अजित राय ( कान, फ्रांस से)
78 वें कान फिल्म समारोह के दूसरे सबसे महत्वपूर्ण खंड अन सर्टेन रिगार्ड में यहां डेबुसी थियेटर में करण जौहर ( प्रोड्यूसर) और नीरज घायवान ( निर्देशक) की फिल्म ' होमबाउंड) ' का जबरदस्त स्वागत हुआ. फिल्म के प्रदर्शन के बाद दर्शक खड़े होकर दस मिनट तक तालियां बजाते रहे. ईशान खट्टर, जाह्नवी कपूर और विशाल जेठवा ने इस फिल्म में मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं.
करण जौहर की कंपनी धर्मा प्रोडक्शन इस फिल्म की मुख्य निर्माता है. सबसे बड़ी बात यह है कि हालीवुड के दिग्गज फिल्मकार मार्टिन स्कारसेसे इस फिल्म के एक्सक्यूटिव प्रोड्यूसर है. उन्होंने इस फिल्म और इसके निर्देशक नीरज घायवान की बहुत तारीफ की है.
उन्होंने नीरज घायवान की पिछली फिल्म ' मसान ' का उल्लेख करते हुए कहा कि वे उसी समय समझ गए थे कि इस युवा निर्देशक में अद्भुत प्रतिभा है. कान फिल्म समारोह के अन सर्टेन रिगार्ड खंड में आज से ठीक दस साल पहले ' मसान ' का वर्ल्ड प्रीमियर हुआ था और इसे दो दो पुरस्कार मिले थे.
अब ' होमबाउंड ' फिल्म की चौतरफा तारीफ हो रही है. कान फिल्म समारोह के निर्देशक थियरी फ्रेमों और उप निदेशक तथा प्रोग्रामिंग हेड क्रिस्टियान जीयूं ने खुद आकर नीरज घायवान को इस फिल्म के लिए बधाई दी. फिल्म के प्रदर्शन के अवसर पर फिल्म के निर्देशक नीरज घायवान, प्रोड्यूसर करण जौहर और मुख्य कलाकार ईशान खट्टर,जाह्नवी कपूर विशाल जेठवा आदि मौजूद रहे और उन्होंने दर्शकों के साथ पूरी फिल्म देखी.
' होमबाउंड ' उत्तर भारत के एक पिछड़े इलाके के छोटे से गांव में रहने वाले दो दोस्तों के साझे दुःख, संघर्ष और बेमिसाल दोस्ती की कहानी है. दोनों दोस्त समाज के आखिरी पायदान पर जिंदगी से संघर्ष कर रहे हैं.
चंदन कुमार ( विशाल जेठवा) एक दलित है तो मोहम्मद शोएब अली ( ईशान खट्टर) मुसलमान। दोनों को अपनी जाति के कारण कदम कदम पर अपमानित और भेदभाव का शिकार होना पड़ता है. दोनों अपने गांव,समाज और देश से बेइंतहा मुहब्बत करते हैं इसलिए पैसा कमाने घर छोड़कर बाहर नहीं जाना चाहते.
दोनों इंटरमिडिएट के बाद आगे की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते. उनकी आखिरी उम्मीद है कि वे पुलिस कांस्टेबल बन जाएंगे तो सब कुछ ठीक हो जाएगा. संयोग से चंदन पुलिस की भर्ती की परीक्षा में पास हो जाता है और शोएब फेल.
दोनों के माता-पिता लाचार है. चंदन हर जगह फार्म में अनुसूचित जाति के बदले सामान्य श्रेणी में परीक्षा देता है. उसे डर है कि आरक्षण के कारण चुन लिए जाने पर नौकरी में सारी जिंदगी उसके साथ दलितों जैसा व्यवहार किया जाएगा.
फिल्म की शुरुआत एक रेलवे स्टेशन पर पुलिस कांस्टेबल की भर्ती की परीक्षा देने जा रहे लड़के लड़कियों की भारी भीड़ से होती है जहां चंदन की मुलाकात अपनी ही जाति की एक समझदार लड़की सुधा भारती ( जाह्नवी कपूर) से होती है.
दोनों में पहले दोस्ती फिर प्रेम जैसा कुछ होता तो है पर थोड़ी दूर जाकर टूट जाता है. सुधा चाहती है कि चंदन पढ़-लिखकर कुछ काबिल बने पर चंदन की मजबूरी है कि उसे परिवार के लिए तुरंत नौकरी चाहिए.
सुधा चंद्रन से कहती भी है कि हमें बोरी से उठकर कुर्सी तक का सफर खुद तय करना है. उधर पुलिस कांस्टेबल की नियुक्ति का इंतजार करते करते चंदन थक जाता है और सूरत की कपड़ा मिल में मजदूरी करने लगता है.
उसकी मां की स्कूल में मीड डे मील वाली नौकरी इसलिए छूट जाती है कि सवर्ण लोग एक दलित के हाथ से अपने बच्चों को खाना खिलाने पर आपत्ति करते हैं.सूरत में प्रवासी मजदूरों की नारकीय जिंदगी देखकर दिल दहल जाता है. चंदन के घरवालों का एक हीं सपना है कि उनका एक पक्का मकान बन जाए.इस सपने के लिए चंदन की बलि चढ़ जाती हैं.
शोएब को एक पानी साफ करने की मशीन बेचने वाली कंपनी में चपरासी की नौकरी मिलती है. उसका आफिसर उसकी प्रतिभा से प्रभावित होकर उसे सेल्स एजेंट के रूप में प्रोमोशन देना चाहता है.
