बधिर क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान इमरान शेख: चाट बेचते-बेचते बन गए कोचिंग स्टार

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 28-09-2025
Imran Sheikh, former captain of the deaf cricket team: From selling chaat to becoming a coaching star
Imran Sheikh, former captain of the deaf cricket team: From selling chaat to becoming a coaching star

 

मलिक असगर हाशमी/नई दिल्ली

भारत के खेल जगत में कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं जो सिर्फ़ सफलता की गाथा नहीं होतीं, बल्कि मानवीय जीवटता और अटूट संकल्प की मिसाल बन जाती हैं.गुजरात के वडोदरा शहर से निकली इमरान शेख की कहानी भी ऐसी ही है.ये वह शख़्सियत हैं जिन्होंने एक समय भारतीय बधिर क्रिकेट टीम की कमान संभाली और देश को विश्व कप जिताया, लेकिन विडंबना देखिए कि क्रिकेट के उपेक्षापूर्ण रवैये के कारण उन्हें अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए सड़क किनारे 'हेल्दी चाट' की दुकान लगानी पड़ी.

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आज, चार साल बाद, जब दुनिया ने लगभग मान लिया था कि उनके क्रिकेट करियर का अंत हो चुका है, तो किस्मत ने एक बार फिर उन्हें मैदान पर ला खड़ा किया है.इस बार एक असाधारण कोच की भूमिका में.इमरान शेख़ आज सी. ए. पटेल लर्निंग इंस्टिट्यूट स्कूल की क्रिकेट टीम को प्रशिक्षित कर रहे हैं.यह उनकी वापसी का एक शानदार अध्याय है, जो इस बात का प्रमाण है कि जुनून कभी मरता नहीं.

इमरान शेख (जन्म 1985) का क्रिकेट करियर किसी प्रेरणा से कम नहीं रहा.लगभग छह फीट लम्बे यह ऑलराउंडर 15 साल की उम्र से क्रिकेट खेल रहे हैं.उन्हें भारतीय राष्ट्रीय बधिर क्रिकेट टीम के सबसे अनुभवी खिलाड़ियों में से एक माना जाता है.वह 15वर्षों से अधिक समय तक राष्ट्रीय टीम का हिस्सा रहे.उनकी पहचान एक विस्फोटक बल्लेबाज के रूप में थी, जिसकी बदौलत उन्हें भारतीय बधिर क्रिकेट टीम का 'धोनी' कहा जाता था.

उनके करियर का सबसे स्वर्णिम पल 2005 में आया जब वह बधिर क्रिकेट विश्व कप जीतने वाली भारतीय टीम के सदस्य थे.इस टूर्नामेंट में उन्होंने कुछ यादगार पारियाँ खेलीं: न्यूज़ीलैंड के खिलाफ 70 रन, चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के खिलाफ सेमीफ़ाइनल में 62 रनों की महत्वपूर्ण पारीऔर फ़ाइनल में इंग्लैंड के खिलाफ मैच जिताऊ 40 रन और 3विकेट लेकर भारत को खिताब दिलाया.2012 से 2017 तक, उन्होंने भारतीय टीम के कप्तान के रूप में भी देश का नेतृत्व किया और 2017 में बधिर टी20 एशिया कप में भी टीम को खिताब दिलाया, जहाँ फ़ाइनल में श्रीलंका को 156 रनों के बड़े अंतर से हराया गया था.

क्रिकेट के बाद की कड़वी सच्चाई: मूंग की कचौड़ी विक्रेता

दुर्भाग्यवश, भारत में दृष्टिहीन और बधिर क्रिकेटरों की लगातार उपेक्षा की जाती रही है.एक विश्व कप विजेता कप्तान और राष्ट्रीय टीम के नियमित फ़िनिशर रहे इमरान शेख को भी इस कड़वी सच्चाई का सामना करना पड़ा.परिवार को आर्थिक तंगी से उबारने के लिए और घर में एकमात्र कमाने वाले सदस्य होने के कारण, उन्हें क्रिकेट खेलना छोड़ना पड़ा.

वडोदरा के ओल्ड पादरा रोड पर उन्होंने अपनी पत्नी रोज़ा शेख की मदद से सड़क किनारे स्टॉल लगाकर मूंग की कचौड़ी और हेल्दी चाट बेचना शुरू किया.यह एक प्रेरणादायक कहानी होने के साथ ही भारतीय खेल व्यवस्था की विफलता को भी दर्शाती है, जहाँ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करने वाले एथलीटों को रोज़ी-रोटी के लिए संघर्ष करना पड़ता है.

