मेडिकल छात्र शौकत आलम की जुबानी यूक्रेन वार जोन की कहानी

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 03-03-2022
मेडिकल छात्र शौकत आलम की जुबानी यूक्रेन वार जोन की कहानी
मेडिकल छात्र शौकत आलम की जुबानी यूक्रेन वार जोन की कहानी

 

शौकत आलम

( यूक्रेन, इवानो के मेडिकल के चौथे साल के छात्र )

सुबह के करीब चार बजे होंगे. मैं गहरी नींद में था. तभी फोन आया. मैंने फोन उठाया. उधर से पूछा गया आपके शहर में हमला हुआ है क्या ? पहले तो मैंने कहा नहीं, क्योंकि धमाके की कोई आवाज नहीं आई थी. उसके बाद मैने खिड़की खोल कर देखा तो हॉस्टल के बाहर करीब 500मीटर की दूरी पर आग लगी लगी हुई थी. कुछ देर बाद पूछने पर पता चला कि हमले के कारण आग लगी है.

वो 2 4फरवरी की सुबह थी जब यूक्रेन के शहर इवानों पर हमला हुआ था.24 की सुबह जब मैंने आग देखी तो यकीन नहीं हुआ कि हमला हुआ है. लेकिन कुछ लोगों से बात की तो पता चला कि ये आग खुद नहीं लगी है बल्कि हमला शुरु हो चुका है. उस हमले के बाद हालात पैनिक हो गए. हम लोग सोचने लगे कि आगे क्या होगा ?

हमें कुछ खाने पीने के लिए मिलेगा भी या नहीं ? 25फरवरी की सुबह सात बजे के करीब हम लोग अपने कमरे से निकले. पास ही सूपर मार्केट है, जहां खाने पीने की चीजें मिलती हैं. मैं अपने साथी छात्रों के साथ वहां पहुंचा. वहां काफी भीड़ थी. आस पास के काफी सारे लोग जमा थे.

अच्छी बात ये थी कि वहां भी जिम्मेदार थे शायद मेयर थे, उन्होंने आपस में तय किया कि हम उतना ही सामान लें जिससे हमारी जरूरतें पूरी हो सके और दूसरों को भी मिल जाएं. ताकि किसी को भूखे सोना न पड़े. सामान लेकर हम कमरे में आ गए. दिन भर कुछ नहीं हुआ. हमने शाम में यूनिवर्सिटी के डीन से बात की. उनसे हमने कहा कि हम लोगों को किसी तरह वहां से निकाला जाए.

 डीन ने कहा कि आप लोगों को 26की सुबह आपके हॉस्टल के सामने गाड़ी मिलेगी. वहां से आपको रोमानिया या हंग्री के बॉर्डर तक पहुंचाया जाएगा. लेकिन 25की शाम में ही हमें नोटिस मिला कि आपके लिए जो बस बुक किया था उसके लिए हमे इंडियन एंबेसी ने मना कर दिया है. इंडियन एंबेसी ने कहा है कि आपकी बस दो या तीन दिन बाद हो, अभी नहीं. इस नोटिस के बाद हम सब परेशान हो गए.

शाम छह बजे के करीब सायरन बजना शुरू हो गया. आसमान में फाइटर जेट विमान उड़ने लगे. इवानो में हमारी आंखों के सामने से 11फाइटर जेट गुजरे. सारे छात्र डर गए. उसके बाद हमने तय कि हमें बस बुक कर जैसे भी हो बार्डर तक पहुंचना है. हमें ये महसूस हो गया कि जिस जगह हम रह रहे हैं वो सुरक्षित नहीं है.

उसके बाद हमने बस बुक किया. चार घंटे के सफर के बाद बार्डर था. वहां तक पहुंचने के लिए 50हजार लगते हैं, लेकिन हमने उसे 2.5लाख में बुक किया. हम लोग 50छात्र थे. हमने मिलकर बस किया और बॉर्डर के लिए रवाना हुए.

बस ने हमें रोमानिया के बॉर्डर से करीब 15किलोमीटर पहले उतार दिया. वहां से पैदल चल कर हम बॉर्डर के पास पहुंचे. हमने देखा कि पहले से करीब 15हजार लोग वहां मौजूद थे. इंडियन एंबेसी को कोई अधिकारी हमें नजर नहीं आया.

