Nitish Kumar: A popular leader in Bihar politics, heading towards becoming Chief Minister for the 10th time
आवाज द वॉयस/ नई दिल्ली
कल बिहार में नई NDA सरकार के भव्य शपथ ग्रहण समारोह में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ कुल बाईस मंत्रियों ने पद और गोपनीयता की शपथ लेने की संभावना है, जो राज्य की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत का संकेत दे रहा है। सूत्रों के अनुसार, इस बार मंत्रिमंडल में बीजेपी के नौ विधायक, JDU के दस विधायक, और चिराग पासवान की LJP (राम विलास), जितन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवामी मोर्चा और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा के एक-एक विधायक शामिल हो सकते हैं।
नीतीश ओबीसी समुदाय से हैं और उनकी वाइफ मंजू कुमारी सिन्हा कायस्थ थी.मंजू कुमारी पटना में एक स्कूल टीचर थीं. 2007 में उनका निधन हो गया था. नीतीश कुमार अपनी बीवी से बेहद प्यार करते थे. पत्नी की अर्थी को कंधे पर उठाकर चिता तक ले जाने के दौरान लगातार रोते रहे.
बीजेपी के कोटे से शपथ लेने वाले नेताओं में सम्राट चौधरी, विजय सिन्हा, नितिन नविन, रेनू देवी, मंगल पांडेय, नीरज बाबलू, संजय सरावगी, हरि साहनी और राजनिश कुमार शामिल हैं, जिनमें से आठ नेता पिछली सरकार में मंत्री रह चुके हैं। पूर्व सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे सम्राट चौधरी इस बार विधानसभा में बीजेपी के नेता चुने गए हैं।
बीजेपी ने इस मंत्रिमंडल गठन में जातीय संतुलन बनाए रखने की कोशिश की है—दो भुमिहार नेता, दो EBC, और ब्राह्मण व राजपूत समुदाय से एक-एक नेता शामिल हैं। इसके साथ ही कायस्थ और वैश्य समुदायों का प्रतिनिधित्व भी सुनिश्चित किया गया है, जिससे मंत्रिमंडल की सामाजिक विविधता और संतुलन पर विशेष ध्यान दिया गया है।
परिचय और शुरुआती जीवन
नीतीश कुमार का जन्म 1 मार्च 1951 को बिहार के पटना जिले के बख्तियारपुर में हुआ था। उन्होंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई NIT (राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान) पटना से पूरी की। उनकी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत छात्र राजनीति से हुई, जब वे बिहार राज्य छात्र महासंघ से जुड़े। इसके बाद उन्होंने जनता पार्टी से राजनीति में कदम रखा और धीरे-धीरे राज्य की राजनीति में अपनी पहचान बनाई।

शुरुआती पढ़ाई
युवा नीतीश ने शुरू से ही पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन किया, वह बख्तियारपुर के लोकल स्कूलों में जाता था। उसकी शुरुआती पढ़ाई में सीखने का एक डिसिप्लिन्ड तरीका था, जो उसके माता-पिता ने उसे सिखाया था। 1950 और 1960 के दशक में बख्तियारपुर के स्कूलों में, हालांकि शहरी इलाकों की तरह रिसोर्स नहीं थे, लेकिन उन्होंने पढ़ाई-लिखाई और गिनती की बेसिक बातों में एक मज़बूत नींव दी। टीचरों ने उसकी काबिलियत को पहचाना और उसे हायर एजुकेशन करने के लिए बढ़ावा दिया, जो उस समय बिहार के ग्रामीण इलाकों में बहुत आम नहीं था।
हाई स्कूल की शिक्षा
