रशीदा कौसर की कलम से उभरी मुस्लिम नारी की सच्चाई

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 09-07-2025
The truth of Muslim women emerged from Rashida Kausar's pen
The truth of Muslim women emerged from Rashida Kausar's pen

 

अमीना माजिद/ ओनिका माहेश्वरी/नई दिल्ली 

कुपवाड़ा की वादियों से निकली एक सशक्त आवाज़ आज वैश्विक मंच पर मुस्लिम महिलाओं की प्रतिनिधि बन चुकी है. यह आवाज़ है स्कॉलर और रिसर्चर रशीदा कौसर की, जिन्होंने अपनी नई किताब "द अनहर्ड वॉयस" के ज़रिए न केवल महिलाओं के संघर्ष को उजागर किया है, बल्कि दुनिया भर की उन मुस्लिम महिलाओं को जुबान दी है, जिनकी पीड़ा अब तक अनकही रह गई थी.

 

jaipurरशीदा कौसर सिर्फ लेखिका नहीं, बल्कि प्रेरणा की जीती-जागती मिसाल हैं. कुपवाड़ा जैसे सीमावर्ती जिले के खुरहामा लोलाब से ताल्लुक रखने वाली रशीदा, उस ज़मीन से आती हैं जिसने कभी इस्लामी जगत को मौलाना अनवर शाह कश्मीरी जैसी महान हस्ती दी थी.

आज उसी ज़मीन से एक महिला, ज्ञान, साहस और करुणा की प्रतीक बनकर उभरी है – और दुनिया भर में मुस्लिम महिलाओं की आवाज़ बन गई है."द अनहर्ड वॉयस" एक गैर-काल्पनिक रचना है, लेकिन इसकी भावनात्मक गहराई किसी भी काल्पनिक कथा से कम नहीं.

यह सिर्फ संघर्षों की दास्तान नहीं सुनाती, बल्कि यह पुस्तक उन अनसुनी सच्चाइयों को सामने लाती है जो सदियों से घरों की चारदीवारी में कैद थीं. इसमें रशीदा कौसर ने आस्था आधारित समाधान प्रस्तुत किए हैं, जो महिलाओं को आत्मबल, गरिमा और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करने की प्रेरणा देते हैं.

jaipurयह रशीदा की दूसरी एकल पुस्तक है. उनकी पहली किताब "इंस्पिरेशनल थॉट्स एंड वर्ड्स ऑफ़ विज़डम" को भी पाठकों और समीक्षकों द्वारा गहराई और नैतिक दृष्टिकोण के लिए खूब सराहा गया था. इसके अलावा वे कई साझा पुस्तकों में सह-लेखिका के रूप में भी अपना योगदान दे चुकी हैं.

रशीदा खुद कहती हैं, "यह किताब लचीलेपन की भाषा बोलती है – हर उस महिला की, जिसने चुपचाप दर्द सहा है, और हर उस आत्मा की, जो आशा और उपचार की तलाश में है."

इस किताब के माध्यम से उन्होंने जिस संवेदनशीलता और सशक्तता के साथ मुस्लिम महिलाओं की आवाज़ को दुनिया तक पहुँचाया है, वह कुपवाड़ा जैसे क्षेत्र के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि बन गई है. यह केवल एक साहित्यिक योगदान नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन की मिसाल भी है.

आज कश्मीर की बेटियाँ हर क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ रही हैं – खेल, शिक्षा, संस्कृति, साहित्य – हर मंच पर उनकी मौजूदगी यह साबित कर रही है कि अब वह समय बीत चुका है जब महिलाएं पीछे रह जाती थीं.

रशीदा कौसर की यह उपलब्धि सिर्फ उनकी अपनी नहीं, बल्कि उस समूचे समाज की है जो बदलाव की ओर अग्रसर है. यह उस सपने का साकार होना है, जब किसी दूर-दराज़ क्षेत्र की बेटी अपने शब्दों और विचारों से दुनिया को बदलने का माद्दा रखती है.

कश्मीर की इन बेटियों ने यह दिखा दिया है कि अगर अवसर मिले और दिशा दी जाए, तो वे ज्ञान, आत्मबल और नेतृत्व के बल पर हर बाधा को पार कर सकती हैं. रशीदा कौसर की यह किताब सिर्फ ‘एक किताब’ नहीं, बल्कि अनगिनत अनसुनी आवाज़ों का दस्तावेज़ है – एक नई रोशनी की शुरुआत.