मुकुंद मिश्रा / लखनउ
इस दौर के मशहूर शायर मुनव्वर राणा की तबियत नासाज है. गुर्दे की बीमारी से जूझ रहे राणा को यूरिन इंफेक्शन की वजह से लखनऊ के मेदांता अस्पताल में इलाज चला. बाद में उन्हें दिल्ली के एम्स रेफर कर दिया गया. डॉक्टरों के मुताबिक उनकी सेहत अब बेहतर है. मुनव्वर राणा की बेटी सोमैया ने इसकी तस्दीक करते हुए बताया कि उन्हें कुछ दिन और एम्स में रखा जायेगा.
सदक़ा भी दे दिया है नज़र भी उतार दी.
दौलत सूकूनो चैन की सब मुझपे वार दी.
कल शाम मैंने क्या कहा तबियत खराब है,
माँ ने तमाम रात दुआ में गुज़ार दी.
मुनव्वर राणा की तबियत खराब होने की खबर से उनकी मां की दुआएं ही नहीं अदब की दुनिया की तमाम शख्सियतों और इस शायर को चाहने वालों की दुआएं भी उनके साथ हैं. शायर मनमोहन सिंह मन कहते हैं कि अदब की दुनिया में मुनव्वर का कोई सानी नहीं. इस दौर की वे अकेली शख्सियत हैं.
वे कहते हैं कि उनकी शायरी में साफगोई और दर्द के साथ रिश्तों की बानगी जो है, वह कम ही देखने को मिलती है. वे कहते हैं कि यह मेरी ही नहीं तमाम लोगों की दुआएं हैं कि मुनव्वर की मां की दुआएं उनके साथ हमेशा साथ रहें और वे इसी तरह हमारे बीच अपनी शायरी पेश करते रहें.
रायबरेली में 26 नवंबर 1952 को जन्मे मुनव्वर राणा का परिवार, रिश्तेदार वगैरह देश के बंटवारे के वक्त पाकिस्तान चले गये थे, लेकिन मुनव्वर के पिता ने यहीं रहने का फैसला किया. बाद में वे लखनऊ में रहने लगे। मुनव्वर राणा की शुरुआती शिक्षा कोलकाता में हुई थी. मुनव्वर ने उर्दू अदब की दुनिया में खास पहचान बनायी और वे अपने अंदाज के इकलौते शायर बनकर उभरे.
रंगकर्मी और लेखक आदियोग कहते हैं कि मुनव्वर राणा साहब का कोई जवाब नहीं. दुआ है वे चुस्त-दुरुस्त होकर वापस लौटें. उनकी मां ही नहीं उनके चाहने वाले हम तमाम लोगों की दुआएं भी उनके साथ हैं.
मुनव्वर राणा की तबीयत 2017 में खराब हुई थी. उनके सीने में तेज दर्द उठा था. फेफड़ों और गले में इंफेक्शन भी हुआ था जिसके बाद उन्हें एसजीपीजीआई में भर्ती कराया गया था.
मुनव्वर राणा के घुटने का भी इलाज चल रहा है। पिछले सात सालों में कई बार उनके घुटने का ऑपरेशन हो चुका है. उनके दोनों घुटने बदले जा चुके हैं. पहली बार उनके उनके घुटना का ऑपरेशन इंदौर में हुआ था, लेकिन इसके बाद भी उन्हें चलने फिरने में दिक्कत हो रही थी। जिसके चलते उन्होंने दिल्ली के एम्स में फिर ऑपरेशन किया गया.
साल 2014 में उन्हें कविता ’शाहदाबा’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था. लेकिन इसके एक ही साल बाद उन्होंने देश में असहिष्णुता बढ़ने की बात कहते हुए विरोध के तौर पर इसे लौटा दिया था. मैक्सिम गोर्की के 'मदर' उपन्यास से इतर, उन्होंने पूरी तरह मां और उससे जुड़ी भावनाओं पर इसी नाम से एक पूरा ग़ज़ल संग्रह लिखा. ऐसा करने वाले संभवतः वह पहले लेखक हैं.
इतना ही नहीं उन्होंने मां की याद में एक संस्था बनाई, नाम रखा 'मां फ़ाउण्डेशन'. 'मां' ग़ज़ल संकलन की भूमिका में उन्होंने लिखा भी कि इस किताब की बिक्री से हासिल की गई तमाम आमदनी 'मां फ़ाउण्डेशन' की ओर से जरूरतमंदों की इमदाद के लिए ख़र्च की जाएगी। वह इस संकलन के चलते पूरी दुनिया में मशहूर हुए.
