चौंकिए मत, नीरज से पहले ओलंपिक के जैवलिन थ्रो में देवेंद्र झाझाड़िया भारत को दिला चुके हैं गोल्ड

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] • 2 Years ago
चैंकिए नहीं, नीरज से पहले ओलंपिक के जैवलिन थ्रो में देवेंद्र झाझाड़िया भारत को दिला चुके हैं गोल्ड
चैंकिए नहीं, नीरज से पहले ओलंपिक के जैवलिन थ्रो में देवेंद्र झाझाड़िया भारत को दिला चुके हैं गोल्ड

 

मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली

टोक्यो ओलंपिक के ट्रैक एंड फील्ड के जैवलिन थ्रो स्पर्धा में स्वर्ण पदक दिलाने वाले नीरज चोपड़ा इकलौते खिलाड़ी नहीं हैं. इनसे पहले भी देश के अन्य खिलाड़ी ओलंपिक कें भाला फेंक में सोना दिला चुके हंै. इस खिलाड़ी का नाम है देवेंद्र झाझड़िया. यही नहीं वह एक बार फिर देश को सोना दिलाने को तैयार हैं. दरअसल, देवेंद्र झाझड़िया पैरागेम्स के प्लेयर हैं. उन जैसा अभी देश में कोई और पैरा जवैलिन थ्रोवर यानी भाला फेंक खिलाड़ी नहीं है.
 
उनके खेल के हुनर को सम्मान करते हुए ही उन्हें पदमश्री और अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है. 24 अगस्त से  5 सितंबर तक टोक्यो में चलने वाले पैरालंपिक 2020 के लिए भारत की ओर से जो टीम गई है, उनमें देवेंद्र भी शामिल हैं. 2016 के रियो पैरालंपिक में उन्होंने जैवलिन थ्रो में गोल्ड जीता था.
 
देवेंद्र झाझ़डिया के बारे में एक बेवसाइट पर उपलब्ध जानकारियों के अनुसार, वह भारत के नंबर एक पैरा भाला फेंक खिलाड़ी हैं, जिनका सिर्फ एक हाथ है. वह दुनिया की नजरों में तब आए, जब उन्होंने पैरालम्पिक रियो 2016 में भाग लिया और भाला फेंक प्रतियोगिता में भारत को स्वर्ण पदक दिलाया. देवेन्द्र भारत के अकेले पैरालम्पिक खिलाड़ी है, जिन्हें इस प्रतियोगिता में गोल्ड मैडल मिला. 
 
देवेन्द्र ने इससे पहले 2004 में हुए, समर पैरालम्पिक में भी गोल्ड मैडल जीता था, जिसके बाद उनका ये दूसरा पैरालंपिक में गोल्ड मैडल है. रियो में उन्होंने अपने पहले के रिकॉर्ड से बेहतर प्रदर्शन किया था. देवेंद्र वर्तमान में पैरा चैंपियंस कार्यक्रम के माध्यम से एक संस्था से जुड़े हुए है.
 
 
जीवन परिचय

1. पूरा नाम देवेन्द्र झाझड़िया
2. जन्म 10 जून, 1981
3. जन्म स्थान चुरू जिला, राजस्थान
4. माता-पिता का नाम जीवनी देवी , राम सिंह झाझड़िया
5. कोच आर डी सिंह
6. खेल एथलीट
7. पत्नी मंजू
8. बच्चे
बेटी: जिया (10 साल)
बेटा दृ काव्यान (6 साल)
9. अवार्ड
पद्म श्री
अर्जुन अवार्ड

 
देवेन्द्र का जन्म राजस्थान के गाँव झाझारियन की धानी, रतनपुरा पंचायत, राजगढ़ तहसील, जिला चुरू में जाट परिवार में हुआ था. वह एक सामान्य बच्चे की तरह पैदा हुए थे, जो अपने बचपन को पूरी तरह जी रहे थे. देवेन्द्र के माँ बाप को उनसे बहुत उम्मीदें थी.
 
वे चाहते थे कि पढ़ लिख बड़ा आदमी बनें. लेकिन 8 साल की उम्र में देवेन्द्र के जीवन में एक बड़ा हादसा हुआ. अपने गाँव में एक पेड़ पर फल तोड़ने चढ़ रहे थे, इस दौरान उन्होंने पेड़ में मौजूद चालू बिजली का तार छु लिया. देवेन्द्र को चिकित्सीय उपचार तो मिला लेकिन डॉक्टरों ने उनके परिवार को देवेन्द्र का बायां हाथ काटने की सलाह दी. इस तरह छोटी सी उम्र में देवेन्द्र को इस हादसे ने अपाहिज बना दिया.
 
बचपन से है जैवलिन थ्रो से प्यार

देवेन्द्र को भाला फेंक खेल बचपन से पसंद है. पढाई के साथ वह इस खेल पर भी ध्यान देते थे. देवेन्द्र छोटे से गाँव में रहते थे, वहां के स्कूल में भाला भी नहीं था, लेकिन देवेन्द्र लकड़ी का भाला बनाकर रोजाना अभ्यास करते थे. स्कूल के दौरान ही देवेन्द्र ने जिलास्तरीय टूर्नामेंट में हिस्सा लिया और भाला फेंक प्रतियोगिता में गोल्ड मैडल जीत.
 
