ही उन्हें अपने घर का टीवी सेट जब भी याद आएगा, यह गाना पृष्ठभूमि में जरूर बजता हुआ सुनाई देगा.