आवाज द वाॅयस/कोकरनाग (जम्मू और कश्मीर)
जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले की तलहटी में बसे एक छोटे से गांव मटिहांडू की दो दृष्टिबाधित बहनों ने साबित कर दिया है कि असली रोशनी आंखों में नहीं, हौसलों में होती है. मक्के के खेतों और ऊबड़-खाबड़ रास्तों से घिरे इस गांव की मेहविश मंज़ूर और खुशबू जान ने न केवल अपनी 12वीं की परीक्षा पास की, बल्कि उसे प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर समाज की धारणाओं को भी चुनौती दी.
इस उपलब्धि पर कोकरनाग उप-विभागीय प्रशासन ने भी बहनों को सम्मानित किया और उनके घर जाकर शुभकामनाएँ दीं. तहसीलदार लारनू, सैयद मुइज़ क़ादरी ने 'राइजिंग कश्मीर' से बातचीत में कहा, "उन्होंने साबित कर दिया कि दृष्टि केवल आंखों से नहीं, बल्कि आत्मा और इच्छाशक्ति से होती है."
दो बहनें, एक सपना: शिक्षा की रोशनी
खुशबू जान और मेहविश मंज़ूर, जो जन्म से ही दृष्टिबाधित हैं, ने सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, गुडरमन से पढ़ाई की. 12वीं बोर्ड परीक्षा में खुशबू ने 500 में से 364 और मेहविश ने 348 अंक हासिल किए. इनका यह सफर सिर्फ अंकों का नहीं, बल्कि समाज, भूगोल, संसाधनों और मानसिक बाधाओं से लड़कर आगे बढ़ने का है.
छोटी उम्र में ही उन्होंने ब्रेल लिपि सीखी, स्मार्ट केन से चलना सीखा, और अपने भाई द्वारा रिकॉर्ड किए गए ऑडियो नोट्स से तैयारी की. परीक्षा के दौरान उन्हें लेखक उपलब्ध कराए गए जिन्होंने उनके उत्तर लिखे.
स्कूल, जो बना आश्रय
जब मंज़ूर अहमद पल्ला ने अपनी दृष्टिबाधित बेटियों को स्कूल भेजने का फैसला किया, तो ग्रामीणों और यहां तक कि कुछ शिक्षकों ने भी इसका विरोध किया. मगर पिता अपने फैसले पर अडिग रहे.
बदलाव तब आया जब विशेष शिक्षक इक़बाल खांडे की तैनाती गांव के स्कूल में हुई. उन्होंने बहनों को ब्रेल, जीवन कौशल, और आत्मनिर्भरता के गुर सिखाए. स्कूल खत्म होने के बाद वे उनके घर जाते और इंटरनेट से पाठ रिकॉर्ड करते.
खुशबू कहती हैं, “इक़बाल सर ने हमें सिखाया कि हमारी सीमाएं वहीं खत्म होती हैं, जहां हमारा आत्मविश्वास खत्म होता है.”
जब दोनों बहनें उच्चतर माध्यमिक विद्यालय गुडरमन पहुँचीं, तो उन्हें प्रिंसिपल बशीर साहिल और शारीरिक शिक्षक आशिक हुसैन का मार्गदर्शन मिला. आशिक सर ने उन्हें खेलों में भाग लेने के लिए प्रेरित किया, जिससे उनका आत्मविश्वास और बढ़ा.
शिक्षा में समावेशिता का उदाहरण बना कोकरनाग
शासन और समाज दोनों के सहयोग से इन बहनों की यात्रा संभव हुई. उप-विभागीय प्रशासन ने उन्हें स्मृति चिन्ह, नकद पुरस्कार और शुभकामनाएं देकर सम्मानित किया.
खुशबू और मेहविश दोनों अब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) में पढ़ना चाहती हैं, जो दृष्टिबाधित छात्रों के लिए समावेशी शिक्षा का उत्कृष्ट उदाहरण है. वे शिक्षक बनना चाहती हैं ताकि अन्य विशेष रूप से सक्षम बच्चों की मदद कर सकें.
संघर्ष से प्रेरणा तक: मटिहांडू से देश को संदेश
जहां एक ओर मटिहांडू जैसे दूरस्थ गांवों में आज भी साक्षरता दर बेहद कम है और लड़कियों की शिक्षा को लेकर रूढ़ियाँ बनी हुई हैं, वहीं इन बहनों की सफलता एक नई उम्मीद जगा रही है. वे न सिर्फ अपनी पढ़ाई को आगे ले जाना चाहती हैं, बल्कि समाज को यह संदेश भी देना चाहती हैं कि—
"विकलांगता एक स्थिति है, पर असफलता कभी विकल्प नहीं हो सकती."