मेवात से मोहब्बत का पैग़ाम: तिरवाड़ा तब्लीगी जलसा बना हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल

Story by  यूनुस अल्वी | Published by  [email protected] | Date 26-10-2025
A message of love from Mewat: Tirwada Tablighi congregation becomes an example of Hindu-Muslim unity
A message of love from Mewat: Tirwada Tablighi congregation becomes an example of Hindu-Muslim unity

 

यूनुस अलवी, नूंह/मेवात)

हरियाणा के नूंह ज़िले का छोटा-सा गांव तिरवाड़ा इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है. वजह है यहां आयोजित तब्लीगी जमात का तीन दिवसीय ऐतिहासिक इस्लामी जलसा, जिसने न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी एक नई मिसाल कायम की है. यह जलसा सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि इंसानियत, मोहब्बत और भाईचारे का उत्सव बन गया. लाखों की भीड़ के बीच जिस तरह हिंदू और मुसलमानों ने मिलकर इस आयोजन को सफल बनाया, उसने यह साबित कर दिया कि मेवात की असली पहचान नफरत नहीं बल्कि मोहब्बत है.
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अक्सर मेवात को लेकर कुछ वर्गों द्वारा गलत और विवादास्पद तस्वीर पेश की जाती रही है. कहा जाता है कि यह इलाका अपराध, गोकशी और साइबर क्राइम का गढ़ बन गया है. लेकिन यह जलसा उन सभी भ्रांतियों का जवाब बनकर सामने आया. मेवात की मिट्टी ने एक बार फिर साबित किया कि यहां की गंगा-जमनी तहज़ीब आज भी ज़िंदा है. यहां इंसानियत सबसे ऊपर है और यहां के लोग अमन और भाईचारे के सच्चे पैरोकार हैं.
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सुबह से ही तिरवाड़ा गांव की गलियों और सड़कों पर दूर-दराज़ से आती भीड़ उमड़ पड़ी. जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया, वैसे-वैसे मैदान में इंसानों का सैलाब भरता गया. चारों तरफ़ से आती आवाज़ें – “अल्लाहु अकबर”, “अमन और सलामती के लिए दुआ करो” – हवा में गूंज रही थीं. जलसे का सबसे बड़ा आकर्षण तब्लीगी जमात के अंतरराष्ट्रीय अमीर हजरत मौलाना साद साहब रहे.

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उनके प्रवचन को सुनने के लिए लाखों लोग तिरवाड़ा पहुंचे. मौलाना साद साहब ने अपने बयान में कहा कि “इस्लाम मोहब्बत और अमन का पैग़ाम देता है. इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं. अगर दिलों में नफ़रत की जगह मोहब्बत बस जाए, तो धरती जन्नत बन जाएगी.” उनकी ये बातें न केवल मुस्लिम समुदाय बल्कि वहां मौजूद हिंदू समाज के लोगों के दिलों को भी छू गईं.
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इस जलसे की एक अलग पहचान बनी “मोहब्बत का ज़ायका”. यानी हिंदू समाज की तरफ़ से बिरयानी का लंगर। नूंह के पुनहाना कस्बे के समाजसेवी राजेश गर्ग पुत्र त्रिलोक गर्ग ने जलसे में आने वाले मेहमानों के लिए वेज बिरयानी और मीठे चावल (जर्दा) की व्यवस्था की. तीनों दिनों तक लगभग सौ बड़े पतीलों में बिरयानी और जर्दा तैयार किए गए और जलसे में पहुंचे लोगों को परोसे गए.

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राजेश गर्ग ने बताया कि “मेवात ऐसा इलाक़ा है जहां हर धर्म के लोग मिलजुलकर रहते हैं। अगर किसी के यहां त्योहार होता है तो सब उसमें शामिल होते हैं. यही हमारी धरती की खूबसूरती है. हमने सोचा कि इस बार हम अपने मुस्लिम भाइयों के जलसे में सेवा करें, इसलिए तीनों दिनों तक बिरयानी और जर्दा खिलाएंगे.” इस बिरयानी में लायशा बासमती चावल का इस्तेमाल किया गया, जिसकी खुशबू और स्वाद ने हर शख्स का दिल जीत लिया.
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राजेश गर्ग की इस पहल ने एक नई परंपरा की शुरुआत कर दी, जहां धर्म नहीं, इंसानियत सबसे पहले है. इसी तरह “बाम सैफ फाउंडेशन” की ओर से लगाया गया “मोहब्बत की चाय” स्टॉल पूरे जलसे की जान बन गया.

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इस स्टॉल के आयोजक समय सिंह सलंबा और विजय कुमार उजीना थे. समय सिंह ने बताया कि “हम यहां सिर्फ चाय पिलाने नहीं, बल्कि मोहब्बत का पैग़ाम देने आए हैं. हम चाहते हैं कि जब-जब देश में हिंदू-मुस्लिम विवाद की बातें हों, तो मेवात जैसे इलाके उदाहरण बनें. जहां लोग धर्म नहीं, इंसान देखकर प्यार करते हैं.” हजारों लोग इस स्टॉल पर रुककर चाय पीते, बातचीत करते और भाईचारे की गर्माहट महसूस करते रहे.

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जलसे की सफलता के पीछे न केवल समाज की ताकत थी, बल्कि प्रशासन की सजगता और सहयोग भी काबिले-तारीफ़ रहा. जलसा इंतजामिया कमेटी के हजारों वालंटियर मैदान में सक्रिय थे.

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ट्रैफिक नियंत्रण से लेकर सफाई, पानी और बिजली की व्यवस्था तक सब कुछ सुचारु रूप से चलता रहा. नूंह प्रशासन और पुलिस ने पूरी मेहनत से कार्यक्रम को सुरक्षित और शांतिपूर्ण बनाए रखा. नगर पालिका चेयरमैन बलराज सिंगला खुद मैदान में रहकर व्यवस्था की निगरानी कर रहे थे. हरियाणा वक्फ बोर्ड के प्रशासक चौधरी जाकिर हुसैन, पुनहाना के पूर्व विधायक चौधरी रहीस खान और भाजपा प्रत्याशी रहे चौधरी ऐजाज़ ख़ान ने भी स्थल पर पहुंचकर तैयारियों का जायज़ा लिया और सहयोग का आश्वासन दिया.

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तीन दिनों तक तिरवाड़ा का आसमान अमन और एकता की दुआओं से गूंजता रहा. जलसे के आखिरी दिन लाखों हाथ एक साथ उठे — हिंदुस्तान की सलामती, तरक्की और भाईचारे के लिए. उस क्षण किसी ने धर्म नहीं देखा, किसी ने मज़हब नहीं पूछा। सबके दिलों में सिर्फ एक ही भावना थी — “हम सब एक हैं, हम सब हिंदुस्तानी हैं.”

जलसे के दौरान समाजसेवी संजय कुमार ने एक शेर पढ़ा जिसने पूरे आयोजन की आत्मा को शब्दों में ढाल दिया —

“ना हिंदू बुरा है, ना मुसलमान बुरा है,
ना गीता बुरी है, ना कुरान बुरी है,
ना भगवान बुरा है, ना अल्लाह बुरा है,
दिल के अंदर जो बैठा है, वही शैतान बुरा है.”
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यह शेर सुनकर मैदान तालियों से गूंज उठा. यही मेवात की सोच है, धर्म इंसान को जोड़ता है, तोड़ता नहीं.लायशा बासमती चावल कंपनी के मालिक संजीव गुप्ता भी जलसे में पहुंचे. उन्होंने कहा, “मैंने कई जगहों पर धार्मिक आयोजन देखे हैं, लेकिन मेवात जैसा भाईचारा कहीं नहीं देखा. यहां लोग धर्म से पहले इंसानियत को मानते हैं.” उनका कहना था कि यह आयोजन बताता है कि अगर नीयत साफ हो तो मज़हब दीवार नहीं बल्कि पुल बन जाता है.
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तिरवाड़ा का जलसा इस मायने में ऐतिहासिक कहा जा सकता है कि इसने मेवात की उस तस्वीर को उजागर किया है जो अक्सर छिपा दी जाती है. यहां के लोग मेहनती, ईमानदार और शांति-प्रिय हैं. अगर कहीं कोई अपराध होता भी है, तो वह पूरी कौम का प्रतिनिधित्व नहीं करता. यह जलसा एक ऐसा मंच बन गया जहां से मेवात ने देश को यह संदेश दिया कि मोहब्बत, सहयोग और आपसी सम्मान से ही भारत की आत्मा जीवित रह सकती है.

मेवात की मिट्टी हमेशा से भाईचारे और मोहब्बत की प्रतीक रही है. यहां मंदिर की घंटियां और मस्जिद की अज़ान एक साथ गूंजती हैं. यहां कोई दीवार नहीं, दिलों को जोड़ने वाले पुल हैं. यही वजह है कि जब देश के कई हिस्सों में धर्म के नाम पर राजनीति होती है, तब मेवात जैसे इलाक़े अमन और एकता की मिसाल बनकर खड़े होते हैं.
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तिरवाड़ा जलसे ने यह साबित कर दिया कि जब दिलों में सच्चाई और इरादों में भलाई हो तो धर्म कभी विभाजन का कारण नहीं बनता, बल्कि समाज को जोड़ने की ताकत बन जाता है. तीन दिनों तक चली वेज बिरयानी की खुशबू, जर्दे की मिठास और मोहब्बत की चाय की गर्माहट ने यह पैग़ाम दिया कि इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है.

आज मेवात की यह मिसाल पूरे हरियाणा ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा बन चुकी है. नफरत फैलाने वालों के लिए यह एक सबक है कि अगर मोहब्बत के साथ जिया जाए तो हर जलसा अमन का पैग़ाम बन सकता है. मेवात के लोगों ने अपने कर्मों से यह दिखा दिया कि यहां नफरत की कोई जगह नहीं. यहां हर धर्म का फूल एक ही बग़ीचे में खिलता है.
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इस ऐतिहासिक जलसे के अंत में जब लाखों लोग एक साथ उठे और मुल्क की सलामती की दुआ मांगी, तो ऐसा लगा जैसे पूरी धरती कह रही हो — “ना हिंदू बुरा, ना मुसलमान बुरा; हम सब एक ही खुदा की बनाई हुई इंसानियत की संतान हैं.”

तिरवाड़ा जलसे ने यह सिखाया कि जब समाज एकजुट होता है तो नफरत हार जाती है और मोहब्बत जीत जाती है. यह आयोजन आने वाली पीढ़ियों के लिए एक संदेश बन गया है कि धर्म अगर इंसानियत से जुड़े तो धरती जन्नत बन जाती है.