✍️ साक़िब सलीम
पहले धर्म आता है या राष्ट्र?
इस सवाल को हम अकसर टीवी डिबेट्स, सोशल मीडिया पोस्ट्स और राजनीतिक भाषणों में सुनते हैं — खासतौर पर जब बात भारतीय मुसलमानों की आती है.लेकिन शायद सवाल ही गलत है.इसे यूँ पूछना चाहिए: आप परिवार और राष्ट्र में से किसे चुनेंगे?
भारतीय मुसलमानों ने इस प्रश्न का उत्तर शब्दों से नहीं, अपने लहू से दिया है — और बार-बार दिया है.इतिहास गवाह है कि जब भी मातृभूमि ने पुकारा, उन्होंने हर रिश्ते, हर भावना और हर निजी लगाव से ऊपर उठकर भारत को चुना.
जब भाई-भाई आमने-सामने हुए: मेजर यूनुस बनाम मेजर याक़ूब
1947के बंटवारे के दौरान भारतीय सेना के कई मुस्लिम अफसरों को भारत और पाकिस्तान में से एक को चुनने का विकल्प दिया गया.कुछ अफसर पाकिस्तान चले गए, लेकिन बहुत से अफसर भारत में ही रहे, भले ही उनके खून के रिश्तेदार दूसरी तरफ चले गए हों.
ऐसे ही दो भाई थे: साहिबजादा यूनुस खान और साहिबजादा याकूब खान, रामपुर के शाही परिवार से.दोनों ने द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीय सेना की सेवा की थी.बंटवारे के बाद याकूब ने पाकिस्तान चुना, जबकि यूनुस भारत में रहे.
कुछ ही महीनों बाद पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला किया, और भारत की सेना का नेतृत्व कर रहे मेजर यूनुस की टुकड़ी का सामना उस रेजिमेंट से हुआ जिसकी अगुवाई उनके छोटे भाई मेजर याक़ूब कर रहे थे.
दोनों भाई आमने-सामने थे — एक-दूसरे पर बंदूकें तानी हुई थीं। और यूनुस की गोली अपने छोटे भाई को जा लगी.घायल भाई को देखकर यूनुस ने चिल्ला कर कहा:"छोटे भाई, शोक मत करो. हम सैनिक हैं और हमने अपना कर्तव्य निभाया है."
युद्ध की इस त्रासदी में भी यूनुस अपने राष्ट्र धर्म से डगमगाए नहीं। बाद में मानेकशॉ और जसबीर सिंह जैसे अफसरों ने यूनुस के साहस और ईमानदारी की सराहना की.
मेजर शेख की कहानी: जब भाई का आदेश था हत्या का
1965 के भारत-पाक युद्ध में एक और कहानी इतिहास में दर्ज हुई, जिसमें देश और खून का रिश्ता आमने-सामने खड़ा था.मेजर मोहम्मद अली राज शेख भारतीय सेना की 16 घुड़सवार सेना (16 CAV) का नेतृत्व कर रहे थे.
उनके सामने थे उनके सगे भाई, जो पाकिस्तान की ओर से एक बख्तरबंद डिवीजन का नेतृत्व कर रहे थे.भारत की जीत सुनिश्चित होती दिखी, और मेजर शेख के नेतृत्व में पाकिस्तानी टैंकों को ध्वस्त किया जा रहा था.उनके भाई ने अपने ही भाई को रोकने के लिए हत्या का आदेश दे दिया.
लेफ्टिनेंट बेग को एक विशेष टीम के साथ भारतीय क्षेत्र में भेजा गया.रात के अंधेरे में उसने मेजर शेख को गोली मार दी.
शेख गंभीर रूप से घायल हो गए.बेग उनके रेजिमेंट एपॉलेट और जेब में रखा एक तावीज़ (जो मुसलमान सौभाग्य के प्रतीक के रूप में रखते हैं) लेकर लौट गया.
मेजर शेख ने अगले दिन अस्पताल में दम तोड़ दिया, और उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया.
इतिहास गवाह है: भारतीय मुसलमानों की निष्ठा पर सवाल मत उठाइए
इन घटनाओं को सिर्फ ‘किस्से’ मानकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.ये हमारे राष्ट्र के इतिहास का वह अध्याय हैं जो त्याग, कर्तव्य और देशभक्ति की मिसाल बन चुके हैं.
जाने-माने मुस्लिम पत्रकार एम. ग़ज़ाली खान लिखते हैं:"हिंदुत्व के कुछ तत्व यह समझने में विफल रहते हैं कि भारतीय मुसलमानों का देश के प्रति प्रेम किसी भी नागरिक से कम नहीं है."
रक्त से लिखा गया उत्तर
इसलिए अगली बार जब कोई भारतीय मुसलमान से यह पूछे कि "पहले धर्म या देश?", तो उससे यह पूछा जाना चाहिए —"क्या आप परिवार चुनेंगे या देश?"
और उसका जवाब पहले से ही इतिहास में दर्ज है:"हमने परिवार नहीं, भारत को चुना है। और अगर ज़रूरत पड़ी, तो फिर चुनेंगे — क्योंकि यही हमारा धर्म भी है और राष्ट्र भी."