सर सैयद की 206 वीं जयंती पर बोले न्यायमूर्ति अताउर रहमान मसूदी- यात्रा की दिशा सफलता और विफलता का निर्धारण करती है

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 18-10-2023
Justice Atau Rahman Masoodi said on the 206th birth anniversary of Sir Syed – The direction of travel determines success and failure.
Justice Atau Rahman Masoodi said on the 206th birth anniversary of Sir Syed – The direction of travel determines success and failure.

 

आवाज द वाॅयस /अलीगढ़

एक संस्था की जब यात्रा शुरू होती है, वह एक व्यक्तिगत संस्था की यात्रा हो सकती है, पर यात्रा की दिशा एक सामूहिक लक्ष्य की ओर होनी चाहिए, क्योंकि यह शुरुआत नहीं है जो सफलता या विफलता का निर्धारण करती है, बल्कि यह वह उद्देश्य है जिसकी प्राप्ति के लिए संस्थाएं आगे बढ़ती हैं. यही उनकी सफलता या असफलता का निर्धारण करती है.

यह कहना है प्रख्यात न्यायविद अताउरहमान मसूदी का. वह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैयद अहमद खान की 206वीं जयंती के अवसर पर एएमयू के गुलिस्तान-ए-सैयद में आयोजित भव्य सर सैयद दिवस स्मृति समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में छात्रों और शिक्षकों को संबोधित कर रहे थे.

न्यायमूर्ति मसूदी ने भारतीय संविधान से अपने विचार का संदर्भ लेते हुए कहा कि प्रस्तावना के शुरुआती शब्द भारत के लोगों से ‘मैं’ द्वारा निरूपित स्वयं से जुडी धारणाओं को त्यागने और ‘हम’ की भावना को आत्मसात करके निर्धारित लक्ष्यों की ओर बढ़ने का होना चाहिए.

उन्होंने कहा कि आज इस तथ्य का आकलन करना महत्वपूर्ण है कि एक व्यक्ति या एक संस्था के रूप में हममें से हर कोई एक बड़े सामूहिक का हिस्सा बनने में सक्षम हो पाया है या नहीं.

न्यायमूर्ति मसूदी ने एएमयू में प्रवेश पाने की अभिलाषा के साथ 1985 में एएमयू की अपनी यात्रा को याद करते हुए इसे कानूनी अध्ययन को अपने करियर के रूप में चुनने के लिए एक बड़ी प्रेरणा बताया और अपनी सफलता का श्रेय एएमयू परिसर में अपने अल्पकालीन प्रवास को दिया, जब उन्हें वरिष्ठ छात्रों से सर्वश्रेष्ठ सलाह और आतिथ्य मिला.

मानद अतिथि, सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी और जामिया मिलिया इस्लामिया के पूर्व कुलपति सैयद शाहिद महदी, जो एएमयू के पूर्व छात्र भी हैं, ने सर सैयद पर दो-राष्ट्र सिद्धांत के निर्माता या अलगाववादी होने के आरोपों की निंदा करते हुए फरवरी 1884 में लाहौर से प्रकाशित एक अखबार में छपी खबर का हवाला देते हुए कहा कि लाला संगम लाल के नेतृत्व में आर्य समाज के एक प्रतिनिधिमंडल ने सर सैयद से मुलाकात की. उन्हें केवल मुसलमानों के लिए नहीं बल्कि सभी भारतीयों के लिए आवाज उठाने के लिए धन्यवाद दिया.


शाहिद महदी ने कहा कि लाला संगम लाल का कहना था कि यह उनके लिए बहुत गर्व और खुशी की बात है कि सर सैयद जैसे महान सुधारक भारत में बसते हैं.महदी ने इस बात पर जोर दिया कि सर सैयद के व्यक्तित्व के इस पहलू का और गहराई से अध्ययन किया जाना चाहिए और सार्वजनिक जानकारी के लिए इसे प्रकाश में लाया जाना चाहिए.

