कैप्टन हनीफुद्दीनः एक योद्धा शहीद और उनकी बहादुर अम्मी

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 26-07-2021
कैप्टन हनीफुद्दीन
कैप्टन हनीफुद्दीन

 

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली

1999 में जब भारत के प्रधानमंत्री अचल बिहारी वाजपेयी बस यात्रा करके लाहौर गए तो वहां गवर्नर हाउस में उनका औपचारिक स्वागत किया गया. प्रोटोकॉल के मुताबिक, मेजबान देश के तीनों सेना प्रमुखों को स्वागत समारोह में मौजूद होना चाहिए था लेकिन पाकिस्तान के थल सेनाध्यक्ष परवेज मुशर्रफ नदारद थे. उस समय जब लाहौर में शांति के कबूतर उड़ाए जा रहे थे, दूसरी ओर पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ करगिल की पहाड़ियों में ‘ऑपरेशन बद्र’ की योजना बनाने में मुब्तिला थे.

ऑपरेशन बद्र का मकसद भारत के राष्ट्रीय राजमार्ग1ए पर कब्जा करके सियाचिन और लेह-लद्दाख क्षेत्र को श्रीनगर और देश के मुख्य भाग से अलग करना था. इस ऑपरेशन के लिए पाकिस्तानी सेना ने अपने स्पेशल सर्विस ग्रुप तथा नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री के सैनिकों को चुना था, क्योंकि नॉर्दर्न लाइट इन्फेंट्री के सैनिक गिलगित क्षेत्र  के होते हैं जो करगिल की परिस्थितियों से परिचित थे और वैसे मौसमी हालात में ढले हुए थे.

1999 की सर्दियों में पाकिस्तान ने चुपके से करगिल, बटालिक और द्रास के 134वर्ग किलोमीटर लंबे क्षेत्र में ऊंचे पहाड़ी चोटियों पर अपनी सैनिक टुकड़ी भेजकर 132भारतीय पोस्टों पर चुपचाप कब्जा कर लिया.

अपनी यूनिट के साथ कैप्टन हनीफुद्दीन

जांबाजः अपनी यूनिट के साथ कैप्टन हनीफुद्दीन


उधर, भारत ने मई,1999 में भी 11, राजपूताना राइफल्स को सियाचिन क्षेत्र से अपनी समय अवधि पूरी करने पर करगिल-द्रास क्षेत्र के तुर्तुक-लंगा नाम की पहाड़ियों पर नियंत्रण रेखा पर तैनात कर दिया गया था.इन पहाड़ियों की कुछ चोटियों की ऊंचाई 5,500 मीटर तक है और सियाचिन के लिए रास्ता इन्हीं पहाड़ियों से होकर जाता है. इसके अतिरिक्त इन पहाड़ियों से पाकिस्तान लद्दाख क्षेत्र की श्योक घाटी पर भी नजर रखना चाह रहा था. सियाचिन को सप्लाई पहुंचाने वाली थोयस हवाई पट्टी भी इसकी पहुंच में थी. चोटियों पर घुसपैठ के जरिए उसने इस हवाई पट्टी को भारतीय हेलिकॉप्टरों के लिए बंद कर दिया. इसे देखते हुए 17 राजपूताना राइफल्स को इस क्षेत्र में पहुंचते ही तुर्तुक-लंगा की चोटी पर कब्जा करने का आदेश प्राप्त हुआ.

कैप्टन हनीफुद्दीन की कंपनी तुर्तुक-लंगा चोटी के आसपास ही तैनात थी. चोटी की अहमियत को देखते हुए कैप्टन हनीफुद्दीन इस पर जल्द से जल्द कब्जा करने की योजना बनाने लगे. कैप्टन हनीफुद्दीन ने खुद इस मिशन पर जाने के लिए पहल की.  4-5 जून की दरमियानी रात में एक जेसीओ और 3 जवानों के साथ चुपचाप इन्होंने तुर्तुक से लगी पहाड़ी चोटी पर कब्जा कर लिया.

अगली रात कैप्टन हनीफुद्दीन ने अपने मुख्य लक्ष्य की तरफ बढ़ना शुरू कर दिया. इसके लिए उन्हें और उनके साथियों को सीधी पहाड़ी की चढ़ाई करनी थी. इस मुश्किल चढ़ाई के समय अचानक दुश्मन को इस दल की गतिविधियों की सूचना मिल गई. दुश्मन ने अपने हथियारों तथा तोपखाने से कैप्टन हनीफुद्दीन को आगे बढ़ने से  रोकने की कोशिश की, परंतु कैप्टन हनीफुद्दीन और उनके साथी दुश्मन को जवाब देते रहे.

क्षेत्र में मुश्किल चढ़ाई तथा ऑक्सीजन की कमी के कारण सैनिक कम वजन के साथ ही ऐसे अभियानों पर जाते हैं. इसलिए कैप्टन हनीफ तथा उनके साथियों का भी गोला-बारूद कम होने लगा. फिर भी यह टुकड़ी पक्के इरादे के साथ आगे बढ़ती रही.लक्ष्य उनसे केवल 200 मीटर रह गया था कि उत्साह और जल्दी कब्जा करने के जोश में कैप्टन हनीफुद्दीन ने अपनी सुरक्षा की परवाह नहीं की और सीधा पाकिस्तानी पोस्ट पर धावा बोल दिया. इस प्रयास में कैप्टन हनीफ बुरी तरह घायल हो गए. उनके शरीर में चारों तरफ से दुश्मन की गोलियां घुस गई थी. जिनके कारण भारतीय सेना का यह बहादुर योद्धा 25 वर्ष की आयु में ही वीरगति को प्राप्त हो गया.

शहीद कैप्टन हनीफुद्दीन की तस्वीर के साथ मां हेमा अजीज

मां का गौरवः शहीद कैप्टन हनीफुद्दीन की तस्वीर के साथ मां हेमा अजीज


इस समय करगिल युद्ध शुरू ही हुआ था, इसलिए उस समय ज्यादातर क्षेत्र में पाकिस्तानी सेना प्रभावशाली स्थिति में थी. इन परिस्थितियों में कैप्टन हनीफुद्दीन का पार्थिव शरीर वापस लाने में बहुत ज्यादा खतरा नजर आ रहा था और सेना उस समय उनका शव वापस नहीं ला पाई थी.उस वक्त कैप्टन हनीफुद्दीन की माताजी हेमा अज़ीज़ ने अद्भुत देशभक्ति की मिसाल पेश की थी और दूसरे सैनिकों को भी अपने पुत्र की तरह समझते हुए भारतीय सेनाध्यक्ष से प्रार्थना की कि इन स्थितियों में हनीफ का शव वापस लाने के लिए और किसी सैनिक का जीवन खतरे में न डाला जाए. 

कैप्टन हनीफ ने दिल्ली के शिवाजी कॉलेज से पढ़ाई की थी.7 जून,1997 को भारतीय सेना में कमीशन हासिल किया और इसके ठीक 2 साल बाद 7 जून,1999 कोउनकी शहादत हो गई.

युद्ध जीतने के बाद भारतीय सेना ने करगिल के तुर्तुक सेक्टर का नाम हनीफुद्दीन सब सेक्टर रखा है.