नौशाद अख्तर/ गया ( बिहार)
एक छोटे से गाँव से निकलकर दुबई और शारजाह के चमचमाते स्टेडियमों में लंबे छक्के लगाना, यह एक सपने के सच होने जैसी कहानी है.बिहार के गया जिले के रहने वाले शोएब खान ने इस सपने को हकीकत में बदल दिया है.उनका चयन आईपीएल की फ्रेंचाइजी दिल्ली कैपिटल्स की सहयोगी टीम दुबई कैपिटल्स की डेवलपमेंट टीम में हुआ है, जो पूरे बिहार के लिए गर्व की बात है.वर्तमान में, शोएब वहाँ डेवलपमेंट लीग में खेल रहे हैं, जहाँ उनके शानदार प्रदर्शन ने सभी का ध्यान खींचा है.
बिहार के एक अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र इमामगंज के कोठी गाँव से निकलकर दुबई के क्रिकेट मैदानों में अपनी पहचान बनाना शोएब की हिम्मत, लगन और संघर्ष की कहानी है.जिस गाँव में शिक्षा और खेल की बुनियादी सुविधाएँ भी मुश्किल से मिलती थीं, वहाँ के एक बच्चे ने अपने सपनों को पंख दिए.
शुरुआत में संघर्ष और परिवार का साथ
शोएब के पिता, अदीब खान उर्फ जुगनू खान, एक किसान और सामाजिक कार्यकर्ता हैं.नक्सलवाद से प्रभावित और पिछड़े क्षेत्र होने के बावजूद, उन्होंने अपने परिवार में शिक्षा को हमेशा प्राथमिकता दी.
खुद एलएलबी की डिग्री धारक होने के कारण, उन्होंने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी.उन दिनों गाँव में अच्छे स्कूल नहीं थे, तो उन्होंने शोएब का दाखिला गया शहर के ज्ञान भारती स्कूल में कराया.
यहीं से शोएब का क्रिकेट के प्रति जुनून गहरा हुआ.शुरुआत में उनके माता-पिता उनके खेल करियर को लेकर आशंकित थे, लेकिन शोएब की जिद और जुनून के आगे उन्हें झुकना पड़ा.
शोएब के बड़े भाई, अल्तमश खान, जो संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के तहत जिला आपदा प्रबंधन में एचआरवीसीए के पद पर कार्यरत हैं, ने बताया कि स्कूल स्तर पर खेलने के बाद शोएब ने जिला और राज्य स्तर के टूर्नामेंटों में भी भाग लिया.
इस दौरान उनका चयन जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, दिल्ली में हुआ, जहाँ उन्होंने अपनी पढ़ाई के साथ क्रिकेट को भी जारी रखा.यहाँ उन्होंने अपने प्रदर्शन से विश्वविद्यालय टीम में जगह बनाई और देश के कई बड़े खिलाड़ियों के साथ चैरिटी मैच और यूनिवर्सिटी डेवलपमेंट टूर्नामेंट में हिस्सा लिया.
रणजी टीम में निराशा और दुबई का नया अवसर
शोएब का सपना भारत के लिए खेलना था, लेकिन बिहार रणजी टीम में जगह न मिलने से वे काफी निराश हो गए थे.एक समय तो उन्होंने क्रिकेट छोड़ने का मन बना लिया था.
तभी, दुबई में क्रिकेट खेलने की वैकेंसी की खबर मिली.शोएब ने तुरंत वहाँ जाने की तैयारी शुरू कर दी.उनके पिता ने उनका पूरा साथ दिया.महीनों तक घर से पैसे भेजते रहे.धीरे-धीरे, शोएब ने दुबई और शारजाह के कई क्लबों में खेलना शुरू किया और एक पेशेवर क्रिकेटर के रूप में अपनी पहचान बनाई.
शोएब की मेहनत रंग लाई और अब वे दुबई इंटरनेशनल टीम के साथ कॉन्ट्रैक्ट हासिल कर चुके हैं.क्लब क्रिकेट में उनके लगातार बेहतरीन प्रदर्शन के कारण उन्हें मैच खेलने के लिए पैसे भी मिलने लगे हैं.
दुबई की क्रिकेट पिच ने शोएब के सपनों को एक नई उड़ान दी है.उनकी शानदार फील्डिंग के लिए इमिरेट्स क्रिकेट बोर्ड ने भी उन्हें सम्मानित किया है.पिछले साल, उन्हें प्लेयर ऑफ द मैच और बेस्ट फील्डर टूर्नामेंट का अवार्ड भी मिला.
दुबई कैपिटल्स में धमाकेदार शुरुआत
शोएब ने आईएलटी20 (ILT20) डेवलपमेंट लीग में दुबई कैपिटल्स के लिए अपने पहले मैच में ही शानदार प्रदर्शन किया.उन्होंने अपनी पहली इनिंग में 3छक्के और 1 चौके की मदद से 35रनों की ताबड़तोड़ पारी खेली, जिससे उनकी टीम को 5 रनों से रोमांचक जीत मिली.
