ब्रह्मोस और कलाम की कहानी: भारत की पहली सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल जिसने रचा इतिहास

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 22-05-2025
The story of Brahmos and Kalam: India's first supersonic cruise missile that created history
The story of Brahmos and Kalam: India's first supersonic cruise missile that created history

 

अली अहमद 

ब्रह्मोस मिसाइल केवल एक तकनीकी उपलब्धि नहीं है, यह भारत की वैज्ञानिक क्षमता, आत्मनिर्भरता और राष्ट्र के संकल्प का प्रतीक है. इस ऐतिहासिक परियोजना के केंद्र में थे भारत के पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम। उनका सपना आज न केवल साकार हो चुका है, बल्कि वह भारत के सैन्य शौर्य का प्रतीक बन गया है. माना जा रहा है कि मई 2025 के पहले सप्ताह में पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों पर हुए हमलों में ब्रह्मोस मिसाइल ने अहम भूमिका निभाई.

ब्रह्मोस: एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सपना

इस मिसाइल की शुरुआत 1993 में तब हुई जब डॉ. कलाम, उस समय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के प्रमुख थे, और उन्होंने रूस की यात्रा की थी. इस दौरान उन्हें एक अधूरा सुपरसोनिक रैमजेट इंजन देखने को मिला जिसे सोवियत संघ के विघटन के बाद संसाधनों के अभाव में छोड़ दिया गया था. डॉ. कलाम ने इस तकनीक को पूर्ण रूप देने का संकल्प लिया.

भारत-रूस साझेदारी का उद्भव

12 फरवरी 1998 को डॉ. कलाम और रूसी उपरक्षा मंत्री एन.वी. मिखाइलोव के बीच एक ऐतिहासिक समझौता हुआ, जिसके तहत 'ब्रह्मोस एयरोस्पेस' की स्थापना हुई. यह DRDO और रूस की एनपीओएम संस्था का संयुक्त उपक्रम था.

भारत की हिस्सेदारी 50.5% और रूस की 49.5% रही. दोनों देशों ने मिलकर इस क्रांतिकारी मिसाइल प्रणाली का विकास, निर्माण और विपणन शुरू किया. विकास कार्य 1999 से औपचारिक रूप से शुरू हुआ.

पहला परीक्षण और ऐतिहासिक सफलता

12 जून 2001 को ओडिशा के चांदीपुर रेंज से ब्रह्मोस मिसाइल का पहला सफल परीक्षण किया गया. यह दिन भारत के रक्षा इतिहास में एक मील का पत्थर बना. ब्रह्मोस दुनिया की पहली और एकमात्र परिचालित सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल प्रणाली है, जो 2.8 मैक (ध्वनि से लगभग तीन गुना अधिक गति) से उड़ान भर सकती है.

बहु-आयामी उपयोग और स्वदेशी सफलता

ब्रह्मोस को भूमि, समुद्र और वायु — तीनों से दागा जा सकता है। 2013 में इसे भारतीय वायुसेना के एसयू-30 एमकेआई लड़ाकू विमान से भी सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया. इस जटिल कार्य को हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने मात्र 88 करोड़ रुपये में पूरा कर दिखाया, जबकि रूसी कंपनी सुखोई ने इसकी लागत 1300 करोड़ रुपये बताई थी.

डॉ. कलाम की दृष्टि का प्रतीक

ब्रह्मोस सिर्फ एक हथियार नहीं, बल्कि डॉ. कलाम की दूरदृष्टि का साकार रूप है. उनका सपना था कि भारत हथियारों की वैश्विक दौड़ में आत्मनिर्भर बने और मिसाइल तकनीक में विश्व नेता के रूप में उभरे। ब्रह्मोस ने इस लक्ष्य को साकार किया है.

वैश्विक मंच पर भारत का परचम

2022 में भारत ने फिलीपींस के साथ 375 मिलियन डॉलर का समझौता किया, जिसमें ब्रह्मोस मिसाइल की आपूर्ति शामिल थी. 2024 में भारत ने पहला बैच सौंपा और अप्रैल 2025 में दूसरा बैच भी पहुंचा दिया गया. अर्जेंटीना समेत कई देश अब इस मिसाइल प्रणाली को खरीदने में रुचि दिखा रहे हैं.

एसके मिश्रा, DRDO के पूर्व महानिदेशक के अनुसार, ब्रह्मोस की सफलता में भारत के "इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (IGMDP)" की भूमिका भी अहम रही. यह कार्यक्रम 1983 में भारत को मिसाइल प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था.

आज ब्रह्मोस न केवल भारत की सैन्य शक्ति का परिचायक है, बल्कि यह देश को वैश्विक रक्षा बाजार में एक प्रमुख निर्यातक भी बना चुका है.

ब्रह्मोस केवल एक मिसाइल नहीं, भारत की तकनीकी क्रांति की उड़ान है