मलिक असगर हाशमी/ नूंह ( हरियाणा )
‘‘हमें पढ़ाई के लिए ऐसी जगह की तलाश थी जहां इस्लामिक माहौल के साथ कानून-व्यवस्था की अधिक गंभीर समस्या न हो, इसलिए हमने दक्षिण भारत को चुना.’’ यह कहना है कि मेवात से बच्चों को उच्च शिक्षा एवं प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने को कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल के शिक्षण संस्थानों में दाखिले के लिए प्रेरित और इसके लिए रास्ता तैयार करने वाले अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता रमजान चौधरी का.
चौधरी के बारे में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया से हाल में सेवानिवृत्त हुए आसिफ अली चंदैनी कहते हैं, ‘‘मेवात के बच्चों और उनके अभिभावकों को रास्ता दिखाकर रमजान चैधरी सवाब का काम कर रहे हैं.’’
दरअसल, हरियाणा के इस मुस्लिम बहुल, पर सबसे पिछड़े इलाके की सबसे बड़ी समस्या यह है कि यहां बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव के साथ उच्च शिक्षा और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोई छोटा-बड़ा कोचिंग संस्थान नहीं है. यहां तक कि गिनती के स्कूल-कॉलेज ही हैं. यूनिवर्सिटी की स्थापना की मांग को लेकर मेवात के बुद्धिजीवी पिछले कई वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं.
यही नहीं, दिल्ली से तकरीबन 50 किलोमीटर दूर बसे तब्लीगी जमात की शुरुआत के लिए जाने-जाने वाले मेवात की एक मुख्य समस्या यह भी है कि यहां के अधिकांश लोग इतने मजहबी हैं कि हर कदम पर इसके हर पहलू पर गौर करते हैं. यहां तक कि आपको आमतौर से इलाके की महिलाएं ही नहीं छोटी बच्चियां भी हर समय सिर ढके मिलेगी.
आसिफ कहते हैं,‘‘ तमाम रोकावटों के बावजूद देश के दूसरे हिस्से की तरह अब मेवात के लोगों में भी अपने बच्चे-बच्चियों को पढ़ाई के अलावा खेल-कूद, मीडिया, सिनेमा, गायकी जैसे अन्य क्षेत्रों में आगे बढ़ाने की ललक जागी है, जिसके परिणाम दिखने भी लगे हैं.’’
रमजान चौधरी के स्कूल के बच्चे
इन तमाम अच्छे संकेतों के बावजूद मेवात की बच्चियां ‘अपने जैसा माहौल’ और ‘बेहतर सुरक्षा’ के कारण आला पढ़ाई के लिए उतनी संख्या में आगे नहीं आ पा रही हैं, जितनी पिछड़े मेवात को अच्छे लोगांे की जरूरत है.
‘आवाज द वाॅयस’ से बात करते हुए रमजान चौधरी ने बताया कि काफी समय तक आर एंड डी करने और लोगों से संपर्क करने के बाद हमने आखिर इस समस्या का तोड़ निकाल लिया. चूंकि दक्षिण भारत के तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक के कई शहरों में इस्लामिक माहौल और बेहतर काूनन व्यवस्था के साथ पढ़ाई के अच्छे-सस्ते साधन उपलब्ध हैं.
इस लिए पढ़ाई के जरिए कुछ बेहतर करने की तमन्ना रखने वाले बच्चे अब उस ओर रूख करने लगे हैं.‘‘ रमजान चैधरी कहते हैं-‘‘ इनमें लड़कियों की संख्या उम्मीद से कहीं ज्यादा है.’’ खुद उनकी बेटी शमा परवीन और शहनाज सहित तीन लड़कियों ने बीएमएस से डाॅक्टरी की पढ़ाई पूरी की है.
रमजान चौधरी बताते हैं,‘‘ अब तो मेवात से दक्षिण भारत के शिक्षण संस्थानों में छोटी क्लास में दाखिले भी शुरू हो गए हैं. उन्हें संस्थान की ओर से पढ़ाई के लिए स्काॅलरशिप दी जाती है. शिक्षण संस्थाएं मेवात आकर स्काॅलरशिप केलिए टेस्ट लेती हैं. इसी तरह का एक टेस्ट मई के महीने होने वाला है.
