मुगल मस्जिद है 'संरक्षित स्मारक': दिल्ली हाई कोर्ट में केंद्र सरकार

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 25-07-2022
मुगल मस्जिद है 'संरक्षित स्मारक': दिल्ली हाई कोर्ट में केंद्र सरकार
मुगल मस्जिद है 'संरक्षित स्मारक': दिल्ली हाई कोर्ट में केंद्र सरकार

 

नई दिल्ली. केंद्र सरकार ने सोमवार को दिल्ली एचसी को अवगत कराया कि कुतुब मीनार परिसर में मुगल मस्जिद एक संरक्षित स्मारक है। अदालत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा दक्षिणी दिल्ली की एक मस्जिद में कथित रूप से नमाज़ बंद करने को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी.  न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी को केंद्र सरकार के स्थायी वकील (सीजीएससी) कीर्तिमान सिंह ने अवगत कराया कि मुगल मस्जिद एक संरक्षित स्मारक है और इस मुद्दे से संबंधित मामला साकेत जिला न्यायालय के समक्ष लंबित है.

कीर्तिमान सिंह ने याचिका पर जवाब दाखिल करने के निर्देश लेने की मांग की.  पीठ ने निर्देश लेने के लिए समय दिया. मामले को आगे की सुनवाई के लिए 12 सितंबर, 2022 के लिए सूचीबद्ध किया गया है. एडवोकेट एम सूफियान सिद्दीकी ने सीजीएससी द्वारा किए गए सबमिशन पर आपत्ति जताई. उन्होंने कहा कि मुगल मस्जिद अधिसूचना के दायरे में नहीं आती है. नमाज यहीं नहीं रुकती. उन्होंने जल्द से जल्द तारीख का अनुरोध किया क्योंकि इस साल 13 मई को मस्जिद को बंद कर दिया गया है.
 
सुनवाई की आखिरी तारीख को भी पीठ ने निर्देश लेने का समय दिया था. यह मामला 'कुतुब परिसर' में स्थित एक मस्जिद का है.  हालांकि, यह 'कुतुब एनक्लोजर' के बाहर है. मस्जिद का नाम 'मुगल मस्जिद' है, और यह विवादित 'कुवततुल इस्लाम मस्जिद' नहीं है. याचिका में कहा गया है कि यह 16 अप्रैल, 1970 की अधिसूचना के तहत एक विधिवत राजपत्रित वक्फ संपत्ति है और एक विधिवत नियुक्त इमाम और मोअज़िन है.
 
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता एम सूफियान सिद्दीकी ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया था कि उक्त मस्जिद में नियमित रूप से नमाज अदा की जाती है और इसे कभी भी इबादत के लिए बंद नहीं किया गया है. उन्होंने प्रस्तुत किया था कि एएसआई के अधिकारियों ने बिना किसी 'नोटिस या आदेश' आदि की तामील किए बिना 13 मई, 2022 को पूरी तरह से गैरकानूनी, मनमानी और तेज़ तरीके से नमाज़ को पूरी तरह से रोक दिया था. आगे प्रस्तुत किया गया था कि उपासकों के मौलिक अधिकारों का लगातार उल्लंघन किया जा रहा है और यह सुनिश्चित करने के लिए कि 'कानून के शासन' की प्रधानता को संरक्षित और बरकरार रखा जाए. इस मामले को तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जा सकता है.