इस प्रदर्शन ने न केवल टीम को पहली जीत दिलाई, बल्कि शोएब ने अपनी टीम की तरफ से दूसरे सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज भी बने.नक्सल प्रभावित कोठी गाँव के एक खिलाड़ी का दुबई की चमचमाती टी20लीग में ऐसा प्रदर्शन करना वाकई अविश्वसनीय है.उनके इस प्रदर्शन की खबरें जब गाँव पहुँचीं, तो वहाँ जश्न का माहौल छा गया.
शोएब के भाई अल्तमश खान ने बताया कि अगर शोएब आईएलटी20डेवलपमेंट लीग में अच्छा प्रदर्शन करते हैं, तो उनका नाम अमीरात क्रिकेट बोर्ड (ECB) की अंतरराष्ट्रीय आईएलटी 20 2026 सत्र के ऑक्शन में आएगा.
उन्हें उम्मीद है कि उन्हें किसी न किसी टीम मेंऔर शायद खुद दुबई कैपिटल्स में, जगह मिल जाएगी.अल्तमश ने यह भी बताया कि शोएब का सपना है कि वे एक दिन आईपीएल में खेलें और अगर वे अमीरात की टीम में चुने जाते हैं, तो उन्हें एक विदेशी खिलाड़ी के तौर पर आईपीएल में खेलने का मौका मिल सकता है.
पिता जुगनू खान: बेटे का पहला कोच और मार्गदर्शक
शोएब खान की सफलता के पीछे उनके पिता जुगनू खान का त्याग और समर्थन सबसे बड़ा है.एक नक्सल प्रभावित और पिछड़े क्षेत्र में रहने के बावजूद, जहाँ 1990 से 2010 तक नक्सली घटनाएँ और असुरक्षा आम थी, उन्होंने अपने बच्चों की शिक्षा और सपनों के साथ कोई समझौता नहीं किया.
वे खुद बताते हैं कि खेती-किसानी भी नक्सलियों के डर से मुश्किल हो गई थी.इन मुश्किल परिस्थितियों के बावजूद, उन्होंने गयाजी में अपने बच्चों को हॉस्टल में रखकर उच्च शिक्षा दिलाई.
जुगनू खान बताते हैं कि जब शोएब गया के एक निजी स्कूल में पढ़ता था, तब क्रिकेट के जुनून ने उसे आसान रास्ता नहीं दिया.स्कूल में छुट्टियों के दौरान, जुगनू उसे रोजाना मोटरसाइकिल से 100 किलोमीटर दूर गयाजी के गांधी मैदान ले जाते थे, जहाँ वह प्रैक्टिस करता था.
मैट्रिक तक की पढ़ाई के दौरान भी शोएब की प्रैक्टिस का पूरा इंतजाम किया गया.बाद में परिवार ने गाँव के अपने खेत में एक पिच तैयार करवाई, जहाँ शोएब नियमित रूप से अभ्यास करता था.
शोएब ने मात्र 6साल की उम्र से ही क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था.उनके पिता के अनुसार, यह शौक बचपन से ही उनमें गहरा था.12साल की उम्र में ही शोएब ने अपने गाँव कोठी में 'कोठी क्लब' की स्थापना की, ताकि गाँव के बच्चे भी क्रिकेट का आनंद ले सकें.उन्होंने खुद मैदान भी तैयार कराया था.
पिता जुगनू खान कहते हैं, "भारत में क्रिकेट का एक अलग ही जुनून है, लेकिन खिलाड़ियों की भीड़ इतनी ज्यादा है कि पिछड़े गाँव से राष्ट्रीय टीम में जगह बनाना बेहद कठिन होता है.बिहार रणजी टीम के कई कैंप में शोएब का चयन हुआ, लेकिन मुख्य मैच में मौका नहीं मिला.दुबई से मिली वैकेंसी शोएब के लिए सही साबित हुई."
शोएब खान की यह कहानी न केवल एक खिलाड़ी की सफलता की है, बल्कि यह एक परिवार के संघर्ष, एक पिता के त्याग और एक छोटे से गाँव के बड़े सपनों की भी कहानी है.
यह साबित करती है कि अगर हौसला बुलंद हो तो कोई भी बाधा, चाहे वह नक्सलवाद हो या संसाधनों की कमी, आपके सपनों को पूरा करने से रोक नहीं सकती.शोएब आज दुबई के क्रिकेट मैदान पर अपने हर छक्के और चौके के साथ अपने गाँव और बिहार का नाम रोशन कर रहे हैं, और उनके इस सफर ने कई युवाओं को भी बड़े सपने देखने की प्रेरणा दी है.