व्यक्तिगत जीवन

देवेन्द्र बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में एक रेलवे कर्मचारी है. इसके साथ ही वे ‘भारतीय खेल प्राधिकरण’ में भी कार्यरत है. देवेन्द्र राजस्थान की पैरालंपिक कमेटी के सदस्य भी हैं. इनकी पत्नी मंजू राष्ट्रीय स्तर की कबड्डी खिलाड़ी है. 
devender
झाझड़िया का करियर 

देवेन्द्र के साथ हुए हादसे ने देवन्द्र के हाथ को जरुर अपाहिज बना दिया, लेकिन मजबूत इरादों को कमजोर नहीं कर पाया. 1995 में देवेन्द्र ने पहली बार पैरा-एथलेटिक्स में हिस्सा लिया. 1997 में देवेन्द्र के स्कूल में स्पोर्ट्स डे के दौरान द्रोणाचार्य अवार्ड से सम्मानित कोच आर डी सिंह को बुलाया गया.
 
यहाँ आर डी सिंह ने देवेन्द्र को खेलते हुए देखा. वे उसकी क्षमता को जान गए और और उसे अपना शिष्य बना लिया. कोच ने देवेन्द्र को खेल को गहराई से लेने को कहा. इस में करियर बनाने के लिए प्रेरित किया. कोच आर डी सिंह ने देवेन्द्र का दाखिला नेहरु कॉलेज में कराया. यहाँ पढाई के साथ देवेन्द्र अपने कोच के साथ अभ्यास भी किया करते थे. देवेन्द्र ने 2001 में अपना ग्रेजुएशन अजमेर यूनिवर्सिटी से पूरा किया.
 
देवेन्द्र को खेल के प्रति जूनून है, लेकिन पैसा नहीं था. अच्छी किस्म का भाला लाखों में आता था, जिसे खरीद पाना उनके और उनके परिवार के लिए मुमकिन नहीं था. देवेन्द्र ने इसके लिए राजस्थान सरकार से मदद की गुहार लगाई,लेकिन कोई सहायता नहीं मिली. सन 2002 में एक खेल प्रेमी एनआरआई रामस्वरूप सिंह ने देवेन्द्र को 75 हजार की राशि दी, जिसके बाद उन्हें अच्छी किस्म का भाला मिल सका.
 
खेल रिकार्ड

देवेन्द्र ने सन 2002 में पहली बार अन्तराष्ट्रीय खेल में हिस्सा लिया. उन्होंने एशियन गेम्स, भूटान, साउथ कोरिया में हिस्सा लिया. यहाँ देवेन्द्र को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने जीवन का पहला गोल्ड मैडल मिला.
इसके बाद सन 2004 में देवेन्द्र, पहली बार पैरालम्पिक खेल में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए एथलीट के रूप में चुने गए. यहाँ देवेन्द्र ने भाला फेंक गेम में हिस्सा लिया  पुराने रिकॉर्ड 59.77 मीटर को पीछे छोड़ते हुए, अपना नया रिकॉर्ड 62.15 मीटर का बनाया. इस तरह देवेन्द्र को पैरालंिपक खेल में गोल्ड मैडल मिला. वह भारत के लिए गोल्ड मैडल लाने वाले दुसरे खिलाड़ी बने. इससे पहले पैरालंिपक खेल में मुरलीकान्त पेटकर को गोल्ड मैडल मिला था. इस जीत के बाद देवेन्द्र ने पीछे मुड़ के नहीं देखा.
 
  • सन 2013 में देवेन्द्र ने फ्रांसं में आयोजित ‘आईपीसी एथलेटिक्स विश्व चैंपियनशिप’ में हिस्सा लिया और गोल्ड मैडल मिला.
  • सन 2014 में देवेन्द्र ने साउथ कोरिया में आयोजित ‘एशियन पैरा गेम्स’ में सिल्वर मैडल जीता.
  • सन 2015 में दोहा में आयोजित ‘आईपीसी एथलेटिक्स विश्व चैंपियनशिप’ में अपना बेस्ट देते हुए 59.06 मीटर भाला फेंका, जबकि चाइना के ‘गुई चुन्लिंग’ ने एक नया रिकॉर्ड बना दिया. इस प्रतिस्पर्धा में देवेन्द्र ने दुसरे स्थान के साथ सिल्वर मैडल प्राप्त किया.
  • सन 2016 में देवेन्द्र ने दुबई में आयोजित ‘आईपीसी एथलेटिक्स एशिया-ओशिनिया चैंपियनशिप’ में एक बार फिर गोल्ड मैडल अपने नाम किया.
  • सन 2016 में ही देवेन्द्र ने रियो ग्रीष्मकालीन पैरालिम्पिक 2016 में पुरुष भाला फेंक इवेंट में हिस्सा लिया और अपने 2004 के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ते हुए 63.97 मीटर का नया रिकॉर्ड बनाया.
  • इस जीत के बाद देवेन्द्र को राजस्थान सरकार ने 75 लाख की राशि, 25 बीघा जमीन और एक घर देने की घोषणा की.
 मुख्य पुरुस्कार 
 
  1. 2004 में खेल के बड़े पुरुस्कार ‘अर्जुन अवार्ड’ से सम्मानित.
  2. 2012 में ‘पद्मश्री’ से सम्मानित.
  3. 2014 में पैरा-खिलाड़ी स्पोर्ट्समैन ऑफ दी इयर का खिताब
  4. 2005 में राजस्थान सरकार द्वारा ‘महराना प्रताप पुरुस्कार’ से सम्मानित