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हमारी यूनिवर्सिटी के सीनियर छात्र वहां रात 10बजे ही पहुंच चुके थे. 25फरवरी की शाम को नोटिस मिला कि बस नहीं मिलेगी तो वो उसी वक्त निकल गए थे. किसी ने बस बुक किया तो किसी ने टैक्सी बुक किया और बॉर्डर के लिए रवाना हो गए.

हमारे सीनियर साथी ने बताया कि बार्डर अभी तक खोला नहीं गया है. चूंकि इंडियन एंबेसी से कोई आया नहीं है, इसलिए इंडिया के किसी भी आदमी को उस पास जाने से रोका जा रहा है. उस वक्त सुबह के करीब चार बजे होंगे.

यानी ये 26 फरवरी की सुबह थी. हमने इंडियन एंबेसी से संपर्क करना चाहा, लेकिन कोई फोन नहीं लगा. उसके बाद सुबह करीब आठ बजे सूचना मिली की बॉर्डर खुलने वाला है, पर खुला नहीं. हमने बहुत प्रयास किया कि किसी से संपर्क हो ताकि हमें कोई रास्ता मिल सके. इसी कोशिश में दिन के 11बज गए.

उसी वक्त मलेशिया का एक पत्रकार एल्जिन मिला. उसने हमारी बहुत मदद की. उसने पता किया और थोड़ी देर बाद बताया कि उस तरफ इंडियन एंबेंसी से एक बस आई जिसमें सिर्फ 10बच्चों को ही बिठाया जा सकता है.

उसके बाद हमने तय किया कि पहले लड़कियों को भेजा जाए. क्योंकि हम यहां रुक सकते हैं, लेकिन लड़कियों को परेशानी होगी. इसलिए हमने अपना सामान लड़कियों को दे दिया. 10सीट वाली बस में पत्रकार की मदद से 21 लड़कियों को रवाना किया. उसके बाद हम लोग अगली व्यवस्था का इंतजार करने लगे.

दोपहर बाद  इंडियन एंबेसी से ममता मैडम और उनके साथ एक आदमी और थे. वो आए और हमें कहा कि शाम छह बजे तक 75 बच्चों के लिए बस आएगी. छह बजे से सात बजे गए. उसके बाद हमें बताया गया कि इंतजार करो. जाम है. भीड़ है, इसलिए समय लग सकता है.

उसके बाद आठ बजे हमें बताया गया कि कोई बस नहीं आएगी . रोमानिया सरकार इजाजत नहीं दे रही है. अब ऐसा करो कि जाकर लाइन में लग जाओ. हमने देखा कि वहां लाइन में पहले से करीब 15हजार लोग खड़े हैं. बॉर्डर के पार रोमानिया सरकार की तरफ से वीजा का मुहर लगता है. वहां करीब पांच हजार लोग लाइन में थे. लाइन करीब एक किलोमीटर लंबा था.

उस पार हर कोई नहीं जा पा रहा था. मैं इस लिए जा पाया, क्योंकि दो महिलाओं का दर्द मुझसे देखा नहीं गया. मैं उसकी मदद के लिए पहुंच गया. वो महिला स्थानीय थी. दोनों महिलाओं के गोद में बच्चा था. उनके पास बहुत सामान था.

वो कभी अपना सामान संभालती तो कभी बच्चा. दोनों उनसे नहीं संभल रहे थे. यूक्रेन सरकार ने सिर्फ बच्चों और महिलाओं को देश छोड़ने की इजाजत दी है, इसलिए दोनों महिलाएं अकेली थीं. मैं दूर से उन्हें देख रहा था. मुझसे रहा नहीं गया.

मैं उसके पास गया. चूंकी मैं अपना सामान लड़कियों के साथ भेज चुका था, इसलिए मैं खाली था. उस महिला से बोला कि अपना सामान मुझे उठाने दीजिए. बॉर्डर पर जो फोर्स थी, मुझे इंडियन समझ कर रोक रहे थे, पर उन्होंने मुझे दोनों महिलाओं की मदद करते देखा तो रोका नहीं.

