शाकाहारी भारत में बढ़ रही है मांसाहारियों की संख्याः एनएफएचएस

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 18-05-2022
शाकाहारी भारत में बढ़ रही है मांसाहारियों की संख्याः एनएफएचएस
शाकाहारी भारत में बढ़ रही है मांसाहारियों की संख्याः एनएफएचएस

 

आवाज-द वॉयस / नई दिल्ली

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के वर्ष 2019-21 के लिए हुए एक हालिया अध्ययन से पता चलता है कि मांस खाने वालों या मांसाहारियों का प्रतिशत 2015 से वर्तमान तक काफी बढ़ गया है.

यह सर्वे छह साल के बीच 15-49 साल की उम्र के पुरुषों और महिलाओं दोनों पर किया गया था. कोविड-19 महामारी के कारण, एनएफएचएस का पांचवा दौर 17 जून, 2019 और 30 अप्रैल, 2021 के बीच दो चरणों में आयोजित किया गया था. सर्वेक्षण में 29 राज्यों और सात केंद्र शासित प्रदेशों के 707 जिलों को शामिल किया गया है.

‘शुद्ध’ शाकाहारी घटे

हाल के एनएफएचएस-5 सर्वेक्षण के अध्ययन से पता चलता है कि केवल 16.6 प्रतिषत पुरुषों और 29.4 प्रतिषत महिलाओं ने अंडे सहित कभी भी मांसाहारी नहीं खाया है. पिछली रिपोर्ट एनएफएचएस-4 की तुलना में यह पुरुषों में 21.6 प्रतिषत से 5 प्रतिषत और महिलाओं में 30 प्रतिषत से 1 प्रतिषत की गिरावट है. इसलिए, कह सकते हैं कि पिछले छह वर्षों के दौरान पुरुषों और महिलाओं दोनों में शाकाहारियों का प्रतिशत गिरा है.

मछली, चिकन और मांस

दिलचस्प बात यह है कि ‘मछली, चिकन और मांस’ की श्रेणी में पिछले छह वर्षों में पुरुषों और महिलाओं की संख्या में काफी वृद्धि हुई है. यह धारणा कि भारत मुख्य रूप से शाकाहारी देश है, लेकिन यह बात गलत साबित हो रही है. पिछले छह वर्षों में, पुरुषों में मछली, चिकन और मांस खाने वालों की दैनिक खपत 1.8 प्रतिषत से बढ़कर 8.0 प्रतिषत हो गई है. यानी छह फीसदी की बढ़ोतरी.

मांसाहारियों का धार्मिक विभाजन

आजादी के बाद से ही धर्म हमेशा चर्चा और बहस का विषय रहा है. इसलिए, भारत जैसे देश में कई धर्म सह-अस्तित्व में हैं. इसलिए भोजन का सेवन बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है. इसी तरह, आपकी जाति भी तय करती है कि आप क्या खाते-पीते हैं. धर्म और जाति साथ-साथ चलते हैं. इसी तरह, दो रिपोर्टों की तुलना करने पर, सियासत डॉट कॉम ने पाया कि पिछले छह वर्षों में कभी भी मांस नहीं खाने वाली महिलाओं में 5 प्रतिषत की कमी आई है.

दो राष्ट्रीय सर्वेक्षणों की तुलना करते हुए पाया कि प्रमुख धर्मों हिंदू, मुस्लिम और ईसाई धर्म में मांस खाने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है. पिछले छह वर्षों के दौरान, पुरुषों और महिलाओं में हिंदू मांस खाने वालों का प्रतिशत क्रमशः 44.4 प्रतिषत से बढ़कर 52.5 प्रतिषत और 38.3 प्रतिषत से 40.7 प्रतिषत हो गया है. मांस खाने वाले पुरुषों में यह 8 प्रतिषत की वृद्धि है.

दूसरी ओर, मुसलमानों ने बहुत कम प्रदर्शन किया है. पुरुषों में जहां 6 प्रतिषत की वृद्धि हुई है, वहीं महिलाओं में केवल 3 प्रतिषत की वृद्धि हुई है. दोनों सर्वेक्षणों में ईसाई सबसे आगे हैं.

अनुसूचित जाति और जनजाति (एससीध्एसटी) में मांस का सेवन भी बढ़ा है. पुरुषों में, अनुसूचित जाति में तीव्र 10 प्रतिषत और अनुसूचित जनजाति समुदायों में लगभग 9 प्रतिषत की वृद्धि हुई है. दोनों सर्वेक्षणों की तुलना में महिलाओं के मांस के सेवन में ज्यादा अंतर नहीं है.

राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश

राज्यों में, केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप (98.7 प्रतिषत) और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (95.4 प्रतिषत) और उसके बाद गोवा (93.3 प्रतिषत) महिलाओं में सबसे अधिक मांस खाने वाले राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सूची में सबसे आगे हैं. केरल सबसे अधिक मांस उपभोक्ता राज्य (90.5 प्रतिष) है और हरियाणा महिलाओं की आबादी का सबसे कम (6.3 प्रतिषत) है.

इसी तरह, पुरुषों में, लक्षद्वीप (98.4 प्रतिषत) और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (96.1 प्रतिषत) और उसके बाद गोवा (93.8 प्रतिषत) सबसे अधिक मांस खाने वाले राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सूची में सबसे आगे हैं. केरल सबसे अधिक मांस उपभोक्ता राज्य (90.1 प्रतिषत) है और राजस्थान पुरुषों की आबादी का सबसे कम (14.1 प्रतिषत) है.

डेटा 2019-20 के दौरान लगभग सभी पुरुषों और महिलाओं द्वारा दैनिक, साप्ताहिक और कभी-कभी उपभोग की जाने वाली दालों / बीन्स, फलों और हरी पत्तेदार सब्जियों जैसी वस्तुओं को भी दर्शाता है.

इन सभी उपरोक्त संख्याओं और विश्लेषणों के साथ, यह चर्चा कि भारत एक शाकाहारी देश है, धीरे-धीरे और लगातार एक मिथक बनता जा रहा है. जैसे-जैसे साल बीतते हैं और रिपोर्टें आती हैं, मांस खाने वालों का प्रतिशत, चाहे देश की राजनीतिक, सामाजिक या आर्थिक स्थिति कोई भी हो, बढ़ रही है.