Birth Anniversary: The incomplete truth of Waheeda Rehman and Guru Dutt's love is recorded in every frame of cinema
अर्सला खान/नई दिल्ली
आज हिन्दी सिनेमा के महान फिल्मकार, अभिनेता और निर्देशक गुरुदत्त की जयंती है. 9 जुलाई 1925 को जन्मे गुरुदत्त का नाम भारतीय सिनेमा में उस कलाकार के रूप में लिया जाता है जो अपने भीतर गहरी संवेदनाएं, अधूरी इच्छाएं और कलात्मक जुनून लेकर चलता था. उनकी फिल्में सिर्फ कहानियां नहीं थीं, बल्कि दर्द, मोहब्बत, समाज और अकेलेपन की आत्मा से बुनी हुई कविताएं थीं.
गुरुदत्त की निजी ज़िंदगी भी उनके सिनेमा की तरह ही गहरी, जटिल और कहीं न कहीं अधूरी रह गई. उनकी ज़िंदगी की सबसे चर्चित और दुखद प्रेम कहानी रही वहीदा रहमान से उनका रिश्ता, जो कभी मंज़िल तक न पहुंच सका. इस कहानी के एक और अहम किरदार थीं उनकी पत्नी गीता दत्त, जिनका दर्द भी गुरुदत्त की त्रासदी का एक अहम हिस्सा बना.
जब गुरुदत्त को मिली वहीदा रहमान 
गुरुदत्त ने वहीदा रहमान को सबसे पहले 1955 में देखा था, जब वे तेलुगु फिल्म ‘रोजुलु मरायी’ में काम कर रही थीं. गुरुदत्त की नज़र में वहीदा एक ऐसी अभिनेत्री थीं, जिनके चेहरे पर मासूमियत और अभिनय में गहराई थी. उन्होंने तुरंत उन्हें अपनी फिल्म ‘सीआईडी’ (1956) में काम करने का प्रस्ताव दिया और वहीदा ने हिंदी सिनेमा में इसी फिल्म से प्रवेश किया फिर क्या था वहीदा रहमान की इस मासूमियत पर मर मिटे गुरुदत्त.
इसके बाद वहीदा रहमान गुरुदत्त की फिल्मों की स्थायी नायिका बन गईं — ‘प्यासा’, ‘कागज़ के फूल’, ‘चौदहवीं का चांद’, और ‘साहिब बीबी और गुलाम’ जैसी फिल्मों में दोनों की केमिस्ट्री अद्भुत थी. फिल्मी पर्दे से इतर, दोनों के बीच एक गहरा लगाव पनप रहा था, जिसे फिल्म इंडस्ट्री में भी महसूस किया जाने लगा.
गीता दत्त और टूटता परिवार
गुरुदत्त की शादी प्रसिद्ध गायिका गीता दत्त से 1953 में हुई थी. शुरू में उनका रिश्ता बेहद खूबसूरत था. गीता ने गुरुदत्त की फिल्मों के लिए कई हिट गीत गाए और एक रचनात्मक जोड़ी के रूप में दोनों ने फैंस की बीच काफी सुर्खियां बटोरी, लेकिन वहीदा रहमान से गुरुदत्त के बढ़ते संबंधों ने गीता को गहरा आघात पहुंचाया. उन्होंने यह स्वीकार किया कि उनके पति का झुकाव किसी और महिला की ओर हो चुका है. दोनों के बीच दूरियां और भी ज्यादा बढ़ने लगीं. गीता दत्त ने फिल्मों के लिए गाना छोड़ दिया और बच्चों के साथ अलग रहने लगीं.
गुरुदत्त, जो पहले से ही एक भावुक और असुरक्षित कलाकार थे, इस टूटते हुए रिश्ते का दर्द झेल नहीं पाए. वहीदा रहमान से रिश्ता भी पूरी तरह स्पष्ट नहीं था — समाज, शादीशुदा जिंदगी और कलाकार के रूप में उनके अपने द्वंद्व ने इसे एक सोच-विचार बना दिया.
क्यों अधूरी रह गई ये मोहब्बत?