मुझे उनके साथ बाहर जाने दिया. इमीग्रेशन लाइन के पास मैंने उन महिलाओं से पूछ आगे आप कहां जाएंगी. उन्होंने बताया कि वो 1600किलोमीटर दूर डेनिप्रो से आई है. कहां जाना है पता नहीं है. इमीग्रेशन से बीजा पर मुहर लगाने के बाद जब मैं रोमानियां के अंदर पहुंचा तो देखा कि 12 साल का बच्चा हो या 60 साल का बुजुर्ग, लड़की हो या लड़का सभी वालेंटियर बने हुए थे.

हर आदमी मदद के लिए खड़ा था. वहां काफी सर्दी थी. कोई चाय लेकर तो कोई खाना लेकर खड़ा था. चाय और खाने के बाद आपको कहां जाना है ये पूछ कर आगे का इंतजाम कर रहे थे. तब तक रात हो चुकी थी. बॉर्डर क्रॉस करते हमें करीब एक बजे जुके थे.

जब मुझसे पूछा गया कि कहां जाना है तो मैंने बताया कि मुझे इंडियन एंबेसी जाना है. उन लोगों ने पता किया तो मालूम हुआ कि वहां पर इंडियन एंबेसी की कोई बस नहीं है. वो बोले रात हो चुकी है. लाइन में रहोगे तो परेशानी होगी. फिर उन्होंने मुझे एक बस में बिठाया, जो मुझे एक होटल ले गया.

वहां रोमानिया सरकार की तरफ मुफ्त व्यवस्था थी. रात का खाना देने के साथ की नहाने का सामान मुहैया कराया गया. कंबल भी दिया गया. अगली सुबह 27फरवरी को 11बजे नींद खुली. वहां मैं अकेला इंडियन था, इसलिए डर गया. मैंने वहां पूछा कि मुझे इंडियन एंबेसी जाना है.

मुझे ये भी पता नहीं कि मैं उस वक्त कहां हूं. उन लोगों ने बताया कि यहां इंडियन एंबेसी के लिए कोई बस नहीं है. आपको इंतजार करना होगा. मेरे पास और कोई चारा नहीं था. वो लोग काफी मदद कर रहे थे. इसलिए उसे नहीं कह पाया.

फिर मैंने उन्हें टैक्सी करने को कहा . शाम तक यूं ही इंतजार करता रहा. आठ बजे के करीब मैंने वहां मौजूद फोर्स से पूछा कि मुझे इंडियन एंबेसी जाना है. उन्होंने कहा अभी बस नहीं है, कल जाना. मैंने कहा कि कल मेरी फ्लाइट होगी, इसलिए मुझे आज ही जाना होगा.

उसके बाद किसी जिम्मेदार आदमी शायद मेयर थे, से बात की. मुझे कहा कि चलिए आपके लिए मैं टैक्सी कर देता हूं. 200 यूरो का उन्होंने टैक्सी किया. उसका भुगतान भी उन्होंने किया . मैंने उनसे कहा किसी एयरपोर्ट पर छोड़ दो, ऐसा इसलिए कि एयर पोर्ट पर इंडियन एंबेसी के अधिकारी जरूर होंगे. टैक्सी ने मुझे बूचारस पहुंचाया, जहां इंडियन एंबेसी है. वहां से एयरपोर्ट गया.

वहां मुझे इंडियन एंबेसी के अरिजीत सर मिले. उन्होंने मदद की. मुझे एयरपोर्ट पर 14से 15घंटे रुकना पड़ा. उसके बाद 28फरवरी को मुंबई के लिए फ्लाइट मिली. एक मार्च को मुंबई से बिहार सरकार की मदद से पटना के लिए फ्लाइट मिली. पटना आने के बाद जिलाधिकारी के आदेश से मुझे गाड़ी से पूर्णिया बायसी घर तक छोड़ा गया . इस तरह यूक्रेन से जो सफर 25फरवरी को शुरू हुआ वो दो मार्च को खत्म हुआ. मैं सुरक्षित घर पहुंच गया.

जैसा कि उन्होंने हमारे संवाददाता सुल्ताना परवीन  ( पूर्णिया  )को बताया.