एक अन्य मानद अतिथि संजीव सराफ (संस्थापक, रेख्ता फाउंडेशन) ने कहा कि अलीगढ़ और उर्दू उनके लिए पर्यायवाची हैं. जब उन्होंने पहली बार उर्दू भाषा और साहित्य को बढ़ावा देने के लिए काम करने के बारे में सोचा, तो यह अलीगढ़ ही था जो इस सन्दर्भ में एक सर्वोत्तम और सर्वाधिक संसाधनों के केंद्र के रूप में उनके दिमाग में आया.

उन्होंने कहा कि अलीगढ़ के इतिहास के पन्ने कई उर्दू कवियों और लेखकों की कहानियां बताते हैं और कई उर्दू उत्कृष्ट कृतियों की उत्पत्ति इसी स्थान से हुई है.सराफ ने कहा कि प्रगतिशील आंदोलन की शुरुआत से बहुत पहले ही प्रगतिशील कविता की शुरुआत अलीगढ़ में हो चुकी थी.

यह वास्तव में सर सैयद के उर्दू गद्य के साथ संघर्ष का ही परिणाम था कि उनके ही समय में उद्देश्यपूर्ण कविता के बीज अंकुरित हुए थे.मानद अतिथि डॉ. लारेंस गौटियर (सेंटर डी साइंसेस ह्यूमेन, नई दिल्ली) ने सर सैयद को सबसे विपुल व्यक्तित्वों में से एक के रूप में याद किया.

उन्होंने कहा कि भारत के सबसे महत्वपूर्ण सुधारकों में से एक के रूप में सर सैयद का प्रभाव न केवल मुसलमानों के लिए बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण रहा है.गौटियर ने टिप्पणी की कि एक महान सुधारक की पहचान यह है कि वह ऐसे कार्यों का समूह छोड़ता है जो समय के साथ ठहरे नहीं रहते, बल्कि संवाद को बढ़ावा देते हैं और उनके उत्तराधिकारी उस पर आगे निर्माण कर सकते हैं.

इसी तरह शेख अब्दुल्ला ने अपनी पत्नी के साथ मिलकर लड़कियों के लिए एक स्कूल की स्थापना की, जो बाद में प्रसिद्ध विमेंस कॉलेज बन गया. इस प्रकार उन्होंने न केवल सर सैयद ने जो किया उसे दोहराया बल्कि उन्होंने वास्तव में बदलती परिस्थितियों के आलोक में उनकी विरासत को आगे बढ़ाया.

अपने अध्यक्षीय भाषण में, कुलपति प्रोफेसर मोहम्मद गुलरेज ने इस शुभ अवसर पर दुनिया भर में एएमयू बिरादरी को बधाई दी. कहा कि यह दिन निश्चित रूप से एक महान व्यक्ति, उसकी दृष्टि, उसके संकल्प, उसकी प्रतिबद्धता, उसके प्रयास और योगदान के उत्सव का दिन है.

प्रोफेसर गुलरेज ने कहा कि अलीगढ़ का शैक्षिक उद्देश्य उस समय के अन्य कॉलेजों से भिन्न था, क्योंकि इसमें सामूहिक चेतना, लोकतांत्रिक दृष्टिकोण और एक व्यापक बौद्धिक जागृति पर जोर दिया गया था.

सर सैयद चाहते थे कि उनके छात्र एक विचार प्रक्रिया का निर्माण करें. अंधी आज्ञाकारिता पर सवाल उठाएं. सही और गलत के बीच अंतर करें. निडर बनें. नैतिकता और सहिष्णुता की गहरी भावना रखें और एक ऐसा व्यक्तित्व पैदा करें जिसका प्रदर्शन ही प्रभावशाली हो.

उन्होंने कहा कि सर सैयद चाहते थे कि अलीगढ़ एक बौद्धिक और सांस्कृतिक केंद्र बने जो संपूर्ण भारतीय विरासत को संरक्षित रखे. सामाजिक सद्भाव, समग्र संस्कृति, समावेशिता और सामूहिक विकास के प्रति सर सैयद की प्रतिबद्धता एएमयू के संस्थागत आचरण का मार्गदर्शन करती रही है.

