मलिक असगर हाशमी/ नई दिल्ली
समय का पहिया कैसे सब कुछ बदल देता है. कई वर्षों पहले कश्मीर के एक युवक को आतंकवादियों के भय से अपना मूल निवास स्थान छोड़कर किराए के मकान में रहने को मजबूर होना पड़ा था. दो दिन पहले वही आतंकवादियों पर काल बनकर बरस पड़ा. जी, हां यहां बात हो रही है भारतीय वायुसेना के एयर वाइस मार्शल हिलाल अहमद राठेर की.
दो दिन पहले जब भारत ने पाकिस्तान के 9 आतंकवादी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक कर उन्हें पूरी तरह तबाह कर दिया, तब इस अभूतपूर्व अभियान के पीछे एक शांत लेकिन सशक्त रणनीतिक दिमाग ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई-वह थे भारतीय वायुसेना के एयर वाइस मार्शल हिलाल अहमद राठेर.
कश्मीर के अनंतनाग जिले के मूल निवासी राठेर न सिर्फ भारतीय वायुसेना के तेजतर्रार अफसरों में गिने जाते हैं. बल्कि उन्होंने राफेल जेट को भारत तक पहुंचाने की रणनीति. डिलीवरी और उसके हथियारीकरण में भी निर्णायक भूमिका निभाई है.
फ्रांस से राफेल की उड़ान: जहां शुरू होती है ‘हैली’ की कहानी
2019 में जब भारतीय वायुसेना ने फ्रांस से राफेल लड़ाकू विमानों की पहली खेप हासिल की, तब बोर्डो-मेरिग्नैक से उड़ान भरते समय भारतीय टीम का नेतृत्व कर रहे थे एयर कमोडोर हिलाल अहमद राठेर—जिन्हें वायुसेना में प्यार से 'हैली' कहा जाता है.
वह फ्रांस में भारत के एयर अटैची के रूप में तैनात थे और राफेल जेट के 13 भारतीय विनिर्देशों के अनुसार तैयार किए जाने में फ्रांसीसी परियोजना प्रबंधन टीम के साथ समन्वय कर रहे थे..
राठेर ने न केवल तकनीकी निरीक्षण और उपकरण समन्वय में दक्षता दिखाई, बल्कि 7000 किलोमीटर लंबी उड़ान योजना को सटीकता से अंजाम दिया, ताकि ये लड़ाकू विमान एक पड़ाव के साथ ही भारत की धरती पर सही समय पर पहुंच सकें. चीन और पाकिस्तान के साथ बढ़ते तनाव के बीच राफेल की यह समयबद्ध डिलीवरी रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण थी.
वायुसेना में एक सशक्त पथप्रदर्शक
3,000 से अधिक दुर्घटनामुक्त उड़ान घंटों का रिकॉर्ड रखने वाले एयर वाइस मार्शल राठेर मिराज-2000, मिग-21 और किरण जैसे लड़ाकू विमानों पर महारत रखते हैं.
वह ग्वालियर एयरबेस की कमान भी संभाल चुके हैं—जो सभी प्रमुख एयर स्ट्राइक अभियानों का केंद्र रहा है.
2013 से 2016 तक वह वायुसेना के पश्चिमी कमान में डायरेक्टर फॉर फाइटर ऑपरेशंस रहे, जहां उन्होंने फाइटर पायलट्स की प्रशिक्षण, हथियार प्रणाली और परिचालन योजना पर सीधी निगरानी रखी.
उनके नेतृत्व में ऑपरेशनल तैयारी को जिस पैमाने पर अंजाम दिया गया, उसने भारत को पाकिस्तान और चीन के खिलाफ हवाई ताकत में स्पष्ट बढ़त दी.
एक कश्मीरी बेटे की उड़ान: नगरोटा से पेरिस तक
हिलाल राठेर का जीवन संघर्ष और संकल्प की मिसाल है. सैनिक स्कूल नगरोटा के छात्र रहे राठेर ने CBSE परीक्षा में टॉप किया और फिर हैदराबाद स्थित वायुसेना अकादमी से सर्वश्रेष्ठ पायलट के रूप में स्नातक हुए. उन्हें राष्ट्रपति की पट्टिका और ‘स्वॉर्ड ऑफ ऑनर’ से नवाज़ा गया..
उन्हें 1988 में IAF में कमीशन मिला और यह वही दौर था जब कश्मीर में उग्रवाद चरम पर था. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के बेटे होने के कारण उनके परिवार को कई बार धमकियों का सामना करना पड़ा. अपनी शादी से दो दिन पहले, उन्हें सुरक्षा कारणों से जम्मू के नगरोटा में एक किराए के दो कमरों के फ्लैट में जाना पड़ा.
अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञता और रणनीतिक कुशलता
राठेर ने न केवल देश में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपने कौशल का लोहा मनवाया. उन्हें 2011 में अमेरिका के वायु युद्ध कॉलेज में भेजा गया, जहां से उन्होंने डिस्टिंक्शन के साथ स्नातक किया. वे वेलिंगटन के डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज (DSSC) से भी प्रशिक्षित हैं और वहीं एक समय पर प्रशिक्षक भी रहे.
भारत के केवल चार रक्षा वायु अताशे में से एक होने का गौरव भी उन्हें प्राप्त है. वह फ्रांस में भारत के मिशन में कार्यरत हैं और राफेल जैसे उच्च-तकनीकी सौदों को अंजाम तक पहुंचाने में उनकी भूमिका केंद्रीय रही है.
रक्षा मंत्री से लेकर पायलट तक: सबके चहेते
जब 2019 में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह फ्रांस गए थे, तो एयर कमोडोर राठेर ने ही उन्हें राफेल की क्षमताओं की पूरी तकनीकी जानकारी दी थी. इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि अगले दिन जब शस्त्र पूजा का आयोजन हुआ, तो रक्षा मंत्री ने राठेर को अपने बिल्कुल पास खड़ा रखा.
पुरस्कार और सम्मान
वायुसेना पदक (VM) - 2010 में
विशिष्ट सेवा पदक (VSM) - 2016 में
2021 में कार्यवाहक एयर वाइस मार्शल के रूप में पदोन्नति
2023 में स्थायी रूप से एयर वाइस मार्शल
प्रेरणा का प्रतीक: राठेर की कहानी क्यों जरूरी है?
जहां कश्मीर से आने वाले युवाओं को अक्सर आतंकवाद और हिंसा के चश्मे से देखा जाता है, वहीं एयर वाइस मार्शल हिलाल अहमद राठेर की कहानी एक नई दिशा और प्रेरणा देती है.
उनके पिता लद्दाख स्काउट्स में सैनिक रहे और बाद में जम्मू-कश्मीर पुलिस में वरिष्ठ अधिकारी बने. अपने पिता को आदर्श मानते हुए राठेर ने न केवल सेना की परंपरा को आगे बढ़ाया, बल्कि भारतीय वायुसेना में एक असाधारण मिसाल कायम की..
उनके एक दोस्त के शब्दों में:
“हिलाल को बचपन से ही आसमान, सितारों और उड़ान से प्यार था. शायद इसलिए उनके पिता ने उनका नाम अरबी में ‘हिलाल’ यानी अर्धचंद्रमा रखा..”
भारतीय वायुसेना के इस ‘हैली’ की कहानी केवल एक अधिकारी की नहीं, बल्कि भारत के उस आत्मबल और पेशेवर उत्कृष्टता की कहानी है जो हर कश्मीरी युवा को यह विश्वास दिलाती है कि उनका सपना भी आसमान को छू सकता है.