-हवाई सेवा रद्द होने और वहां की अस्थिरता से देश को करोड़ों का राजस्व नुकसान
शाहनवाज आलम / नई दिल्ली
अफगानिस्तान में सत्ता पर तालिबान के काबिज को लेकर चल रहे संघर्ष और उथल पुथल का असर भारत के मेडिकल टूरिज्म पर पड़ना शुरू हो गया है. साउथ एशिया में बेहतर स्वास्थ्य सेवा के लिए मशहूर भारत में अफगानिस्तान से मरीजों का आना लगभग बंद हो गया है. जो पहले से अपॉइंटमेंट बुक थे, वह मरीजों के नहीं आने के कारण रद्द हो गए हैं. इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को करोड़ों रुपये का नुकसान होना तय है.
20 जुलाई 2021 को पर्यटन मंत्री जी. किशन रेड्डी ने राज्यसभा में बताया था कि वर्ष 2020 में मेडिकल टूरिज्म के लिए आने वाले लोगों में अफगानिस्तान का तीसरा स्थान है. बांग्लादेश से 54.33 फीसदी, इराक से 9.12 फीसदी और अफगानिस्तान से 8.87 फीसदी मरीज हैं.
देश में मेडिकल टूरिज्म, योग, आयुर्वेद पर्यटन, यूनानी, सिद्ध को बढ़ावा देने के लिए स्वास्थ्य विभाग, पर्यटन मंत्रालय विदेश मंत्रालय एवं दूतावास के साथ मिलकर विदेशों में काम कर रही है. इसके लिए भारत सरकार ने 166 देशों के नागरिकों को ऑनलाइन ई-पर्यटक वीजा देती है। बता दें कि देश के करीब 80 बड़े अस्पताल में विदेशी मरीज इलाज के लिए आते हैं.
पीएचडी चेंबर ऑफ कॉमर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर वर्ष करीब 35-40 हजार अफगान नागरिकों को मेडिकल वीजा जारी किया जाता है. जिससे देश को करीब 150 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार होता है. मरीजों के साथ कम से कम एक तीमारदार, दवाइयां, लॉजिंग, फूडिंग पर खर्च होता है.
इसके साथ ही वह आस-पास के पर्यटन स्थल पर घूमने जाते हैं. इससे देश की अर्थव्यवस्था पर विदेशी पैसे आते हैं. बीते वर्षों में लगातार वहां से आने वाले मरीजों की संख्या बढ़ी है, लेकिन कोविड-19 के कारण हवाई सेवा पूरी तरह से नहीं चलने के कारण मरीजों की रफ्तार में कमी आई है.
आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल बताते हैं, बीते 20 वर्षों से अफगानिस्तान में अस्थिरता के कारण वहां पर मेडिकल सुविधा का विकास नहीं हो पाया है, जबकि भारत ने मॉर्डन मेडिकल के मामले में दुनिया के विकसित देशों को पीछे छोड़ दिया है. वर्ल्ड क्लास मेडिकल फैसिलिटी, बेहतरीन डॉक्टर यूरोप और अमेरिका के मुकाबले सस्ते हैं. इस वजह से यहां मरीज आना पसंद करते है.
मेडिकल टूरिज्म कंसल्टेंट के तौर पर काम करने वाले डॉ. अभय बिश्नोई कहते है, खाड़ी और अफगान समेत साउथ एशिया के दूसरे देशों के मरीजों के भारत आने की कई वजह है. अफगानिस्तान और भारत के बीच का एयर फेयर कम है, जबकि यूरोप और अमेरिका का जाने का एयर किराया बहुत महंगा पड़ता है. दूसरा डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हुआ है. इसकी वजह से उन्हें इसका फायदा मिलता है. भारतीय भाषा, बोली, रहन-सहन और संस्कृति भी उन्हें मुतासिर करती है. इसकी वजह से यहां आते हैं, लेकिन राजनीतिक उथल पुथल के बाद सब खत्म हो गया है.
डॉ. बिश्नोई का दावा है कि मेडिकल टूरिज्म के लिए आने वाले लोग प्लान सर्जरी या ट्रीटमेंट के लिए आते हैं. उसे दवाई लेकर टाला भी जा सकता है. अगस्त, सितंबर में होने वाली सर्जरी लगभग रद्द हो गई है. मरीजों से राब्ता भी नहीं हो पा रहा है. अब वहां के लोगों की पहली प्राथमिकता जाना बचाना है.
गुड़गांव स्थित एक निजी अस्पताल के प्रवक्ता का कहना है कि अफगानिस्तान की स्थिति के कारण अमूमन सभी हवाई सेवाएं बंद होने की खबर है. भारतीय दूतावास भी काम नहीं कर रहा है. ऐसे में मरीजों को नए वीजा नहीं मिलेंगे, वैसे में अभी मरीजों के आने का सवाल ही नहीं उठता है.