Rakshabandhan 2025: A priceless gift from a brother and sister – a second chance at life
आवाज द वॉयस/नई दिल्ली
रक्षाबंधन के इस पर्व पर, भाई-बहन के रिश्ते की मिसाल पेश करने वाली दो सच्ची कहानियां सामने आई हैं, जहां बहनों और भाइयों ने एक-दूसरे को सिर्फ़ राखी का धागा नहीं, बल्कि ज़िंदगी का दूसरा मौका दिया. यह संभव हुआ DKMS फ़ाउंडेशन इंडिया की पहल से, जो रक्त कैंसर और थैलेसीमिया जैसी रक्त संबंधी बीमारियों से लड़ने के लिए काम कर रही है.
भारत में हर साल करीब 10,000 बच्चे थैलेसीमिया मेजर के साथ जन्म लेते हैं. एक आनुवांशिक बीमारी, जिसमें गंभीर एनीमिया हो जाता है और रोगी को जीवनभर रक्त चढ़ाना पड़ता है. बिना इलाज के, ऐसे कई बच्चे 20 साल की उम्र से पहले ही जीवन खो देते हैं. इसका एकमात्र स्थायी इलाज है ब्लड स्टेम सेल ट्रांसप्लांट, लेकिन आर्थिक और ढांचागत बाधाओं के कारण यह सुविधा बहुत सीमित है. DKMS इंडिया का Access to Transplantation Program ऐसे ही परिवारों की मदद करता है.
अयान खान की कहानी
11 मार्च 2016 को जन्मे अयान खान को थैलेसीमिया मेजर था और उन्हें नियमित रक्त चढ़ाने की ज़रूरत पड़ती थी. उनके पिता, जो निर्माण मज़दूर हैं, इलाज के स्थायी उपाय की तलाश में थे. अक्टूबर 2022 में बेंगलुरु के नारायणा हेल्थ सिटी में DKMS फ़ाउंडेशन इंडिया के साथ आयोजित HLA-टाइपिंग कैंप में अयान की बड़ी बहन अल शिफ़ा का मैच बिल्कुल परफ़ेक्ट निकला. 1 मई 2023 को डॉ. सुनील भट्ट के निर्देशन में अयान का सफल ब्लड स्टेम सेल ट्रांसप्लांट हुआ. अब अयान पूरी तरह स्वस्थ हैं, उन्हें रक्त चढ़ाने की ज़रूरत नहीं है, और वे दूसरी कक्षा में पढ़ रहे हैं. उनकी बहन अल शिफ़ा सातवीं कक्षा में है.
पपाली गान की कहानी
15 मार्च 2015 को जन्मी पपाली गान भी थैलेसीमिया मेजर से पीड़ित थीं. फरवरी 2022 में आयोजित HLA-टाइपिंग कैंप में उनका छोटा भाई ओम प्रकाश परफ़ेक्ट मैच साबित हुआ. 15 अगस्त 2023 को पपाली का सफल ट्रांसप्लांट हुआ और आज वह बिना रक्त चढ़ाए सामान्य जीवन जी रही हैं. इस अनुभव ने पपाली के पिता को प्रेरित किया, और अब वे थैलेसीमिया से जूझ रहे अन्य परिवारों को जागरूक करने का काम कर रहे हैं.
DKMS फ़ाउंडेशन इंडिया के चेयरमैन पैट्रिक पॉल का कहना है कि अयान और पपाली की कहानियां दिखाती हैं कि रक्षाबंधन अब सिर्फ़ एक रस्म नहीं, बल्कि भाई-बहन के बीच जीवनदान का प्रतीक बन गया है. भारत में आनुवांशिक विविधता के कारण अनजान डोनर से मैच पाना कठिन है, और केवल 0.09% उपयुक्त आयु वर्ग के लोग ही ब्लड स्टेम सेल डोनर के रूप में रजिस्टर्ड हैं. इन कहानियों से साफ है कि सही समय पर की गई जांच और उपचार से न सिर्फ़ एक बच्चा, बल्कि पूरा परिवार नई ज़िंदगी पाता है.