अफगानिस्ताननामा : बाबर हिंदुस्तान का ही बादशाह होकर रह गया

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 13-11-2021
अफगानिस्ताननामा
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अफगानिस्ताननामा 19

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हरजिंदर

पानीपत की जंग तो बाबर नेजीत ली और दिल्ली सल्तनत पर भी उसका कब्जा हो गया लेकिन उसके खतरे अभी खत्म नहींहुए थे. एक तो वह अपने शासन का पूरे भारत में विस्तारकरना चाहता था और उसकी बाधाएं बहुत सी थीं.

दूसरी ओर कई दूसरे खतरे भी थे जो उसके राजमहल के आस-पास ही मंडरा रहे थे.इब्राहिम लोदी की माँ कोपेंशन देने के बाद बाबर ने मान लिया था कि अब उस तरफ से कोई खतरा नहीं लेकिन वह गलत था. कहा जाता है कि इब्राहिम लोदी की माँ, जिनका इतिहास में जिक्र बुआ के नाम से आता है,उन्होंने बाबर के रसोइयों से मिलकर उसे भोजन में जहर देने की कोशिश की.

लेकिन बाबर बचने में कामयाब रहा. इसी के साथ षड़यंत्र का पर्दाफाश भी हो गया और बुआ को हमेशा के लिए जेल में डाल दिया गया.बाबर अभी आगरा में ही थाजब उसे खबर मिली कि मेवाड़ का राजा राणा सांगा अपनी सेना के साथ हमला बोलने आ रहा है.

बाबर के लिए यह बड़ी परेशानी का कारण इसलिए भीथा बाबर के कुछ बागी हो गए अफगान सलाहकार राणा सांगा से जा मिले थे. उसने आगे बढ़कर मुकाबला करने की ठानी. दोनों की लड़ाई खनवा नाम की जगह पर हुई जो इस समय राजस्थानके भरतपुर में है.

यह भारत की पहली लड़ाई है जिसमें बंदूकों का भी इस्तेमाल हुआ.  तोपों और बंदूकों केबावजूद बाबर के लिए यह एक कठिन लड़ाई थी. दिल्ली सल्तनत के जितने भी शुरुआती दस्ते आगे गए सबको राणा की फौज ने मार गिराया.

बाबर को जीत मुश्किल दिख रही थी, लेकिन तभी राणा सांगा की सेना के एक सिपहसालार छह हजार सैनिकों बाबर की सेना से आ मिले और फिर लड़ाई का पूरा रुख ही बदल गया. जीत जरूर बाबर की सेना को मिल गई लेकिन वह बुरी तरह घायल राणा सांगा को नहीं पकड़ सकी.

तभी बाबर को यह खबर मिली कि राणा सांगा मालवा के राजा मेदनी राय के राज्य में शरण ले चुका है और अपने घावों का इलाज करने के साथ ही फिर से अपनी फौज खड़ी करने की तैयारी कर रहा है. बाबर ने मेदनी राय को प्रस्ताव भेजा कि अगर वह राणा सांगा को उसे सौंप दे तो उसके बदले में उन्हें शमशाबाद का इलाका दे दिया जाएगा.

लेकिन मेदनी राय ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। अब बाबर ने तयकिया कि उसे मालवा पर हमला बोलना होगा.अगली जंग चंदेरी में हुई जो मेदनी राय का गढ़ था और इस समय मध्य प्रदेश के अशोक नगर जिले का एक कस्बा है.

बाबर के लिए यह लड़ाई खनवा जितनी कठिन नहीं थी लेकिन इतिहास में इसे किसी और कारण से याद किया जाता है.बाबर सेना ने थोड़ी सीजंग के बाद ही किले पर कब्जा कर लिया. कब्जा होते ही राज परिवार की सभी महिलाओं ने जौहर कर लिया.

दुशमन के हाथपड़ने के बजाए उन्होंने खुद को आग के हवाले करना बेहतर समझा. इतना ही नहीं राजा के बहुत से वफादार सैनिकों ने खुद एक दूसरे को मार कर प्राण त्याग दिए.हालांकि बाबर पर इसका कोईअसर नहीं पड़ा.

कम से कम बाबरनामा में तो उसने इस घटना के बारे में कुछ नहीं लिखा.अगले कुछ महीनों में बाबर ने कईं और छोटी मोटी लड़ाइयां लड़ीं और भारत के एक बड़े हिस्से पर कब्जा जमा लिया. अब उसके साम ने सवाल था कि इसके आगे क्या ?

बाबर के जो सैनिक उसके साथ काबुत से चले थे,अपने वतन से बिछड़े हुए उन्हें दो साल से ज्यादाका समय हो चुका था और वे लौटने के लिए बेचैन हो रहे थे.बाबरनामा बताता है किखुद बाबर भी रह-रह कर काबुल को याद करता था.

उसे यहां का मौसम रास नहीं आता था लेकिन सब से ज्यादा जो चीज परेशान करती थी वह यह थी कि यहां उस तरह के फल नहीं थे जैसे काबुल में मिल जाते थे. दूसरी तरफ बाबर की बेटी गुलबदन उनसे पूछ रही थी कि हम इतनी दूर इस गर्म देश में क्या कर रहे हैं.लेकिन बाबर के लिए अब लौटने का कोई अर्थ नहीं था.

यहां वह पूरे हिंदुस्तान का सुल्तान था, अगर वह लौटता तो वह सिर्फ काबुल का ही बादशाह होता. मध्य एशिया कावह पूरा देश कभी उसके कब्जे में आ ही नहीं सका जिसे उसने एक नाम दिया था-अफगानिस्तान.जाहिर है कि यह फैसला मुश्किल रहा होगा लेकिन बाबर ने तय किया कि अब वह यहीं अपने वंश की नींव तैयार करेगा. और इसी के साथ ही मुगल वंश की स्थापना हुई.

एक ऐसा दौर शुरू हुआ जिसने इस देश को हमेशा के लिए बदल दिया.अब अफगानिस्तान बस उसकीइ स आखिरी ख्वाहिश में था कि मरने के बाद से उसे काबुल में दफन किया जाए. मरने के बाद भी बाबर के लिए काबुल पहुंचना इतना आसान नहीं था.

1530 की सर्दियों में जब बाबर को निधन हुआ तो उसे सबसे पहले आगरा में ही दफन किया गया. बाद में उसके शव को वहां से ले जाकर काबुल के बाग-ए-बाबर में उसका मकबरा बनवाया गया. उसके मृत शरीर को भी काबुल पहंचने के लिए एक दशक से ज्यादा का इंतजार करना पड़ा. 

नोट: यह लेखक के अपने विचार हैं

( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )