अलीगढ़ की तहज़ीब के रखवाले : इंजीनियर से शेरवानी उस्ताद बने अनवर मेहदी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 26-10-2025
Guardians of Aligarh's culture: Engineer turned Sherwani maestro Anwar Mehdi
Guardians of Aligarh's culture: Engineer turned Sherwani maestro Anwar Mehdi

 

मंसूरुद्दीन फ़रीदी और साक़िब सलीम अलीगढ़ से

सिर पर टोपी, चेहरे पर सफेद दाढ़ी, आंखों में आत्मविश्वास और हाथों में कैंची लिए जब अनवर मेहदी काले कपड़े पर शेरवानी की कटिंग कर रहे थे, तो उनके लहजे में न पछतावा था, न ही कोई अहंकार. वे बोले, “मैं मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग में लेक्चरर था, लेकिन अब शेरवानी मेरी पहचान है.” 

यह महज पेशे का बदलाव नहीं, बल्कि एक विरासत को निभाने का फैसला था. अनवर मेहदी, जो कभी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में मैकेनिकल इंजीनियरिंग पढ़ाते थे, आज शेरवानी सिलाई के ऐसे उस्ताद बन चुके हैं, जिनका नाम देश-दुनिया में जाना जाता है.

उनके पिता मेहदी हसन 1944 में मुंबई रोजगार की तलाश में गए थे, जहां उन्होंने शेरवानी सिलाई की कला अब्दुल रईस नामक उस्ताद से सीखी. विभाजन के समय, जब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में शेरवानी एक प्रतिष्ठा बन चुकी थी, मेहदी हसन ने 1947 में अलीगढ़ के कटारा महल इलाके में ‘हसन टेलर्स’ की स्थापना की. इस दुकान ने धीरे-धीरे अपनी पहचान बनाई. अब ‘मेहदी हसन टेलर्स’ के नाम से यह 80 साल पुरानी दुकान सिर्फ अलीगढ़ ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर एक ब्रांड बन चुकी है.

अनवर मेहदी बताते हैं कि उन्होंने एएमयू से एम.टेक किया. मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर एहतेशाम अहमद निज़ामी के मार्गदर्शन में काम किया. वे लेक्चरर भी बने, लेकिन 1995 में पिता के निधन के बाद उन्होंने टेलरिंग को पूरी तरह अपना लिया. वे बताते हैं कि छात्र जीवन से ही उन्हें शेरवानी काटने की कला का अनुभव था. उसी पारिवारिक परंपरा को आगे बढ़ाने का जुनून उन्हें इंजीनियरिंग से टेलरिंग की दुकान तक ले आया.

शेरवानी के इतिहास की बात करते हुए अनवर मेहदी बताते हैं कि इसकी जड़ें तुर्की और मुगल दरबारों से जुड़ी हैं. ऑटोमन साम्राज्य में प्रचलित लंबे कोट और खास टोपी की शैली ने भारतीय संस्कृति में प्रवेश किया और उसे नया रूप देकर 'शेरवानी' कहा गया. 19वीं सदी के अंत और स्वतंत्रता के बाद यह नवाबों, जमींदारों और अभिजात वर्ग की पहली पसंद बन गई. अलीगढ़, विशेषकर एएमयू के कारण, शेरवानी शैक्षणिक और सांस्कृतिक प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गई.

अनवर मेहदी के अनुसार, शेरवानी केवल एक वस्त्र नहीं, बल्कि इतिहास, पहचान और संस्कृति का एक परिधान है.उनकी बनाई शेरवानी देश की बड़ी हस्तियों की पसंद रही है. वे गर्व से बताते हैं कि देश के कई राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों ने ‘मेहदी हसन टेलर्स’ की शेरवानी पहनी है.

इनमें डॉ. ज़ाकिर हुसैन, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, प्रणब मुखर्जी, रामनाथ कोविंद, मनमोहन सिंह, वीवी गिरि, आर वेंकटरमन, फारूक अब्दुल्ला, मुफ्ती मोहम्मद सईद और एनडी तिवारी जैसी शख्सियतें शामिल हैं. सुप्रीम कोर्ट के जजों से लेकर राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों तक, सभी की अलमारी में अलीगढ़ की शेरवानी की एक खास जगह है.

अनवर मेहदी एक खास किस्सा साझा करते हैं,“जब डॉ. ज़ाकिर हुसैन जामिया मिल्लिया इस्लामिया के कुलपति थे, तो मेरे मामा इस्लामिक स्टडीज़ विभाग में थे. उन्हीं के माध्यम से डॉ. ज़ाकिर हुसैन का परिचय मेरे पिता से हुआ और फिर जब वह बिहार के राज्यपाल, उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति बने, तब 18 वर्षों में उनके लिए कुल 178 शेरवानी सिलीं.”

एक बेहद दिलचस्प किस्सा सुनाते हुए वे कहते हैं, "जब डॉ. ज़ाकिर हुसैन जामिया मिल्लिया इस्लामिया के कुलपति थे, तो मेरे मामा इस्लामिक स्टडीज़ विभाग में थे। उन्हीं के ज़रिए डॉ. ज़ाकिर हुसैन का परिचय मेरे वालिद से हुआ। फिर जब वह राज्यपाल से लेकर राष्ट्रपति तक बने, हमने उनके लिए 18 वर्षों में 178 शेरवानी सिलीं।"

बॉलीवुड की बात करें तो मजरूह सुल्तानपुरी, जावेद अख्तर और राज बब्बर जैसे नाम उनकी बनाई शेरवानी पहन चुके हैं. सैफ अली खान के लिए उन्होंने हाल ही में शेरवानी बनाई थी. अनवर मेहदी बताते हैं कि एक दिन सैफ अली खान की मां का फोन आया और उन्होंने कहा कि सैफ लखनऊ में हैं, आप आकर नाप ले लीजिए. वे लखनऊ गए, नाप लिया और फिर मुंबई में शेरवानी तैयार करके भेजी गई.

एएमयू में सर सैयद दिवस को लेकर युवाओं में आज भी शेरवानी को लेकर वही उत्साह है जैसा दशकों पहले था. अनवर मेहदी कहते हैं, “सर सैयद दिवस हमारे लिए किसी ईद से कम नहीं होता. उस दिन छात्र सबसे बेहतरीन शेरवानी पहनना चाहते हैं.” उनके अनुसार, शेरवानी एक ऐसा परिधान है जो न फैशन से बाहर होता है, न लोगों के दिलों से। वह हर युग में सम्मान और परंपरा की मिसाल रहा है.

अनवर मेहदी अब आधी सदी से अधिक समय से शेरवानी सिल रहे हैं, लेकिन उनका उत्साह आज भी वैसा ही है जैसे शुरुआत के दिनों में था. वह कहते हैं, “शेरवानी मेरे लिए केवल कपड़े की कतरन नहीं, बल्कि इतिहास की सिलवटों में बसी एक जिम्मेदारी है. इसे जीवित रखना मेरे लिए पेशा नहीं, इबादत है.”
 

अलीगढ़ की यह शेरवानी अब सिर्फ एक परिधान नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर बन चुकी है,जो अतीत से जुड़ती है, वर्तमान में सजती है और भविष्य को पहचान देती है. अनवर मेहदी जैसे कारीगर न केवल कपड़े सिलते हैं, बल्कि अपनी हर सिली हुई शेरवानी में इतिहास, तहज़ीब और सम्मान को टांकते हैं.