क्या शरिया कानून ‘गैर-अकीदतमंद मुसलमानों’ पर लागू होता है? इस याचिका की जांच करेगा सुप्रीम कोर्ट

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 29-04-2024
Supreme court of india
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नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट सोमवार को एक याचिका पर विचार करने के लिए सहमत हो गया, जिसमें यह घोषणा करने की मांग की गई है कि जो लोग मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा शासित नहीं होना चाहते हैं, उन्हें धर्मनिरपेक्ष कानून द्वारा शासित होने की अनुमति दी जानी चाहिए.

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने विस्तृत चर्चा के बाद याचिका पर केंद्र और केरल राज्य को नोटिस जारी किया. पीठ ने भारत के अटॉर्नी जनरल, आर वेंकांतरामनी से एक कानून अधिकारी को नामित करने के लिए कहा, जो अदालत की सहायता कर सके और मामले को जुलाई 2024के दूसरे सप्ताह में सुनवाई के लिए पोस्ट कर दिया.

याचिका केरल की सफिया पीएम नाम की एक महिला ने दायर की थी, जिसने कहा था कि वह एक अविश्वासी मुस्लिम है और इसलिए उसे मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरिया कानून) के बजाय विरासत के संबंध में भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925द्वारा शासित किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि उनके पिता गैर मुस्लिम हैं, लेकिन उन्होंने आधिकारिक तौर पर धर्म नहीं छोड़ा है.

याचिका में कहा गया, ‘‘शरिया कानून के अनुसार, जो व्यक्ति इस्लाम में अपनी आस्था छोड़ देता है, उसे उसके समुदाय से बाहर कर दिया जाएगा और उसके बाद वह अपनी पैतृक संपत्ति में किसी भी विरासत के अधिकार की हकदार नहीं होगी.’’

याचिका में कहा गया है कि शरिया कानून के मुताबिक कोई भी मुस्लिम व्यक्ति वसीयत के जरिये अपनी संपत्ति के एक तिहाई से अधिक की वसीयत नहीं कर सकता है. याचिका में कहा गया है कि उसके पिता उसे संपत्ति का 1/3से अधिक हिस्सा नहीं दे सकते हैं और शेष 2/3हिस्सा उसके भाई को दिया जाएगा, जो डाउन सिंड्रोम से पीड़ित था.

आगे कहा गया कि याचिकाकर्ता की एक बेटी थी और याचिकाकर्ता की मृत्यु के बाद, पूरी संपत्ति उसकी बेटी को नहीं मिलेगी, क्योंकि उसके पिता के भाइयों को भी हिस्सा मिलेगा.

‘‘धर्म छोड़ने के बाद भी विरासत के अधिकार पाने के किसी प्रावधान का अभाव, नागरिक को खतरनाक स्थिति में डालता है, क्योंकि न तो राज्य के धर्मनिरपेक्ष कानून और न ही धार्मिक कानून उसकी रक्षा करेंगे. याचिकाकर्ता की प्रार्थना है कि उसे भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925के प्रावधानों द्वारा शासित किया जाना चाहिए.श्श्

इसमें आगे कहा गया कि याचिकाकर्ता का दृढ़ता से मानना है कि शरिया कानून के तहत प्रथाएं मुस्लिम महिलाओं के प्रति अत्यधिक भेदभावपूर्ण हैं और इसलिए यह भारतीय संविधान के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं.

 

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