गुरुदत्त वहीदा रहमान से शादी करना चाहते थे, लेकिन वहीदा कभी इस रिश्ते को लेकर सहज नहीं रहीं. वे गुरुदत्त की शादीशुदा स्थिति को लेकर असमंजस में थीं. उन्होंने न तो कभी खुलेआम अपने रिश्ते को स्वीकारा, न ही गुरुदत्त की भावनाओं को पूरी तरह नकारा.
कई साक्षात्कारों में वहीदा रहमान ने यह माना कि वे गुरुदत्त की कला से बेहद प्रभावित थीं, लेकिन निजी जिंदगी में वे किसी का घर तोड़कर उसमें दाखिल नहीं होना चाहती थीं. गुरुदत्त के लिए यह प्रेम एक जुनून बन गया, जो उनके सिनेमा में भी झलकता है — ‘कागज़ के फूल’ की असफलता हो या ‘प्यासा’ का दर्द, हर फ्रेम में वे अधूरेपन को जीते नजर आते हैं.
गुरुदत्त ने कहा अलविदा और एक दर्दनाक विराम
10 अक्टूबर 1964 को, महज 39 साल की उम्र में गुरुदत्त अपने फ्लैट में मृत पाए गए. माना जाता है कि उन्होंने नींद की गोलियां ली थीं. ये आत्महत्या थी या दुर्घटना, यह आज तक विवाद का विषय है. लेकिन उनके अंत ने सिनेमा और उनके चाहने वालों को गहरे शोक में डाल दिया.
उनकी मौत के कुछ वर्षों बाद गीता दत्त भी अवसाद और स्वास्थ्य समस्याओं से जूझती हुई चल बसीं. वहीदा रहमान ने उसके बाद खुद को निजी जीवन में बेहद सीमित कर लिया और फिल्मों में व्यस्त रहीं.
असली शादी – कामलजीत से
गुरुदत्त की मृत्यु के लगभग एक दशक बाद, वहीदा रहमान ने 1974 में अभिनेता कमलजीत (शशि रेखी) से शादी की, जो उनकी फिल्म ‘शगुन’ (1964) के सह-कलाकार थे. यह शादी बेहद निजी समारोह में हुई और मीडिया को भी ज़्यादा जानकारी नहीं दी गई.
शादी के बाद वहीदा ने फिल्मों से धीरे-धीरे दूरी बना ली और पारिवारिक जीवन में व्यस्त हो गईं. उनके दो बच्चे हुए — एक बेटा और एक बेटी। कमलजीत का निधन 2000 में हो गया। इसके बाद वहीदा मुंबई छोड़कर बेंगलुरु के पास अपने फार्महाउस में रहने लगीं.
वहीदा रहमान के जीवन में मोहब्बत, दोस्ती और शादी को लेकर कई चर्चाएं हुईं, लेकिन उन्होंने हमेशा अपनी निजता को बनाए रखा. गुरुदत्त से उनके रिश्ते को लेकर चाहे जितनी भी अटकलें रही हों, लेकिन उन्होंने कभी उसे प्रेम, अफेयर या शादी की तरह नहीं परिभाषित किया. उनकी ज़िंदगी का यह पहलू यह सिखाता है कि हर किस्सा सार्वजनिक मंच पर लाया जाए, यह ज़रूरी नहीं — कुछ कहानियां सिर्फ दिलों और नज़रों में बसी रहती हैं.
एक अधूरी दास्तान
गुरुदत्त और वहीदा रहमान की प्रेम कहानी न तो कोई सार्वजनिक घोषणा बनी, न ही कोई ठोस रिश्ता. यह एक ऐसा एहसास था, जो गुरुदत्त की आंखों में बसा रहा, वहीदा की चुप्पी में छुपा रहा, और उनके सिनेमा के हर फ्रेम में दर्ज हो गया.
गुरुदत्त की जयंती पर यह याद दिलाना ज़रूरी है कि कुछ मोहब्बतें मुकम्मल नहीं होतीं, लेकिन वे इतनी गहरी होती हैं कि इतिहास बन जाती हैं — और गुरुदत्त की प्रेम कहानी उसी इतिहास का एक खूबसूरत, दर्दभरा पन्ना है.