प्रोफेसर गुलरेज ने हाल के वर्षों में विश्वविद्यालय की उपलब्धियों को गिनाते हुए कहा कि एएमयू को एनआईआरएफ रैंकिंग में देश का 9 वां सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय, इंडिया टुडे रैंकिंग में तीसरा सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय और टाइम्स हायर एजुकेशन रैंकिंग में 6 ठा स्थान हासिल हुआ है.

वर्ष 2023 में यूएस न्यूज एंड वर्ल्ड रिपोर्ट में एएमयू के गणित विभाग को देश में सर्वश्रेष्ठ और विश्व में 137 वां स्थान प्राप्त हुआ है.उन्होंने आगे कहा कि विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को लागू करने में एक बड़ी प्रगति की ह.

सीखने की प्रक्रिया को और अधिक नवीन और उद्योग-उन्मुख बनाने के लिए कुछ नए कार्यक्रम शुरू किए हैं, जिनमें एम.एससी. साइबर सुरक्षा, एम.एससी. डेटा साइंस, बी.टेक. और एम.टेक. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, विजुअल आर्ट्स में बैचलर और मास्टर, चार साल का एकीकृत शिक्षण कार्यक्रम, आईटीईपी, आदि शामिल हैं.

कुलपति ने छात्रों से आग्रह किया कि वे अपना दिन कक्षा और पुस्तकालय में, अपनी शाम खेल और स्वस्थ बहसों में बिताएं. रात को अच्छी नींद लें. ढाबों पर अपना कीमती समय बर्बाद करने से बचें.

कुलपति ने यह भी घोषणा की कि बुधवार को विश्वविद्यालय सहित संबंधित स्कूलों में शिक्षण कार्य निलंबित रहेगा.इससे पूर्व, एएमयू रजिस्ट्रार मोहम्मद इमरान ने स्वागत भाषण दिया.मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति मसूदी और कुलपति प्रोफेसर गुलरेज ने जनसंपर्क कार्यालय द्वारा अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू में ‘भाषा और साहित्य पर सर सैयद का प्रभाव‘ विषय पर आयोजित अखिल भारतीय निबंध लेखन प्रतियोगिता के विजेताओं को सम्मानित किया. तीनों भाषाओं में प्रथम, द्वितीय और तृतीय पुरस्कार विजेताओं को नकद पुरस्कार के रूप में क्रमश 25,000, 15,000 और 10,000 रूपये तथा एक स्मृति चिन्ह और प्रशंसा प्रमाण पत्र से सम्मानित किया गया.

इस अवसर पर इनोवेशन काउंसिल और यूनिवर्सिटी इनक्यूबेशन सेंटर द्वारा आयोजित इन-हाउस स्टूडेंट्स रिसर्च कन्वेंशन के विजेताओं को भी उनकी अभिनव प्रस्तुतियों के लिए सम्मानित किया गया.

प्रोफेसर आयशा मुनीरा रशीद (अंग्रेजी विभाग) और प्रोफेसर तौकीर आलम, डीन, धर्मशास्त्र संकाय, और छात्रों, सुमराना मुजफ्फर और सैयद फहीम अहमद ने सर सैयद अहमद खान की शिक्षाओं, दर्शन, कार्यों और मिशन पर अपने विचार व्यक्त किए.

इस अवसर पर मुजीब उल्लाह जुबेरी (परीक्षा नियंत्रक), प्रोफेसर मोहम्मद मोहसिन खान (वित्त अधिकारी) और प्रोफेसर मोहम्मद वसीम अली (प्रॉक्टर) सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे.
डीन, छात्र कल्याण, प्रोफेसर अब्दुल अलीम ने धन्यवाद ज्ञापित किया.

कार्यक्रम का संचालन डॉ. फायजा अब्बासी एवं डॉ. शारिक अकील ने संयुक्त रूप से किया.सर सैयद दिवस कार्यकर्मों का आरम्भ यूनिवर्सिटी मस्जिद में फज्र की नमाज के बाद कुरान ख्वानी के साथ हुआ. तत्पश्चात कुलपति प्रोफेसर गुलरेज ने विश्वविद्यालय के शिक्षकों और अधिकारियों के साथ सर सैयद के मजार पर फातेहा पड़ा और पुष्पांजलि अर्पित की.