रत्ना जी चोटरानी / हैदराबाद
भारत में भोजन को आस्था से अलग नहीं किया जा सकता. चाहे वे मुसलमान हों, यहूदी हों, सिख हों, ईसाई हों या हिंदू हों. पवित्र रसोई में लाखों लोगों की भूख मिटाने के लिए खाना पकाया जाता है, चाहे वह दरगाह शरीफ में मीठे चावल हो या यहूदियों के रोश हशाना के दौरान हलवा की कड़ाही हो, गुरुद्वारा में गुरु का लंगर हो या मंदिर का प्रशाद हो.
इस वर्ष मिलाद-उन-नबी यानी पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिन पर मस्जिद और दरगाह समितियां सभी धर्मों के लोगों के लिए भोजन की मेजबानी करेंगी, धार्मिक बाधाओं को तोड़ने में मदद करने के लिए मस्जिद में एक भोजन तैयार होगा जो सभी को परोसा जाएगा. वास्तव में यह दावत विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच समझ का पुल बनाने की रह में आयोजित होगी. सात देशों के जो संगठन इस कार्यक्रम का हिस्सा बनने के लिए आगे आए हैं
यह हैदराबाद में आयोजित होने वाले "विजिट माई मस्जिद" कार्यक्रम का दूसरा चरण होगा. पहले भी सभी धर्मों के लोगों के लिए कई मस्जिदें खोली गई थीं. अब उन्होंने मिलाद-उन-नबी पर सभी को भोजन परोसने का प्रस्ताव रखा है. हैदराबाद की मस्जिदों और विजयवाड़ा सहित भारत के अन्य हिस्सों में दरगाह समितियों के अलावा कई मस्जिदों और दरगाहों के दरवाजे खुलेंगे जो सभी का स्वागत करेंगें.
मज़हर हुसैन के कार्यकारी निदेशक COVA पीस नेटवर्क के अनुसार यह आयोजन "विजिट माई मस्जिद" आउटरीच कार्यक्रम के तहत हो रहा है उन्होनें बताया कि अतीत में भी लोग एकत्र होते थे और रोज़ा तोड़ते थे और प्रियजनों के साथ उत्सव का आनंद लेते थे.
खुसरो की लेखनी में उस समय की ईद की झलक मिलती है. वह लिखते हैं, लोग अपना रोज़ा ज़ालिबे-ए-नबात (जिसे वर्तमान जलेबी माना जाता है) और जौ, चीनी, किशमिश, जड़ी-बूटियों और मसालों से बना फुक्का के साथ तोड़ते थे. मेहमानों पर इत्र और गुलाब जल छिड़कने के लिए गिदबदारन (गुलाब जल के बर्तन) का उपयोग किया जाता था.
उपहारों और मीठे व्यंजनों का आदान-प्रदान आम बात थी.” शेष-ए-ईद पर, लोग रुकाक और चीनी पाइच (चावल या गेहूं और चीनी से बनी मिठाई) खाते थे और उपहार के रूप में बढ़िया रोटी और मीठा हलवा भेजते थे. मजहर हुसैन कहते हैं, यह तब भी एक प्रथा थी और अब भी है.
हालांकि इस साल मिलाद-उन नबी 28 सितंबर को है, लेकिन हैदराबाद में मुस्लिम धार्मिक नेताओं ने 23 से 27 सितंबर तक मिलाद उन नबी से संबंधित सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित होगा क्योंकि 28 सितंबर को गणेश विसर्जन है और साम्प्रदायिक एकता के कारण ये फैसला लिया गया. इस आयोजन के हिस्से के रूप में दरगाह और मस्जिदें 23 से 27 सितंबर के बीच किसी भी दिन मस्जिद में भोजन की मेजबानी करेंगी.
मज़हर हुसैन कहते हैं, इसका उद्देश्य केवल धार्मिक नेताओं को आमंत्रित करना नहीं है, बल्कि आस-पड़ोस के आम लोगों को आमंत्रित करना है, जिसमें सभी समुदायों से अधिक से अधिक युवाओं को शामिल करने पर विशेष ध्यान दिया गया है.
उन्होंने कहा कि कार्यक्रम को दुनिया भर में बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली है. अब इस बार भी सात देशों की 300 से अधिक मस्जिदें मिलाद-उन-नबी पर दोपहर का भोजन या रात का खाना आयोजित करने के लिए सहमत हुई हैं.
सात देशों के जो संगठन इस कार्यक्रम का हिस्सा बनने के लिए आगे आए हैं उनमें अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा, भारत, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका शामिल हैं जो इस कार्यक्रम में भागीदारी कर रहे हैं.
कार्यक्रम का हिस्सा बनने के लिए हैदराबाद में 20 से अधिक मस्जिदें आगे आई हैं. मस्जिद समितियों को मस्जिद में भोजन आयोजित करने और तस्वीरें अपलोड करने में सक्षम बनाने के लिए एक समर्पित वेबसाइट स्थापित की गई है.
मज़हर हुसैन कहते हैं कि मस्जिद में भोजन कार्यक्रम के दौरान पैगंबर मोहम्मद के जीवन और उनकी शिक्षाओं पर एक छोटी सी चर्चा अतिथि को बताई जाएगी. इसी तरह दरगाहों और मस्जिदों के प्रतिभागी गैर मुस्लिम मेहमानों से उनके धर्मों और पैगंबरों या संतों की मूल शिक्षाओं के बारे में सीखेंगे ताकि सभी की मूल शिक्षाओं को समझा जा सके.
यह एक तरह से एक-दूसरे के धर्मों की शिक्षाओं का आदान-प्रदान होगा. इसके बाद लंच या डिनर होगा. वह अन्य धार्मिक समुदायों के नेताओं के साथ उनके त्योहारों पर इसी तरह के दोपहर के भोजन या रात्रिभोज की बैठकों की मेजबानी करने के लिए भी बातचीत कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि इस तरह न केवल सौहार्द्र बढ़ता है, बल्कि एक स्पष्ट दृष्टिकोण भी विकसित हो सकता है और गलतफहमियां दूर हो सकती हैं.
मज़हर हुसैन ने कहा कि मिलाद-उन-नबी तो बस शुरुआत है. विभिन्न धार्मिक समुदायों के लिए मस्जिदों और दरगाहों को खोलने के अलावा त्योहार तक रक्तदान शिविर भी लगाए जाएंगे. उन्होंने कहा कि ट्विन सिटी में कई मस्जिदें वृद्धाश्रमों की मेजबानी, स्वास्थ्य शिविर चलाने, मलिन बस्तियों में बच्चों को मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराने जैसे परोपकारी कार्य कर रही हैं.
मज़हर हुसैन का कहना है कि इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी धर्मों के त्योहार को विभिन्न समुदायों के हमारे पड़ोसियों के साथ जुड़ने का अवसर बनाया जाए. यह न केवल मूल मूल्यों को साझा करने और एक-दूसरे के विश्वास को समझने के बारे में है, बल्कि भोजन साझा करने और एक-दूसरे के साथ आनंद लेने के बारे में भी है.