अफ़ग़ानिस्ताननामाः एक लड़ाका जिसने आधुनिक अफ़ग़ानिस्तान की नींव रखी

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 21-11-2021
अफगानिस्ताननामा
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हरजिंदर

मुगल एक बार जब भारत आए तो यहीं के होकर रह गए. उनकी तमामकोशिशों के बावजूद पूरा अफगानिस्तान कभी उनके कब्जे में नहीं आ सका. अकबर ने इसके लिए सबसे बड़ी कोशिश की लेकिन उसके हाथभी असफलता ही लगी.

कुछ इतिहासकारों ने लिखा है कि अकबर की ख्याति इसके समृद्ध खजाने की वजह से थी. उसकी सैनिक ताकत की वजह से नहीं. यह भी कहा जाता है कि मुगलों का विश्वास अफगानों से उठ गया था. अकबर ने तो कईं अफगानों कीजागीरें तक छीन ली थी. इसके विपरीत औरंगजेब ने अपनी फौज पर ध्यान दिया.किसी भी तरहसे पूरे भारत को अपने कब्जे में ले लिया, लेकिन अफगानिस्तान के मोर्चे पर वह भी ज्यादा कुछ नहीं कर सका.

इस बीच अफगानिस्तान के ज्यादातर हिस्सों को ईरान का सफाविद साम्राज्य अपने कब्जे में लेता जा रहा था, लेकिन वहां कुछ नई ताकतें भीसर उठाने लगी थीं. इन्हीं में एक स्थानीय लड़ाकाथा कंधार के खिलजी कबीले का मीरवाइज खान होटक.

अपने कबीलेपर मीरवाइज का प्रभाव इतना ज्यादा था कि उस इलाके में सफाविद साम्राज्य के सिपहसालारगुरगीन खान को भी उससे डर लगने लगा था. गुरगीन खानजॉर्जिया का रहने वाला था.उसकी फौज में ज्यादातर लोगजॉर्जिया के ही थे. जरूरत पड़ने पर ईरानी फौज भीउसकी मदद के लिए आ जाती थी.

गुरगीन खान ने मीरवाइज को रास्ते से हटाने और उसके प्रभाव का कम करने की काफी कोशिश की लेकिन नाकाम रहा. उसने मीरवाइज को गिरफ्तार क रके उसे ईरान के शहर इस फहान भेज दिया, लेकिन इस देश निकाले के बाद मीरवाइज और ज्यादा ताकतवर होकर उभरा.


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जल्द ही मीरवाइज कंधार लौटा और पूरे खिलजी कबीले ने विद्रोह कर दिया. गुरगीनखान को मार दिया गया और उसकी सेना में उन सभी लोगों को भी जो जॉर्जिया के थे. अब कंधार और उसके आस-पास का एक बड़ा इलाको मीरवाइज के कब्जे में था. जहां उसने होटक साम्राज्य की स्थापना की.

मीरवाइज को पता था कि ईरान जवाबी हमला बोलेगा, इसलिए उसने आस-पास के सभी कबीलों को भी अपने साथ जोड़ लिया. उसने उन्हें यह समझाया कि जब  तक ईरान का राज यहां से खत्म नहीं होगा अफगान कबीले आजाद नहीं होंगे.

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ईरान की पहली कोशिश यही थी कि मामला बातचीत से हीसुलझ जाए. लेकिन जब बात नहीं बनी तो ईरान सेना ने हमला बोला और उसे मुंह की खानी पड़ी. एक के बाद एक कई हमले हुए लेकिन ईरानी मीरवाइज की सुरक्षा को भेद नहीं पाए. इसके बाद ईरान ने बहुत बड़ी सेना भेजी, जिसने  शुरुआती लड़ाइयों में जीत भी हासिल कर ली. लेकिन इसबीच मीरवाइज ने बलूच कबीलों को भी अपने साथ जोड़ लिया. ईरानी फौज को बुरी तरह हरा दिया.

मीरवाइज ने 1717तक कंधार पर राज किया. वहअफगानिस्तान के ऐसे नायकों में है जिसे आज भी वहां सम्मान की नजर से देखा जाता है. कुछ लोग उसे आधुनिक अफगानिस्तान का निर्माता भी कहते हैं. लेखक स्अीवेन आॅटफिनोस्की नेतो उसे अफगानिस्तान का जार्ज वाशिंगटन तक कहा है.


जब मीरवाइज का निधन हुआ तो उसके भाई अब्दुल अज़ीज़ ने सत्ता पर कब्जा कर लिया. लेकिन उसका यह कब्जा ज्यादा दिन चला नहीं. जल्द ही मीरवाइज के बेटे महमूद ने अब्दुल अज़ीज़ का तख्ता पलट कर सत्ता पर कब्जा कर लिया. अपने चाचा पर उसका आरोप यह था कि वे अफगानिस्तान की सरपरस्ती स्वीकार करने के लिए तैयार थे.

उसके बाद महमूद ने वह कर दिखाया जिसकी उसके पिता ने कल्पना भी नहीं की होगी. उसने अपनी पहली लड़ाई प्रतिद्वंदी अफगान कबीले अब्दाली से लड़ी और उसे बुरी तरह परास्त कर दिया. इसके बादमहमूद ने जल्द ही यह समझ लिया कि ईरान का सफाविद साम्राज्य अब कमजोर हो रहा है. उसने ईरान पर हमला बोला और जल्द ही उसे अपने कब्जेमें ले लिया. इसके बाद उसने खुद को ईरानका शाह घोषित कर दिया.

हालांकि वह पूरे ईरान पर काबिज नहीं हो सका था. फिर एक तरफरू और दूसरी तरफ तुर्की का ओटोमन साम्राज्य ईरान में चल रही उथल-पुथल का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे थे. तेजी से बदलते इन हालात ने महमूद को कभी चैन से बैठने नहीं दिया.

 

महमूद के लिए सबसे बड़ी चुनौती न तो रूस से थी, न तुर्की से और न ही सफाविद साम्राज्य के लोगों से. असली चुनौती उसे अपने खानदान से ही मिलने वाली थी. 

 

नोट: यह लेखक के अपने विचार हैं

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )