मोहम्मद रफी और सुरैया का कनेक्शन : अनसुने किस्से

Story by  अर्सला खान | Published by  [email protected] | Date 31-07-2025
Mohammad Rafi and Suraiya's connection: Unheard stories
Mohammad Rafi and Suraiya's connection: Unheard stories

 

अर्सला खान/नई दिल्ली
 
31 जुलाई 1980 को जब मोहम्मद रफी इस दुनिया से रुख़सत हुए, तो ऐसा लगा जैसे पूरी कायनात एक दर्दभरे सन्नाटे में डूब गई हो। लेकिन उनकी आवाज़, उनका जादू और उनका संगीत आज भी वैसा ही जीवंत है जैसे उनके ज़िंदा रहने के दिनों में था. 

आज उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए न सिर्फ उनके गाए हजारों गीतों का जिक्र जरूरी है, बल्कि उस खास रिश्ते का भी ज़िक्र लाज़मी है जो उनका मशहूर गायिका और अभिनेत्री सुरैया से था—एक ऐसा रिश्ता जो इंसानियत, सम्मान और संगीत की साझी भावना से भरा था.
 
सुरैया और रफी: सुरों की साझी इबादत

यह बात तब की है जब रफी साहब मुंबई के भिंडी बाज़ार इलाके की एक चॉल में रहते थे. सुबह 3:30 बजे उठकर वे मरीन ड्राइव के किनारे रियाज़ के लिए निकल जाते थे ताकि किसी को तकलीफ न हो. एक रोज़, सुरैया—जो उस समय की स्थापित गायिका और अदाकारा थीं—ने उन्हें रोका और पूछा कि वह रोज़ सुबह यहां क्यों आते हैं. रफी साहब ने विनम्रता से चॉल में रियाज़ से दूसरों को परेशानी न हो, यह कारण बताया.
 
सुरैया उनके समर्पण से इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने अपने घर में ही रफी साहब को रियाज़ के लिए एक कमरा दे दिया. उन्होंने न केवल एक संगीतकार की ज़रूरत समझी, बल्कि उसे एक संगीतमय सहारा भी दिया. यह रिश्ता ना तो प्रेम प्रसंग था, ना ही कोई व्यावसायिक गठजोड़—बल्कि यह दो आत्माओं का संगीत के प्रति एक साझा समर्पण था.
 
मोहम्मद रफी: एक फकीर, एक सुरों का सिपाही

पंजाब के कोटला सुल्तान सिंह गांव में 24 दिसंबर 1924 को जन्मे रफी बचपन से ही सुरों से रिश्ता बना बैठे थे। गांव में आने वाले एक फकीर को सुनकर वे उसकी नकल उतारते और खुद भी गाने लगे. कहा जाता है कि वही फकीर उन्हें देखकर बोला था—"तू एक दिन बड़ा आदमी बनेगा, दुनिया तुझे याद रखेगी।. और फकीर की वह बात सच साबित हुई. रफी ने 28,000 से अधिक गाने गाए—हर रंग, हर मूड, हर भाव का। उनके गाए गीतों से लाखों दिल जुड़े और आज भी जुड़े हुए हैं.
 
 
 
एक ऐसी विरासत जो खत्म नहीं होती

सुरैया के घर से शुरू हुआ वो रियाज़ का सफर, स्टूडियो की बुलंदियों तक पहुंचा। और जब 31 जुलाई 1980 को रफी साहब ने आखिरी सांस ली, तब भी उनके चाहने वाले उनके गीतों को गा रहे थे. उनके जनाज़े में शामिल होने के लिए करीब 10,000 लोग उमड़े. कुछ लोग तो उनकी कब्र की मिट्टी अपने साथ घर ले गए। यह सब बताता है कि रफी केवल गायक नहीं, एक एहसास थे.
 
 
 
आज भी ज़िंदा है वो आवाज़

मोहम्मद रफी के गीत आज भी शादी-ब्याह, विदाई, प्रेम, पीड़ा, देशभक्ति—हर मौके पर हमारी ज़िंदगी का हिस्सा हैं और उनकी सुरैया से जुड़ी उस संवेदनशील कहानी ने रफी को इंसान के रूप में भी उतना ही महान साबित किया, जितना वह एक गायक के रूप में थे.
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

A post shared by Yaqoob Ali (@yaqoobais)

 
 
31 जुलाई को हम उन्हें सिर्फ याद नहीं करते, हम उन्हें फिर से सुनते हैं—और महसूस करते हैं कि रफी कभी मरे ही नहीं, वो हर दिल में गूंजते हैं... हर सुर में, हर सांस में.
 
कोई मोहब्बत नहीं, बस मोहब्बत जैसी इज़्ज़त

इस रिश्ते में ना कोई ग्लैमर था, ना गॉसिप. यह उस दौर की एक खूबसूरत मिसाल थी जब कलाकार एक-दूसरे के प्रति अपनापन और परवाह रखते थे.सुरैया ने कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि वह एक सुपरस्टार थीं और रफी ने कभी इस बात का दुरुपयोग नहीं किया.
 
 
जिस कमरे में रफी साहब रियाज़ करते थे, वही उनका पहला मंच बन गया. उसी रियाज़ ने आगे चलकर उन्हें सुरों का शहंशाह बना दिया. धीरे-धीरे नौशाद जैसे संगीतकारों की नज़र उन पर पड़ी और रफी का सफर शुरू हुआ. भले ही रफी और सुरैया ने साथ में गाने गाए हों या नहीं, लेकिन रफी ने एक बार कहा था—"अगर सुरैया जी ने मुझे वो कमरा न दिया होता, तो शायद मैं वो रियाज़ नहीं कर पाता, जो मेरी गायकी की बुनियाद बना."