इस्लामाबाद. पाकिस्तान का सिंध प्रांत देश में सबसे अधिक आत्महत्या दर वाला सूबा है और यह अनुसूचित जातियों के लिए एक बुरा सपना है. वॉयसपीके में जलील ने कहा कि सिंध की संख्या बताती है कि सबसे कठिन अनुसूचित जातियों का जीवन है, हिंदू समुदाय का सबसे निचला सामाजिक-आर्थिक स्तर है. अनुसूचित जाति समुदाय के सदस्यों का दावा है कि ये हताशाजनक उपाय मुख्य रूप से प्रांत में अत्यंत संकटपूर्ण आर्थिक स्थिति के कारण हो रहे हैं और वे सबसे अधिक प्रभावित हैं.
जलील ने बताया कि सिंध पुलिस द्वारा संकलित आंकड़ों से पता चलता है कि 1 जनवरी 2014 से 30 जून 2019 के बीच 681 मुसलमानों और 606 हिंदुओं ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली. मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील और पाकिस्तान अनुसूचित जातियों के समन्वयक एडवोकेट सरवन भील के अनुसार, इस अवधि के दौरान केवल अनुसूचित जातियों के बीच लगभग 590आत्महत्या के मामले दर्ज किए गए हैं.
जिला उमरकोट में, विभिन्न कारणों से 109 पुरुषों और 77 महिलाओं की आत्महत्या से मृत्यु हो गई. मीठी जिले में 51 पुरुष और 70 महिलाएं, मीरपुरखास जिले में 26 पुरुष और 36महिलाएं, बदीन जिले में 15 पुरुष और 22 महिलाएं, जिले टंडो अल्लाह यार में 20 पुरुष और 15 महिलाएं, जिला मटियारी में नौ पुरुष और 12 महिलाएं और जिला हैदराबाद में तीन पुरुषों और चार महिलाओं की आत्महत्या से मौत हो गई.
स्थानीय समुदाय खुले तौर पर लोगों की पीड़ा के लिए सरकार की कमजोर और अदूरदर्शी सामाजिक और आर्थिक नीतियों को जिम्मेदार ठहराता है. अनुसूचित जाति पहले से ही हाशिए पर पड़े हिंदू समुदाय का अत्यधिक हाशिए पर रहने वाला वर्ग है. इस वजह से उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. 2017 की राज्य की जनगणना के अनुसार, पाकिस्तान में अनुसूचित जातियों की संख्या 849,614 है, लेकिन समुदाय का तर्क है कि उनकी गिनती कम ही रहती है.
जलील ने कहा कि अनुसूचित जाति की 79 प्रतिशत आबादी ने कहा कि उन्हें किसी न किसी तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ा. सबसे बुरा व्यवहार मुसलमानों, सामंती जमींदारों, कुलीनों, सवर्ण हिंदुओं और रेस्तरां / दुकान मालिकों से होता है. लगभग 70प्रतिशत ने कहा कि उनके उच्च जाति के हिंदू और मुस्लिम पड़ोसी या तो उन्हें अपने सामाजिक समारोहों जैसे शादियों में आमंत्रित नहीं करते हैं या यदि उन्हें आमंत्रित किया जाता है, तो उन्हें अलग से भोजन परोसा जाता है.
स्कूलों में अनुसूचित जाति के छात्रों को पिछली सीटों पर बैठने के लिए बाध्य किया जाता है और गैर-अनुसूचित जाति के छात्रों को आगे की सीटों पर बिठाया जाता है.
सिंध के चार जिलों से मिली जानकारी से पता चला कि उनकी आबादी का एक बड़ा हिस्सा नाई की सेवाओं से वंचित था और 90 प्रतिशत को होटल और रेस्तरां में अलग-अलग क्रॉकरी में खाना और चाय परोसा जाता है, जिसे उन्हें खुद धोना पड़ता है.
एक स्थानीय संगठन, एसोसिएशन फॉर वॉटर, एप्लाइड एजुकेशन एंड रिन्यूएबल एनर्जी की एक रिपोर्ट कहती है कि 2014 और 2020 के बीच थारपारकर के 443 लोगों की आत्महत्या से मौत हुई है. इनमें से अकेले 2020 में 79 आत्महत्याएं दर्ज की गईं, जो जिलों की सूची में सबसे ऊपर हैं.
खराब आर्थिक स्थिति के साथ, ऋण और सूक्ष्म ऋण में वृद्धि हुई है. रिपोर्ट से सामने आई अन्य जानकारी में यह भी शामिल है कि 24प्रतिशत पीड़ितों को पहले से ही मानसिक बीमारियों के अलग-अलग स्वरूप थे, जबकि नौ प्रतिशत पीड़ित कर्ज के बोझ तले दबे थे.
रिपोर्ट के अनुसार, 60 प्रतिशत पीड़ित 10 से 20 वर्ष के आयु वर्ग के थे, और 36 प्रतिशत 21 से 30 वर्ष की आयु वर्ग में थे. लगभग 45 प्रतिशत महिलाओं और 15 प्रतिशत पुरुषों के पास कोई औपचारिक शिक्षा नहीं थी. जबकि 60 प्रतिशत महिलाएं गृहिणी थीं और 40प्रतिशत पीड़ित निम्न-आय वर्ग, अकुशल मजदूर, किसान, दिहाड़ी मजदूर और छोटे थे. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आत्महत्या करने वालों में से 15 प्रतिशत ने आत्महत्या करने से पहले आत्महत्या करने का प्रयास किया था और महिला से पुरुष अनुपात 4ः1 था.
इस मरुस्थलीय क्षेत्र में स्थानीय अर्थव्यवस्था भारी वर्षा पर निर्भर है और अनिश्चित मौसम पैटर्न आजीविका पर प्रभाव डाल रहे हैं और गरीबी में बहुत गहराई तक धकेल रहे हैं.
गरीबी और लिंग के अंतर्संबंध के कारण, अनुसूचित जाति की महिलाएं सबसे अधिक असुरक्षित हैं. अक्सर ‘बाहरी’ (मुस्लिम) पुरुषों द्वारा यौन रूप से उपलब्ध मानी जाती हैं. चूंकि उनके पास बहुत कम बैकअप आर्थिक समर्थन या राजनीतिक सुरक्षा है. इसलिए महिलाएं अक्सर जबरन धर्मांतरण की शिकार होती हैं.