श्री गणेश हाई स्कूल में नीतीश कुमार के हाई स्कूल के साल उनकी दिमागी काबिलियत को बढ़ाने में बहुत अच्छे थे। उन्हें एक मेहनती स्टूडेंट के तौर पर जाना जाता था, जो अक्सर अलग-अलग सब्जेक्ट में अपनी क्लास में टॉप करते थे। 20वीं सदी की शुरुआत में बने इस स्कूल की पढ़ाई में बहुत अच्छी पहचान थी, और नीतीश कुमार इसी माहौल में खूब फले-फूले। सेकेंडरी स्कूल की पढ़ाई के एग्ज़ाम में उनका परफॉर्मेंस बहुत अच्छा था, जिससे उन्हें राज्य के सबसे अच्छे साइंस कॉलेजों में से एक में एडमिशन मिला।
विश्वविद्यालय-पूर्व अध्ययन
पटना साइंस कॉलेज, जहाँ नीतीश कुमार ने अपनी प्री-यूनिवर्सिटी पढ़ाई की, अपने कॉम्पिटिटिव एकेडमिक माहौल के लिए मशहूर है। यहीं पर उन्होंने साइंस और मैथ की दुनिया में गहराई से जाना, ये ऐसे सब्जेक्ट थे जिन्होंने बाद में उनके पॉलिटिकल करियर में प्रॉब्लम-सॉल्विंग के उनके एनालिटिकल अप्रोच पर असर डाला। यह कॉलेज, जो ऐतिहासिक पटना यूनिवर्सिटी का हिस्सा है, कई स्कॉलर्स और लीडर्स के लिए एक न्यूट्रिशन ग्राउंड रहा है। 1960 के दशक के आखिर में कॉलेज में नीतीश कुमार का समय एजुकेशनल रिफॉर्म और इंटेलेक्चुअल डिबेट के दौर के साथ मेल खाता था, जिसने उन पर एक गहरी छाप छोड़ी।
इंजीनियरिंग की डिग्री
1972 में, नीतीश कुमार ने मशहूर बिहार कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बैचलर ऑफ़ साइंस की डिग्री ली, जिसे अब नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी पटना (NIT, पटना) के नाम से जाना जाता है। 1880 के दशक की शुरुआत में बने इस इंस्टीट्यूट में पढ़ाई में सख्ती और बेहतरीन होने की पुरानी परंपरा रही है। कॉलेज में अपने सालों के दौरान, नीतीश कुमार स्टूडेंट एक्टिविटीज़ में बहुत ज़्यादा शामिल थे और कई टेक्निकल क्लब के मेंबर थे। इस दौरान उनके एकेडमिक प्रोजेक्ट्स और रिसर्च इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के प्रैक्टिकल इस्तेमाल पर फोकस थे, जिससे बाद में पॉलिटिकल ऑफिस में इंफ्रास्ट्रक्चर की ज़रूरतों के बारे में उनकी समझ बढ़ी।
बिहार स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में प्रोफेशनल समय
अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी करने के बाद, नीतीश कुमार बिहार स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में शामिल हो गए, जो राज्य में बिजली डिस्ट्रीब्यूशन के लिए ज़िम्मेदार संस्था है। बोर्ड में उनके समय की खासियत बिजली सप्लाई की टेक्निकल चुनौतियों को हल करने के लिए प्रैक्टिकल तरीके से काम करना था। उन्होंने बिजली डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम की एफिशिएंसी को बेहतर बनाने के मकसद से कई प्रोजेक्ट्स पर काम किया, जिससे उन्हें कीमती अनुभव मिला जो उनके भविष्य के राजनीतिक कामों में उनके बहुत काम आया।
लगातार सीखते रहना
मुख्यमंत्री के तौर पर भी, नीतीश कुमार ने पर्सनली और अपनी पॉलिसी में शिक्षा को प्राथमिकता देना जारी रखा है। वे बिहार में एजुकेशनल सुधारों के हिमायती रहे हैं, और अच्छी स्कूली शिक्षा और हायर एजुकेशन के मौकों की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है। उनकी सरकार ने लिटरेसी रेट और एजुकेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने के लिए कई पहल शुरू की हैं, जो शिक्षा की बदलाव लाने वाली ताकत में उनके विश्वास को दिखाता है। सीखने और दुनिया की सबसे अच्छी प्रैक्टिस से अपडेट रहने का नीतीश कुमार का अपना कमिटमेंट उनके लीडरशिप स्टाइल की पहचान रहा है।
