मलिक असगर हाशमी /नई दिल्ली
जश्न-ए-रेख्ता के आकर्ष कार्यक्रमों से एक ‘रेख्ता मुशायरा’ में शनिवार रात युवाओं श्रोताओं की भीड़ उमड़ पड़ी. शायरों को देखने-सुनने के लिए जितने लोग ‘महफिल-खाना’ में थे. उससे कहीं अधिक पंडाल के बाहर सीढ़ियों और स्क्रीन पर जमीन पर बैठे.
यूं तो इस महफिल को शाहीन कैफ निजाम, मंसूर उस्मानी, विजेंद्र सिंह परवाज, अकील नुमानी, फहमी बदायूनी, शकील अजमी, मदन मोहन दानिश, अजीज नबील और इस्माइल राज जैसे शायरों ने सजाया. मगर सर्वाधिक तालियां बटोरीं ग्वालियर से आए मदन मोहन दानिश ने.
उन्हांेने माइक पकड़ते ही जैसे ही पढ़ा-इधर क्या-क्या अजूबे हो रहे हैं, मरीज-ए-इश्क अच्छे हो रहे हैं, पूरा पंडाल तालियां से गड़गड़ा उठा. दानिश के एक और शेर-इतने अच्छे बने तो मर जाओगे, थोड़े दुश्मन भी तैयार करते रहो, पर भी खूब तालियां बनीं.
अभी रंग जो पहना हुआ है तुम ने, यही रंग मौसम ने भी पहना हुआ है-इस मिसरे पर भी दानिश को खूब तालियां बजीं. मंच से बताया गया कि गोपीचंद नारंग, राघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी की उर्दू की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए मदन मोहन दाशिन काफी काम कर रहे हैं.
मुशायरे का आगाज महाराष्ट्र के नवजवान शायर इस्माइल राज से हुआ. उनकी शायरी को भी श्रोताओं ने खूब पसंद किया. उनकी गजल-मेरे वजूद के अंदर पड़ी है लाश मेरी....काफी सराही गईं. उनके एक शेर-वक्त ने सदमे से चाट लिया मुझे, जो वक्त मैंने गुजारा नहीं, भी पसंद किया गया.
दोहा कतर से आए अजीज नबील की शायरी भी लोगों को पसंद आई. मगर कुछेक मिसरे बहुत बोझिल थे, इसलिए श्रोताआंे की हुटिंग का उन्हें शिकार होना पड़ा.