विजय देवरकोंडा की "किंगडम" – एक बार देखी जा सकने वाली एक्शन फिल्म

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 31-07-2025
Vijay Deverakonda's
Vijay Deverakonda's "Kingdom" - A must watch action movie

 

आवाज द वाॅयस /नई दिल्ली
 

 

फिल्म का नाम: Kingdom
निर्देशक: गौतम तिन्ननूरी
कलाकार: विजय देवरकोंडा, सत्यदेव, भाग्यश्री बोर्से और अन्य
निर्माता: नाग वामसी, साई सौजंया
संगीत: अनिरुद्ध रविचंदर
छायांकन: गिरीश गंगाधरण, जोमन टी. जॉन
एडिटिंग: नवीन नूली


कहानी

1990 के दशक की पृष्ठभूमि पर आधारित यह कहानी सूर्य (विजय देवरकोंडा) नामक एक सिपाही की है, जो अपने लापता भाई शिवा (सत्यदेव) की तलाश कर रहा है। उसे पता चलता है कि शिवा श्रीलंका में है और एक तस्करी गिरोह का हिस्सा बन चुका है। सूर्य को गुप्त एजेंट के रूप में नियुक्त किया जाता है ताकि वह न केवल अपने भाई तक पहुंच सके, बल्कि पूरे कार्टेल का भंडाफोड़ भी कर सके।

जैसे-जैसे सूर्य गैंग में गहराई से शामिल होता है, वह शिवा के करीब पहुंचता है। अब सवाल यह है कि क्या शिवा को अपने भाई की असलियत पता चलेगी? क्या दोनों भाई एक हो जाएंगे या आमने-सामने खड़े होंगे?


पॉजिटिव पहलू

विजय देवरकोंडा ने इस बार एक गंभीर और ज़मीन से जुड़े किरदार को बड़ी सादगी और ईमानदारी से निभाया है। उनका अभिनय कहीं भी ओवरड्रामैटिक नहीं लगता, बल्कि वो अपने किरदार की भीतरी उथल-पुथल को शांति से पेश करते हैं। उनके और सत्यदेव के बीच कुछ सीन प्रभावशाली बन पड़े हैं। सत्यदेव की स्क्रीन उपस्थिति मजबूत है, लेकिन स्क्रिप्ट उन्हें अपनी पूरी प्रतिभा दिखाने का मौका नहीं देती।

वेंकीतेश ‘मुरुगन’ के किरदार में दिखते हैं और सीमित समय में असर छोड़ते हैं। इंटरवल से पहले का ब्रिज फाइट सीन, क्लाइमेक्स और कुछ अच्छे एक्शन सीक्वेंस फिल्म को थोड़ा जीवंत बनाते हैं। ये दृश्य यह संकेत देते हैं कि शायद आगे चलकर एक सीक्वल भी आ सकता है।


नेगेटिव पहलू

करीब दो वर्षों के लंबे निर्माण काल के बावजूद ‘किंगडम’ की कहानी ज़्यादा प्रभावशाली नहीं बन पाई है। फिल्म की स्क्रिप्ट बहुत जानी-पहचानी लगती है और इमोशनल गहराई की कमी खलती है। निर्देशक गौतम तिन्ननूरी, जो आमतौर पर किरदार आधारित फिल्में बनाते हैं, इस बार स्टाइलिश अप्रोच में चले गए, लेकिन भावनात्मक जुड़ाव पीछे छूट गया।

फिल्म का मूल भाव—दो भाइयों का रिश्ता—पूरा प्रभाव नहीं छोड़ता। कई भावनात्मक सीन अधूरे लगते हैं और बिना असर के निकल जाते हैं। भाग्यश्री बोर्से का किरदार भी अधूरा-सा लगता है, मानो किसी सीक्वल में उसका विस्तार किया जाएगा। सत्यदेव का किरदार भी गहराई से लिखा नहीं गया है, जिससे वह अपनी पूरी प्रतिभा नहीं दिखा पाते।

सहायक किरदार और साइड रोल्स केवल कहानी को आगे बढ़ाने के साधन लगते हैं, ना कि पूरी तरह से विकसित पात्र। फिल्म में ऐसे कई दृश्य हैं जो अन्य फिल्मों की याद दिलाते हैं, जिससे मौलिकता की कमी महसूस होती है।


तकनीकी पक्ष

गौतम तिन्ननूरी की सोच में दम तो था, लेकिन स्क्रिप्ट से पर्दे तक आते-आते वह भावनात्मक और कथानक की गहराई कहीं खो गई। फिल्म एक ताज़ा दृष्टिकोण देने की जगह अलग-अलग एक्शन ड्रामा तत्वों का कोलाज बनकर रह गई है।

हालाँकि फिल्म की सिनेमैटोग्राफी सराहनीय है। गिरीश गंगाधरण और जोमन टी. जॉन ने लोकेशनों को खूबसूरती से कैप्चर किया है, खासकर एक्शन सीन्स में। इन दृश्यों ने फिल्म को एक विज़ुअल अपील दी है।

अनिरुद्ध रविचंदर का बैकग्राउंड स्कोर ठीक-ठाक है, लेकिन कुछ खास या यादगार नहीं बन पाता। फिल्म का एडिटिंग (नवीन नूली द्वारा) और बेहतर हो सकता था, खासकर दूसरे हिस्से में, जहां रफ्तार सुस्त पड़ जाती है। प्रोडक्शन क्वालिटी अच्छी है और बजट फिल्म पर साफ नज़र आता है।

कुल मिलाकर ‘किंगडम’ एक बार देखी जा सकने वाली एक्शन ड्रामा है। विजय देवरकोंडा का संयमित अभिनय और फिल्म का लुक व लोकेशन फिल्म को संभालते हैं। हालांकि भावनात्मक जुड़ाव की कमी और कमजोर पटकथा फिल्म को खास बनने से रोकती है। अगर आप बहुत ज़्यादा उम्मीदों के साथ न जाएं, तो यह फिल्म एक ठीक-ठाक सिनेमाई अनुभव दे सकती है।