मेवात के बच्चे-बच्चियां अधिकतर गुलबर्ग के फालकोन एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज, कोझीकोड, केरल के जामिया मरकज और कलाबुर्गी के शाहीन एकेडमी में दाखिला लेना चाहते हैं. चौधरी के मुताबिक, इन संस्थानों में इस्लामिक माहौल, सुरक्षा के अलावा पढ़ाई का बेहतर माहौल और सुविधाएं हैं .
स्काॅलरशिप के आधार पर अब तो हैदराबाद के इकबाल काॅलेज में भी मेवात के लड़के-लड़कियों को दाखिला मिलने लगा है. बताते हैं कि अभी भी मेवात की 25 लड़कियां दक्षिण भारत के शिक्षण संस्थानों में आला तालीम हासिल कर रही हैं.
रमजान चौधरी कहते हैं कि फाॅलकन मेडिकल काॅलेज में मेवात के किसी विद्यार्थी का यदि दाखिला मंजूर होता है और परिवार वाले बदहाल आर्थिक दशा के कारण पढ़ाने की स्थिति में नहीं होते हैं, तब वे उनकी मदद मेवात के सजग लोगों से करवाते हैं.
रमजान चौधरी ने इस बारे में दिलचस्प बात बताई. उनके मुताबिक, मेडिकल में सेलेक्शन होने पर प्रत्येक वर्ष एक छात्र को पढ़ाई पर कम से कम डेढ़ लाख रूपये खर्च करने पड़ते हैं. ऐसे में शिक्षण संस्थान को कन्विंस कर एक लाख रुपये की फीस माफ करा दी जाती है. शेष 50,000 रुपये का इंतजाम हम लोग मिलकर करते हैं.
इस पैसे का इंतजाम करने के लिए एक-एक बच्चा मेवात के एक-एक सजग व्यक्ति को ‘गोद’ दे दिया जाता है. बच्चे को ‘गोद’ देने से पहले भव्य कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. वहीं इस बारे में लोगों को जानकारी दी जाती है.
जो दिलचस्पी दिखाता है उसे बच्चे की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है.किसने, किस बच्चे को गोद लिया, यह गोपनीय रखा जाता है, ताकि बच्चे पर किसी तरह का मानसिक दबाव न पड़े.
रमजान चौधरी ने बताया कि वह मेडिकल में ऐसी पांच बच्चियों की पढ़ाई पूरी करा चुके हैं. उन्होंने बताया कि छोटी क्लास की पढ़ाई की जिम्मेदारी उठाने के लिए 2021 में 147 बच्चों ने टेस्ट दिए थे, जिनमेें से 27 को दाखिले में कामयाबी मिली. इनमें 25 प्रतिशत लड़कियां हैं.
रमजान चौधरी के स्कूल के बच्चे
रमजान चौधरी अधिवक्ता और प्रखर सामाजिक कार्यकर्ता के अलावा मेवात की राजधानी कहे जाने वाले नूंह में एक स्कूल भी चलाते हैं. इसलिए इस तरह की गतिविधियां के संचालन में उन्हें काफी आसानी होती है. वह बताते हैं कि मेवात से दक्षिण भारत के शिक्षण संस्थानों में बच्चों को दाखिला दिलाने का काम वह 2012-13 से कर रहे हैं.
आज स्थिति यह है कि वहां बच्चों को दाखिला दिलाने के इच्छुक अभिभावक काफी संख्या में उनके पास पहुंचते हैं. चैधरी कहते हैं,‘‘ चूंकि वह एक दशक से यह काम कर रहे हैं, इसलिए दक्षिण भारत के शिक्षण संस्थानों में उनकी काफी पकड़ बन गई है. वह जिस बच्चे को दाखिले के लिए भेजते हैं, आसानी से हो जाता है.
पूर्व बैंक कर्मचारी आसिफ अली चंदैनी कहते हैं कि रमजान चैधरी के प्रयासों से मेवात के अभिभावकों में सबसे बड़ा बदलाव यह आया है कि जो इस्लामिक माहौल में अपने खर्चे पर खास तौर से बच्चियों को आला तालीम देना चाहते हैं, वे अपने प्रयासों से बड़ी संख्या में दक्षिण भारत का रूख करने लगे हैं.
हालत यह है कि मेडिकल-नान मेडिकल की प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले भी वहां जा रहे हैं. हाॅयर स्कूल की परीक्षा देकर चेन्नई से अवकाश पर आए जमील खान कहते हैं-‘‘वहां थोड़ी लैंग्वुज प्राब्लम जरूर है, पर रहते-रहते एडजस्मेंट हो जाता है.’’