नई दिल्ली
सर्वोच्च न्यायालय ने मुस्लिम पुरुषों द्वारा वकील के माध्यम से अपनी पत्नी को तीन तलाक भेजने की प्रथा पर गंभीर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि तलाक नोटिस में पति का हस्ताक्षर न होने पर यह वैध तलाक नहीं माना जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा
“अगर तलाकनामे पर पति का हस्ताक्षर नहीं है और वकील या कोई तीसरा पक्ष नोटिस भेजता है, तो महिला के लिए गंभीर नुकसान हो सकता है। भविष्य में जब वह पुनर्विवाह करना चाहे, तो नया पति तलाक को अवैध बताकर उसे रोक सकता है।”
अधिवक्ता-पति की प्रथा पर आपत्ति
टीवी पत्रकार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता रिजवान अहमद ने बताया कि उनके वकील-पति ने तलाक नोटिस भेजे, तलाक फाइनल किया और फिर पुनर्विवाह कर लिया। कोर्ट ने कहा, “किसी तीसरे पक्ष को महिला को तलाक नोटिस देने का अधिकार नहीं दिया जा सकता। यह मुस्लिम महिलाओं की गरिमा के खिलाफ है।”
शरिया कानून का पालन जरूरी
कोर्ट ने वकील-पति से कहा कि वे शरिया कानून के अनुसार वैध तलाक दें। महिला बेनज़ीर हीना को निर्देश दिया गया कि वह अपनी और अपने बच्चे की भलाई और शिक्षा के लिए आवेदन करें।
सर्वोच्च न्यायालय का संदेश\
न्यायालय ने मुस्लिम समुदाय में प्रचलित एकतरफा तलाक-ए-हसन प्रक्रिया की वैधता पर विचार करने का संकेत दिया और कहा कि यह निर्णय केवल शिक्षित या अदालत जाने में सक्षम महिलाओं तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि ग्रामीण और अशिक्षित महिलाओं के लिए भी न्याय सुनिश्चित करना होगा।






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