गौस सिवानी / नई दिल्ली
‘चाहे गीता बांचिए या पढ़िए कुरान, तेरा-मेरा प्यार है हर पुस्तक का ज्ञान.’ भारत में सांप्रदायिक कटुता का इतिहास जितना पुराना है, उससे कहीं ज्यादा पुरानी हैं हमारी राष्ट्रीय एकता, सांप्रदायिक सद्भाव की परंपराएं. भाईचारे के दुश्मनों ने इसे तोड़ने की बहुत कोशिश की, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए, क्योंकि इस देश में रामवीर कश्यप जैसे लोग हैं, जिनके लिए भाईचारे को आस्था का दर्जा प्राप्त है. 2013 का मुजफ्फरनगर दंगा भी इस भावना को कम न कर सका. राम वीर बहुत ही चुपचाप ढंग से साम्प्रदायिक सद्भाव की इस परंपरा को मजबूत करने में लगे हुए हैं.
रामवीर कश्यप ने मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान एक मस्जिद को बचाया और अब भी उसकी देखरेख कर रहे हैं. 2013 के दंगों के दौरान जब दंगाइयों का एक समूह इसे तोड़ने के लिए आगे आया, तो रामवीर ने मर्दानगी से इसका सामना किया. उन्हें ग्रामीणों का समर्थन मिला और मस्जिद बच गई. राम वीर ने तब से इसकी देखभाल कर रहे हैं.
वे इसे सुबह साफ करते हैं, शाम को मोमबत्तियां जलाते हैं और प्रत्येक रमजान से पहले पेंट करते हैं. वे कहते हैं कि यह उनका धार्मिक कर्तव्य है. वे कहते हैं, “मेरा विश्वास मुझे सभी पूजा स्थलों का सम्मान करने के लिए कहता है. दिलचस्प बात यह है कि गांव में एक भी मुसलमान नहीं है. मुजफ्फरनगर जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर ननहदा एक जाट-बहुल गांव है. यहां कुछ दलित और पिछड़े समुदाय के लोग रहते हैं. रामवीर के अनुसार, आजादी से पहले गांव में बड़ी संख्या में मुसलमान थे. धीरे-धीरे वे चले गए. अब शायद ही कोई यहां इबादत के लिए आता है.
पास के गांव खीरी फिरोजाबाद में रहने वाले खुश नसीब अहमद कहते हैं, “मैं कुछ साल पहले ननहदा गया था और एक हिंदू व्यक्ति को मस्जिद की देख-रेख करते देख हैरान रह गया. मैंने वहां नमाज अदा की. प्यार और शांति नफरत को काटती है.”उन्होेंने कहा कि एकजुटता की मिसाल हैं राम वीर, जो मस्जिद से महज 100 मीटर की दूरी पर रहते हैं.
रामवीर का कहना है कि बचपन में वे इसके इर्द-गिर्द साथ खेलते थे. वे कहते हैं कि “मेरे लिए यह इबादत की जगह है, जिसका सम्मान किया जाना चाहिए.” इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं था, मैंने जिम्मेदारी ली. पिछले बीस साल से मैं हर दिन इसकी सफाई कर रहा हूं. मैं रमजान से पहले अपने परिवार के साथ इसकी मरम्मत करता हूं.”
ननहदा गांव के मुखिया दारा सिंह भी रामवीर की जमकर तारीफ करते हैं. उन्होंने कहा कि रामवीर रमजान से पहले अपने पैसे से मस्जिद की मरम्मत करवाते हैं. रामवीर का परिवार भी उसे साफ करने में मदद करता है. एक मजदूर के रूप में परिवार की देखभाल करने वाले रामवीर कश्यप का कहना है कि 135 साल पुरानी मस्जिद का निर्माण राठीडी गांव के एक सैयद ने किया था. पहले गांव में रहने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज अदा करते थे, लेकिन चूंकि मुसलमान गांव छोड़कर चले गए हैं, इसलिए मस्जिद में नमाज नहीं पढ़ी जाती. राम वीर कहते हैं कि कभी-कभी कोई राहगीर मस्जिद में नमाज अदा करने आ जाता है.
उनका कहना है कि वह डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी हैं. बरसों पहले एक गांव में हुए सत्संग को सुनकर वह मस्जिद की रखवाली करने लगे.
शहर काजी तनवीर आलम ने बताया कि धार्मिक स्थल सबका होता है. सभी धर्मों का सम्मान करना हमारी संस्कृति और सभ्यता है. यह अच्छा है कि एक हिंदू मस्जिद की सेवा कर रहा है. रामवीर साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल कायम कर भाईचारे को बढ़ावा दे रहे हैं. वे प्रशंसा के पात्र हैं. वे हमारी गंगा-जमुनी तहजीब का जीता जागता उदाहरण हैं.