हालांकि, उनकी मूंग चाट—जो आलू टिक्की, उबले हुए मूंग के अंकुर, चटनी, दही और कुरकुरे सेव से बनती है,कमाटी बाग में मशहूर हो गई और सोशल मीडिया पर वायरल भी हुई.यह स्टॉल केवल भोजन नहीं परोसता, बल्कि जुझारूपन की एक कहानी भी परोसता है.

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इशारों की भाषा में कोचिंग: बोल सकने वाले बच्चों के इकलौते कोच

लगभग चार साल बाद, जब लग रहा था कि उनका करियर समाप्त हो चुका है, तो उनकी किस्मत फिर पलटी.शहर के चर्चित सी. ए. पटेल लर्निंग इंस्टिट्यूट स्कूल ने उन्हें स्कूल की क्रिकेट टीम का कोच बनने का ऑफर दिया.इमरान शेख शायद देश के इकलौते ऐसे कोच हैं जो खुद बोल या सुन नहीं सकते, मगर ऐसे सामान्य बच्चों को क्रिकेट सिखा रहे हैं जो सुन और बोल सकते हैं.

शुरुआत में, इमरान थोड़ा हिचकिचाए थे.उन्हें लगा कि बच्चे उनकी साइन लैंग्वेज कैसे समझेंगे? लेकिन उन्होंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया.बच्चों से कहा कि वे उनके हाथों की हरकत और चेहरे के भावों पर ध्यान दें.10 से 20 साल की उम्र के बच्चों ने जल्द ही उनके इशारों को समझना शुरू कर दिया.13वर्षीय निहान दवे बताते हैं, "बाकी कोचों की तरह वह मैदान में चिल्लाते नहीं.उनके इशारे सभी भली-भांति समझते हैं."

इमरान शेख अब वडोदरा जिले के सीनोर तालुका के मोता फोफालिया गांव में स्थित इस स्कूल के लगभग 40बच्चों को क्रिकेट के गुर सिखा रहे हैं.इनमें से कई बच्चे बड़ौदा क्रिकेट एसोसिएशन (BCA) के टूर्नामेंट तक खेल चुके हैं.वह नेट्स में कड़ी मेहनत कराते हैं. बच्चों के सवालों का जवाब भी देते हैं और सुधार करने की सलाह भी देते हैं.सब कुछ अपने हाथों और चेहरे के भावों के माध्यम से.

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विजय रूपाणी के साथ इमरान शेख और उनका परिवार

जुनून की पहचान और संस्था का गर्व

स्कूल के ट्रस्टी जितेंद्र पटेल ने बताया कि जब उन्होंने शेख को कोच रखा, तब उनकी सुनने और बोलने की कमी उनके दिमाग में आई ही नहीं."हमें तो बस एक टैलेंटेड खिलाड़ी दिखाई दिया, जिसमें बच्चों को सिखाने का जुनून था.उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम की कहानी भी जी है.आज वे बच्चों के बीच बेहद लोकप्रिय कोच हैं."

पटेल आगे कहते हैं कि इमरान शेख सिर्फ प्रैक्टिस ही नहीं, मैच के दौरान भी हर बच्चे पर ध्यान देते हैं."हमारे स्कूल के लिए यह गर्व की बात है कि शेख हमारे साथ हैं."

इमरान शेख का यह नया अध्याय साबित करता है कि सच्चे टैलेंट और जुनून के सामने संवाद की कमी मायने नहीं रखती.2017में उन्होंने वडोदरा में बधिर क्रिकेटरों के लिए एक अकादमी बनाने का सपना देखा थाऔर अब वह सामान्य बच्चों को प्रशिक्षण देकर उस सपने को एक नए आयाम से जी रहे हैं.

इमरान शेख आज भी अपना हेल्दी चाट का स्टॉल बंद करने का कोई इरादा नहीं रखते.वह एक साथ कोच भी हैं, व्यापारी भीऔर सबसे बढ़कर, लाखों लोगों के लिए प्रेरणा भी.उनका जीवन हमें सिखाता है कि भले ही दुनिया आपकी उपेक्षा करे, लेकिन आपका जुनून और मेहनत हमेशा आपको एक नई पहचान दिला सकती है.