द हेग
अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय (आईसीसी) ने तालिबान शासन के दौरान अफगानिस्तान में महिलाओं और लड़कियों पर व्यवस्थित अत्याचार के आरोप में तालिबान के सर्वोच्च नेता हिबतुल्लाह अखुनजादा और अफगानिस्तान के उच्चतम न्यायालय के प्रमुख अब्दुल हकीम हक्कानी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। यह कदम महिला अधिकारों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा संकेत माना जा रहा है।
लैंगिक अत्याचार को युद्ध अपराध के रूप में मान्यता
आईसीसी की जांच में यह निष्कर्ष निकला कि तालिबान शासन ने सिर्फ महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ ही नहीं, बल्कि उन सभी लोगों को भी निशाना बनाया जो लैंगिक पहचान, अभिव्यक्ति या महिलाओं के सहयोगी माने जाते थे। वारंट में कहा गया है कि यह अत्याचार महज़ सामाजिक नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से संगठित और जानबूझकर किए गए थे।
अभियोजन पक्ष ने क्या कहा?
आईसीसी के अभियोजन कार्यालय ने इस निर्णय को अफगान महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों की "अहम अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति" बताया। बयान में कहा गया कि "यह फैसला उन सभी लोगों के संघर्ष और पीड़ा की भी मान्यता है, जिन्हें तालिबान की कट्टर वैचारिक अपेक्षाओं के अनुरूप न होने के कारण प्रताड़ित किया गया – चाहे वे LGBTQIA+ समुदाय के सदस्य हों या महिलाओं के पक्षधर।"
संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय दबाव
इस वारंट से कुछ ही घंटे पहले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें तालिबान से महिलाओं और लड़कियों पर अत्याचार रोकने तथा सभी आतंकवादी समूहों को खत्म करने की मांग की गई थी।
पहले भी शीर्ष नेताओं पर वारंट जारी कर चुका है आईसीसी
गौरतलब है कि इससे पहले आईसीसी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ भी युद्ध अपराधों के मामलों में गिरफ्तारी वारंट जारी किए हैं।
तालिबान शासन में महिलाओं की स्थिति
साल 2021 में अफगानिस्तान में दोबारा सत्ता में लौटने के बाद से तालिबान ने महिलाओं और लड़कियों पर कई प्रतिबंध लगाए हैं। छठी कक्षा के बाद लड़कियों की शिक्षा पर रोक, महिलाओं को सार्वजनिक स्थलों पर जाने और नौकरी करने से रोकने जैसे कठोर फैसले लिए गए।
आईसीसी के मुताबिक, तालिबान ने अपने फरमानों के ज़रिए महिलाओं को शिक्षा, निजी जीवन, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, और धार्मिक व वैचारिक स्वतंत्रता जैसे मूल अधिकारों से वंचित कर दिया है। साथ ही, उन्होंने ऐसे लोगों को भी निशाना बनाया जिनकी यौन अभिरुचि या लैंगिक पहचान उनकी कट्टर लिंग नीति से मेल नहीं खाती थी।
राजनीतिक पृष्ठभूमि और विवाद
दिलचस्प बात यह है कि रूस हाल ही में तालिबान सरकार को मान्यता देने वाला पहला देश बन गया है। ऐसे में आईसीसी का यह वारंट न केवल तालिबान, बल्कि उसके सहयोगी माने जा रहे देशों के लिए भी राजनयिक दबाव की स्थिति उत्पन्न कर सकता है।
यह कार्रवाई तालिबान के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सख्त चेतावनी मानी जा रही है कि महिलाओं के अधिकारों का हनन अब राजनीतिक स्वायत्तता के नाम पर स्वीकार नहीं किया जाएगा।