लेकिन यहां भी मुसलमान होने के कारण उसे अपने ही सहकर्मियों से कदम कदम पर अपमानित होना पड़ता है. उससे बार बार आधार कार्ड और पुलिस का नो आब्जेक्शन सर्टिफिकेट मांगा जाता है.
एक दृश्य में हम देखते हैं कि कंपनी के मालिक के यहां भारत पाकिस्तान क्रिकेट के फाइनल मैच और इसकी पार्टी में शोएब को मुसलमान होने के कारण इतना अपमानित किया जाता है कि उसके सब्र का बांध टूट जाता है और वह नौकरी छोड़ देता है.
उसने अपने पिता के घुटनों के आपरेशन के लिए दो लाख का मेडिकल लोन लिया है. नियति उसे भी चंदन के पास सूरत ले जाती है. अभी चन्दन और शोएब मिल मजदूर का अपना नया जीवन शुरू हीं कर रहे होते हैं कि कोरोना के कारण पूरे देश में लाक डाउन लग जाता है.
इन दोनों के सामने घर लौटने के सिवा कोई चारा नहीं। वे जैसे तैसे एक ट्रक से घर वापसी कर रहे होते हैं कि बीच रास्ते में चंदन को खांसी आती है और बाकी यात्री कोरोना के डर से उन दोनों को बीच सड़क पर उतरा देते हैं.
शोएब की लाख कोशिश के बाद भी चंदन कुछ दूर चलने के बाद दम तोड देता है. प्लास्टिक से लिपटी उसकी लाश घर आती हैं. उसके बैग से शोएब के पिता के लिए छाप वाली लूंगी और अपनी मां के लिए एक जोड़ी चप्पल निकलती है, क्योंकि नंगे पैर खेतों में काम करने से उसके पैर घायल हो चुके हैं..
अंतिम दृश्य में हम देखते हैं कि चंदन का पक्का मकान बन चुका है. एक पुलिस जीप आकर रुकती है. एक सिपाही आकर शोएब को एक लिफाफा पकड़ाता है. शोएब जब लिफाफा खोलता है तो पाता है कि उसमें चंदन के लिए पुलिस कांस्टेबल की नियुक्ति का सरकारी आदेश है.
हाउसबाउंड फिल्म के कई दृश्य बहुत ही मार्मिक है. दो नौजवानों की लाचारी और जिंदगी के लिए संघर्ष की नियति को बहुत ही संवेदना के साथ फिल्माया गया है.सबके लिए न्याय और बराबरी का विचार दृश्यों की सघनता में सामने आता.
इसमें कोई नारेबाजी और प्रवचन नहीं है. न हीं प्रकट हिंसा है. ऐसा लगता है कि शोएब, चंदन और सुधा के लिए हमारा समय ही राक्षसी खलनायक के रुप में सामने खड़ा हो गया है.
ईशान खट्टर, जाह्नवी कपूर, विशाल जेठवा और दूसरे सभी कलाकारों ने बहुत उम्दा अभिनय किया है. पटकथा बहुत चुस्त दुरुस्त है. दर्शकों को बांधे रखती है. निर्देशक ने जो कुछ भी कहा है या कहने की कोशिश की है वह कैमरे की आंख से दृश्यों और कम से कम संवादों में दिखाया है.
जब रेलवे स्टेशन पर अचानक गाड़ी के प्लेटफार्म बदलने से भगदड़ मच जाती है तो शोएब चंदन से कहता है कि ' हम परीक्षा देने जा रहे हैं या जंग लड़ने.' दरअसल पैंतीस सौ पोस्ट के लिए पच्चीस लाख उम्मीदवार परीक्षा दे रहे हैं.
इसी तरह पुलिस भर्ती केंद्र में चंदन जब पूछे जाने पर अधिकारी को अपनी जाति कायस्थ और गोत्र भारद्वाज बताता है तो घाघ अधिकारी कहता है कि शेर की खाल पहनने से गीदड़ शेर नहीं बन जाता.'
शोएब के पिता बार बार उसे दुबई जाने की बात कहते हैं तो शोएब कहता है कि -" पुरखों की दुआएं तो इन्ही हवाओं में हैं, इसे छोड़कर कैसे जाएं." पुलिस का एक अधिकारी एक जगह दलितों पिछड़ों का मजाक उड़ाते हुए कहता है कि -" आरक्षण वाले तो मेवा खा रहे हैं, हम तो केवल खुरचन पर जिंदा है."
चंदन के जन्मदिन पर सुधा जब सूरत पहुंचती है तो स्वीकार करते हुए कहती है कि " पिता को बार बार हारते देखा तो तुमसे भरपाई चाहने लगी." सुधा के पिता कम पढ़ें लिखे होने के कारण जिंदगी भर लाइनमैन हीं रह गए.
सूरत में एक जगह पुलिस शोएब को मुसलमान होने के कारण पीटने लगती हैं. चंदन कुछ देर तो छुपा रहता है फिर बाहर निकलकर पुलिस को अपना ग़लत नाम बताता है हसन अली. पुलिस उसे भी पीटती है.
यह दोस्ती की साझेदारी है. अंतिम दृश्य में शोएब चंदन की यादों में खोया हुआ गांव के बाहर पुलिया के नीचे बैठा है और सूनी आंखों से आसमान को देख रहा है.