आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
अपनी मौसी के घर श्री गुंडिचा मंदिर गए भगवान जगन्नाथ शनिवार को औपचारिक रूप से बड़े भाई बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा के साथ वापसी के लिए ‘बहुड़ा यात्रा’ पर रवाना हुए.
वापसी यात्रा में हजारों भक्तों ने ‘पोहंडी’ के बाद भगवान बलभद्र के ‘तलध्वज’ के रथ को खींचा और गजपति महाराजा दिव्यसिंह देब ने ‘छेरा पोहरा’ (बुहारना) अनुष्ठान किया.
कार्यक्रम के अनुसार रथ खींचने की शुरुआत शाम चार बजे होनी थी लेकिन यह तय समय से काफी पहले अपराह्न 2.45 बजे ‘जय जगन्नाथ’, ‘हरिबोल’ के जयघोष और झांझ-मंजीरों की ध्वनि के बीच शुरू हो गयी। देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ के रथ भगवान बलभद्र के तालध्वज के पीछे चलेंगे.
इससे पहले, भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ के विग्रहों को क्रमशः ‘तालध्वज’, ‘दर्पदलन’ और ‘नंदीघोष' रथों पर ले जाया गया, जिसे ‘पोहंडी' कहा जाता है। ‘पोहंडी’ शब्द संस्कृत शब्द ‘पदमुंडनम’ से आया है, जिसका अर्थ है पैर फैलाकर धीमी गति से चलना.
तीनों देवताओं की ‘पोहंडी’ की शुरुआत चक्रराज सुदर्शन से हुई, उसके बाद भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और अंत में भगवान जगन्नाथ की ‘पोहंडी’ की रस्म हुई। हालांकि ‘पोहंडी’ की रस्म पहले दोपहर 12 बजे शुरू होनी थी, लेकिन यह बहुत पहले यानी पूर्वाह्न 10 बजे शुरू हो गई. इस रस्म में करीब दो घंटे लगे, जिसके बाद देव विग्रहों को रथों पर बैठाया गया.
भव्य रथ - तलध्वज (बलभद्र), दर्पदलन (सुभद्रा) और नंदीघोष (जगन्नाथ) को श्रद्धालु श्री गुंडिचा मंदिर से खींचकर 12वीं शताब्दी के मंदिर, भगवान जगन्नाथ के मुख्य स्थान, तक ले जाएंगे, जो लगभग 2.6 किलोमीटर की दूरी है.
ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी और ओडिशा विधानसभा में विपक्ष के नेता नवीन पटनायक ने बहुड़ा यात्रा के शुभ अवसर पर लोगों को शुभकामनाएं दीं.
माझी ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘बहुड़ा यात्रा के अवसर पर सभी को शुभकामनाएं। भगवान की कृपा से सभी का जीवन सुख, शांति और समृद्धि से भरा हो.’’