ढेरों सम्मान हासिल किया. उनकी रचनाओं का ऊर्दू के अलावा अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है. उन्होंने ग़ज़लों के अलावा संस्मरण भी लिखे हैं.
मुनव्वर राणा के मां को लेकर लिखे गये शेरों की बानगी कुछ इस तरह...
सुलाकर अपने बच्चों को यही मांएं समझती हैं
कि इन की गोद में किलकारियां आराम करती हैं
***
गले मिलने को आपस में दुआएं रोज़ आती हैं
अभी मस्जिद के दरवाज़े पे मांएं रोज़ आती हैं
कभी कभी मुझे यूं भी अजां बुलाती है
शरीर बच्चे को जिस तरह मां बुलाती है
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में मां आई
ऐ अंधेरे! देख ले मुंह तेरा काला हो गया
मां ने आंखें खोल दीं घर में उजाला हो गया
इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
मां बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊं
मां से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं
मेरा खुलूस तो पूरब के गांव जैसा है
सुलूक दुनिया का सौतेली माओं जैसा है
रौशनी देती हुई सब लालटेनें बुझ गईं
ख़त नहीं आया जो बेटों का तो माएं बुझ गईं
वो मैला सा बोसीदा सा आंचल नहीं देखा
बरसों हुए हमने कोई पीपल नहीं देखा
कई बातें मुहब्बत सबको बुनियादी बताती है
जो परदादी बताती थी वही दादी बताती है
***
किसी को देख कर रोते हुए हंसना नहीं अच्छा
ये वो आंसू हैं जिनसे तख़्ते-सुल्तानी पलटता है
दिन भर की मशक़्क़त से बदन चूर है लेकिन
मां ने मुझे देखा तो थकन भूल गई है
दुआएं मां की पहुंचाने को मीलों मील जाती हैं
कि जब परदेस जाने के लिए बेटा निकलता है
दिया है मां ने मुझे दूध भी वज़ू करके
महाज़े-जंग से मैं लौट कर नजाऊंगा
खिलौनों की तरफ़ बच्चे को मां जाने नहीं देती
मगर आगे खिलौनों की दुकां जाने नहीं देती
दिखाते हैं पड़ोसी मुल्क आंखें तो दिखाने दो
कहीं बच्चों के बोसे से भी मां का गाल कटता है
बहन का प्यार मां की ममता दो चीखती आंखें
यही तोहफ़े थे वो जिनको मैं अक्सर याद करता था
बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
मां सबसे कह रही है कि बेटा मज़े में है
बड़ी बेचारगी से लौटती बारात तकते हैं
बहादुर हो के भी मजबूर होते हैं दुल्हन वाले
खाने की चीज़ें मां ने जो भेजी हैं गांव से
बासी भी हो गई हैं तो लज़्ज़त वही रही
मुनव्वर राना की रचनाएं
मां
ग़ज़ल गांव
पीपल छांव
बदन सराय
नीम के फूल
सब उसके लिए
घर अकेला हो गया
कहो ज़िल्ले इलाही से
बग़ैर नक़्शे का मकान
फिर कबीर
नए मौसम के फूल
पुरस्कार एवं सम्मान
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1993 – रईस अमरोहवी अवार्ड (रायबरेली)
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1995 – दिलकुश अवार्ड
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1997 – सलीम जाफरी अवार्ड
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2001 – मौलाना अब्दुर रज्जाक़ मलीहाबादी अवार्ड (वेस्ट बंगाल उर्दू अकादमी )
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2004 – सरस्वती समाज अवार्ड, अदब अवार्ड
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2005 – डॉ॰ जाकिर हुसैन अवार्ड (नई दिल्ली), ग़ालिब अवार्ड (उदयपुर), शहूद आलम आफकुई – अवार्ड (कोलकाता), मीर तक़ी मीर अवार्ड
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2006 – अमीर खुसरो अवार्ड (इटावा)
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2012- ऋतुराज सम्मान पुरस्कार
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2014 – साहित्य अकादमी पुरस्कार
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भारती परिषद पुरस्कार, अलाहाबाद
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बज्मे सुखन पुरस्कार, भुसावल
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मौलाना अबुल हसन नदवी अवार्ड
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उस्ताद बिस्मिल्लाह खान अवार्ड
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कबीर अवार्ड