ट्रेजिक गुडबाय से बचें: जाकिर खान की तथास्तु और अमिताभ बच्चन की गुडबाए का एक ही सार

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 07-12-2022
ट्रेजिक गुडबाय से बचें: जाकिर खान की तथास्तु और अमिताभ बच्चन की गुडबाए का एक ही सार
ट्रेजिक गुडबाय से बचें: जाकिर खान की तथास्तु और अमिताभ बच्चन की गुडबाए का एक ही सार

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली 

गुडबाय का मतलब होता है अलविदा और जब हमारी जिंदगी का कोई बेहद करीबी हमसे अचानक बिना किसी प्लानिंग के गुडबाय कह दे, तो उससे ज्यादा ट्रेजिक क्या हो सकता है? अभी हाल ही में इसी भावना को स्पष्ट करने के लिए दो रचनाएं देखने को मिली जिनका सार मात्र यही है कि घर पहले बाकी सब बाद में. पहली जाकिर खान की तथास्तु और दुसरी विकास बहल की फिल्म गुडबाय. 

तथास्तु में जाकिर खान ने जिक्र किया की कैसे उन्होनें अपने परिवार को दरकिनार किया जब वो अपना करियर बनाने चले गए दूसरे शहर तो फिर परिवार को नजरअंदाज कर दिया जिसके बाद उन्होनें अपने दादाजी को भी खो दिया.
 
वहीँ फिल्म गुडबाय में भी सेम स्टोरी है सभी बच्चें अपने माता पिता को छोड़कर दूर अलग अलग शहरों में नौकरी कर रहें हैं लेकिन किसी को परिवार की कोई फ़िक्र नहीं और अंत में जब उनकी मां मर जाती है तो ये पता चलते ही उन सभी को झटका लगता है कि आखरी वक़्त में असल में फिल्म GoodBye का फलसफा इन पंक्तियों से बयान होता है, 'जीवन अलविदा के बारे में नहीं है बल्कि अलविदा कहने के लिए बहुत सारी अच्छी यादें बनाने के बारे में है.' 
 
अपनी 'सख्ती' से फैंस के लबों पर हंसी लाने वाले ज़ाकिर खान ट्रेंड में हैं. वजह है तथास्तु, एक स्टैंड-अप कॉमेडी स्पेशल, जो अमेज़न प्राइम वीडियो इंडिया पर मौजूद है. हंसी मजाक गुदगुदी और गंभीरता समेटे हुए 90 मिनट के इस शो को ज़ाकिर ने ही लिखा और निर्देशित भी किया है.
 
यह शो कॉमेडी का डोज भरपूर देता है और ज़ाकिर खान के अंदाज में देता है. जैसा शो का ट्रेलर है इसमें उन संघर्षों को, चुनौतियों को, उन तानों को दिखाया गया है जो एक मिडिल क्लास मां बाप अपने जवान बच्चों को देते हैं. चाहे वो आप या हम हों या फिर कोई और मिडिल क्लास. 
 
अपने इस शो के जरिये जाकिर न केवल खुद पर हंसते हैं बल्कि छोटी छोटी बातों के जरिये आपको एहसास कराते हैं कि परिवार का सुख, उससे जुडी चुनौतियां क्या होती हैं? शो भले ही 90 मिनट का हो लेकिन जाकिर की बदौलत 90 मिनटों बाद जब आप उठते हैं तो न केवल तारो ताजा महसूस करते हैं बल्कि जेहन में कई अहम सवाल भी होते हैं. बतौर एक्टर / परफ़ॉर्मर यही जाकिर खान की खूबी है जो उन्हें अन्य स्टैंड अप कॉमेडियंस और परफॉर्मर्स से अलग करती है.
 
एक्‍ट‍िंग के मोर्चे पर फिल्म मजबूत है. हरीश भल्ला जैसे परंपरावादी और सख्त पिता की भूमिका में बिग बी अपने फुल फॉर्म में नजर आते हैं. बेटी और बेटों के साथ वैचारिक मतभेद वाले दृश्य हों या पत्नी की अस्थि विसर्जन वाला सीन अमिताभ बच्चन साबित करते हैं कि उन्हें महानायक क्यों कहा जाता है? 'पुष्पा' के बाद यहां तारा के रूप में रश्मिका का एक नया अंदाज देखने को मिलता है.
 
एक बागी तेवर और आधुनिक खयालों वाली लड़की के किरदार को उन्होंने खूबी से अंजाम दिया है. नीना गुप्ता इस तरह के किरदारों में हमेशा जान डालती हैं. बेटे के रूप में पावेल गुलाटी जमते हैं. दोस्त की भूमिका में आशीष विद्यार्थी ने खासा मनोरंजन किया है. एली अवराम और साहिल मेहता भी अपने किरदारों में अच्छे रहे हैं. पंडित की भूमिका में सुनील ग्रोवर कहानी को अपनी मंजिल तक पहुंचाने में कामयाब रहे हैं.
 
दोनों ही रचनाओं के माध्यम से ये मेसेज लोगों को पहुंचाने की कोशिश की गई है कि परिवार सबसे पहले है जब कोई इस दुनिया से चला जाता है तो केवल यादें ही आपका सहारा बनती है तो अपनी परिवार को वक़्त दें.