न्यूयॉर्क/वॉशिंगटन
अमेरिकी सांसदों के एक समूह ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से आग्रह किया है कि वे एच-1बी वीज़ा से जुड़े अपने हालिया आदेश पर पुनर्विचार करें, जिसके तहत नए आवेदनों पर 1,00,000 अमेरिकी डॉलर का शुल्क लगाने की घोषणा की गई है। सांसदों ने चेतावनी दी है कि यह कदम न केवल अमेरिकी अर्थव्यवस्था और तकनीकी नेतृत्व को प्रभावित करेगा, बल्कि भारत-अमेरिका संबंधों पर भी नकारात्मक असर डाल सकता है।
प्रतिनिधि सभा सदस्य जिमी पनेटा, अमी बेरा, सालुद कार्बाजल और जूली जॉनसन सहित कई सांसदों ने गुरुवार को राष्ट्रपति ट्रंप को एक संयुक्त पत्र लिखकर अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि एच-1बी वीज़ा प्रतिबंध उन भारतीय पेशेवरों को प्रभावित करेगा, जो अमेरिका के सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।
पत्र में कहा गया है कि राष्ट्रपति द्वारा ‘कुछ गैर-प्रवासी कामगारों के प्रवेश पर पाबंदी’ लगाने और एच-1बी वीज़ा के नए आवेदनों पर भारी शुल्क लगाने की नीति से अमेरिकी नवाचार तंत्र और भारतीय-अमेरिकी समुदाय दोनों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
सांसदों ने लिखा, “हम हाल ही में भारत यात्रा पर गए थे और हमने यह महसूस किया कि एच-1बी कार्यक्रम न केवल अमेरिकी अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि भारत के साथ हमारे रणनीतिक संबंधों को भी मजबूत करता है। भारतीय मूल के पेशेवर अमेरिका की तकनीकी प्रगति में अभिन्न भूमिका निभा रहे हैं।”
सांसदों ने राष्ट्रपति ट्रंप से 19 सितंबर को जारी घोषणा को स्थगित करने और ऐसी किसी भी नीति पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया, जो एच-1बी वीज़ा कार्यक्रम की पहुंच को सीमित करती हो।
उन्होंने कहा, “जब चीन कृत्रिम बुद्धिमत्ता और उन्नत तकनीकों में आक्रामक निवेश कर रहा है, ऐसे समय में अमेरिका को अपनी नवाचार क्षमता और प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त बनाए रखने के लिए विश्व की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को आकर्षित करना जारी रखना चाहिए।”
सांसदों ने यह भी रेखांकित किया कि भारत, जो पिछले वर्ष 71 प्रतिशत एच-1बी वीज़ा धारकों का मूल देश था, अमेरिका का एक प्रमुख लोकतांत्रिक साझेदार है, और इस कार्यक्रम के माध्यम से दोनों देशों के संबंध और भी मजबूत होते हैं।