राजनीति में टेक्निकल समझ
नीतीश कुमार के इंजीनियरिंग बैकग्राउंड ने उन्हें राजनीति के मैदान में आने पर एक अनोखा नज़रिया दिया। टेक्निकल विषयों की उनकी जानकारी ने उन्हें इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को गंभीरता से लेने में मदद की, और एनर्जी पॉलिसी और डेवलपमेंट प्लानिंग से जुड़े मामलों पर अक्सर उनसे सलाह ली जाती थी। राजनीति के प्रति उनका नज़रिया प्रैक्टिकल समाधानों पर फोकस करने वाला था, जिसमें राज्य की विकास संबंधी चुनौतियों को हल करने के लिए उनकी टेक्निकल एक्सपर्टीज़ का इस्तेमाल किया गया।
राजनीतिक सफर और मुख्यमंत्री की पारी
नीतीश कुमार पहली बार 1985 में बिहार विधानसभा के सदस्य चुने गए। उनकी पहली मुख्यमंत्री बनने की पारी मार्च 2000 में मात्र सात दिन चली। लेकिन असली राजनीतिक पकड़ उन्हें 2005 में मिली, जब उन्होंने “जंगल राज” के बाद बिहार में विकास और सुशासन को मुख्य एजेंडा बनाया। इसके बाद वे लगातार मुख्यमंत्री पद पर बने रहे और उनकी छवि काम करने वाले नेता के रूप में बन गई।
गठबंधन राजनीति और पाला बदलने की रणनीति
नीतीश कुमार ने अपने राजनीतिक जीवन में कई बार गठबंधन बदलने की रणनीति अपनाई है। उन्होंने समय-समय पर एनडीए (BJP) के साथ गठबंधन किया और कभी-कभी महागठबंधन (RJD + कांग्रेस) के साथ भी हाथ मिलाया। यही कारण है कि आलोचक उन्हें “पलटू राम” के रूप में याद करते हैं, जबकि उनके समर्थक इसे राजनीतिक समझदारी और सत्ता संतुलन का परिचायक मानते हैं।
राज्य में 2015 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले लालू प्रसाद की पार्टी राजद, नीतीश की जदयू और कांग्रेस से महागठबंधन किया. इस चुनाव में महागठबंधन को सपष्ट बहुमत मिला और नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनी.
प्रसिद्ध घटनाएँ और महत्वपूर्ण मोड़
जेपी आंदोलन और आपातकाल: नीतीश कुमार ने जेपी आंदोलन में भाग लिया, जिसने उन्हें राजनीतिक पहचान और सामाजिक चेतना दी। 2015 विधानसभा चुनाव: महागठबंधन की जीत के बाद मुख्यमंत्री बने और राजनीतिक पारी मजबूत की।
2024 का राजनैतिक संकट: जनवरी 2024 में इस्तीफा दिया और फिर NDA के साथ लौटे। अब चौथी बार मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं, जो उनके राजनीतिक करियर का नया शिखर है।
विवाद और आलोचनाएँ
लगातार गठबंधन बदलने की उनकी रणनीति आलोचना का विषय रही। कुछ विवादित नेताओं को पार्टी में शामिल करने के कारण आलोचना हुई। विकास की तस्वीर हर जगह समान नहीं होने और जातीय समीकरण के कारण भी आलोचना सामने आती रही।
उपलब्धियाँ और लोकप्रिय छवि
नीतीश कुमार को अक्सर “सुशासन बाबू” कहा जाता है। उनके शासन में शिक्षा, स्वास्थ्य, महिलाओं के सशक्तिकरण और बुनियादी ढांचे में सुधार हुआ। उनकी योजनाओं में साइकिल योजना, स्कूल और कॉलेजों का विकास, तथा सामाजिक और जातीय संतुलन पर जोर शामिल है।
नीतीश कुमार की राजनीतिक यात्रा बिहार के लिए एक मिसाल है। एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर से लेकर चौथी बार मुख्यमंत्री बनने तक का उनका सफर साहस, राजनीतिक समझदारी और विकास पर केंद्रित दृष्टिकोण का प्रतीक है। उनकी नई पारी राज्य की राजनीति में विकास, सुशासन और गठबंधन राजनीति के नए अध्याय की शुरुआत करेगी।