वाशिंगटन
इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने सोमवार को वाशिंगटन डीसी में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से व्हाइट हाउस में मुलाकात की। इस दौरान दोनों नेताओं ने गाजा पट्टी से फिलिस्तीनियों को अन्य देशों में पुनर्वासित करने के अपने विवादास्पद प्रस्ताव का दोहराव किया — जिसे आलोचकों ने "जबरन पलायन" और "जातीय सफाया" (Ethnic Cleansing) करार दिया है।
यह मुलाकात व्हाइट हाउस के ब्लू रूम में डिनर के दौरान हुई, जबकि उसी समय कतर में अमेरिका की मध्यस्थता में इजरायल और हमास के बीच 60-दिन के संघर्षविराम को लेकर परोक्ष वार्ताएं जारी थीं।
नेतन्याहू ने कहा, “हम अमेरिका के साथ मिलकर उन देशों की पहचान करने पर काम कर रहे हैं जो फिलिस्तीनियों को बेहतर भविष्य देने की बात करते आए हैं। मुझे लगता है कि हम ऐसे कई देशों के करीब पहुँच चुके हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “अगर कोई रहना चाहता है, तो रह सकता है, लेकिन अगर कोई जाना चाहता है, तो उसे जाने दिया जाना चाहिए। यह इलाका जेल नहीं होना चाहिए, बल्कि एक खुली जगह होनी चाहिए जहां लोगों को स्वतंत्र रूप से विकल्प मिल सके।”
राष्ट्रपति ट्रंप ने भी इस योजना का समर्थन करते हुए कहा, “कुछ अच्छा होने वाला है।” उन्होंने यह भी दावा किया कि इस मुद्दे पर पड़ोसी देशों से "बेहतरीन सहयोग" मिल रहा है।
हालांकि, अल जज़ीरा की संवाददाता हम्दा सालहुत ने जॉर्डन के अम्मान से बताया, “इजरायली सरकार इस प्रस्ताव को ‘स्वैच्छिक प्रवास’ कहती है, लेकिन वैश्विक स्तर पर इसे जातीय सफाया की संज्ञा दी जा रही है।”
पूर्व इजरायली राजनयिक एलोन पिंकस ने कहा कि भले ही इस तरह के बयान कई बार सार्वजनिक रूप से दिए गए हों, लेकिन अभी तक कोई स्पष्ट या व्यवहारिक योजना मौजूद नहीं है। उन्होंने कहा, “सिर्फ प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति कुछ बोल दें, इसका मतलब यह नहीं कि वास्तव में ऐसा कोई कार्य योजना है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि “फरवरी की शुरुआत में ट्रंप ने ‘फिलिस्तीनी रिवेरा’ की बात की थी, लेकिन 36 घंटे के भीतर ही उनका बयान बदल गया और वह ‘फिलिस्तीनियों को बाहर निकालने’ की बात कहने लगे।”
बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप द्वारा पुनर्वास योजना का प्रारूप तैयार करने की खबरों के बीच, पिंकस ने चेताया कि इस तरह की अवधारणाएं वास्तव में लागू नहीं की जा सकतीं — और यह एक विनाशकारी नतीजा ला सकती हैं क्योंकि यह किसी भी संभावित युद्धोत्तर समझौते को टिकाऊ नहीं रहने देगी।
इसी दौरान, कतर में इजरायली और हमास वार्ताकार अलग-अलग कमरों में बातचीत कर रहे हैं, जिसमें 60-दिन के संघर्षविराम, बंधकों की चरणबद्ध रिहाई, इजरायली सैन्य वापसी और व्यापक युद्धविराम वार्ताएं शामिल हैं।
हालांकि नेतन्याहू ने एक बार फिर स्वतंत्र फिलिस्तीनी राष्ट्र की मांग को खारिज कर दिया और स्पष्ट किया कि इजरायल हमेशा गाजा पर सुरक्षा नियंत्रण बनाए रखेगा।
वहीं हमास ने अपनी तरफ से पूर्ण इजरायली वापसी और सभी फिलिस्तीनी बंदियों की रिहाई के बदले इजरायली बंधकों को छोड़ने की बात कही है।
ट्रंप ने भविष्यवाणी की थी कि इस सप्ताह संघर्षविराम समझौता हो सकता है, लेकिन सोमवार की बैठक के बाद कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई। उनकी टीम के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ़, जो नई योजना के प्रमुख सूत्रधार माने जा रहे हैं, इस सप्ताह कतर वार्ता में शामिल हो सकते हैं।
व्हाइट हाउस की बैठक के दौरान नेतन्याहू ने ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन पत्र भी सौंपा।अल जज़ीरा के वाशिंगटन संवाददाता फिल लावेल ने कहा, “यह सब दिखावे की राजनीति का हिस्सा है। नेतन्याहू चाहते हैं कि यह मुलाकात इजरायल में एक बड़ी कूटनीतिक जीत के रूप में देखी जाए।”
ट्रंप, जो लंबे समय से नोबेल पुरस्कार जीतने की इच्छा ज़ाहिर करते रहे हैं, ने इस अवसर पर भारत-पाकिस्तान और कांगो-रवांडा के बीच पहले कराई गई संघर्षविराम वार्ताओं की भी चर्चा की।
उन्होंने यह भी खुलासा किया कि ईरान ने उसके साथ परमाणु कार्यक्रम को लेकर फिर से बातचीत शुरू करने की इच्छा जताई है। ट्रंप ने कहा, “हमने ईरान वार्ता निर्धारित की है, और वे बात करना चाहते हैं। उन्हें काफ़ी झटका लगा है।”
ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान ने अमेरिकी पत्रकार टकर्स कार्लसन को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि उन्हें यकीन है कि अमेरिका के साथ मतभेदों को संवाद के ज़रिये सुलझाया जा सकता है।