सईद सुल्ताना : इस हैदरावादी वंडर गर्ल ने टेबल टेनिस की दुनिया को चौंका दिया

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 01-04-2021
सईद सुल्ताना
सईद सुल्ताना

 

गुलरुख जहीन / नई दिल्ली

यह 1951 का साल था, तब ऑस्ट्रिया के वियना में विश्व टेबल टेनिस चौंपियनशिप के दौरान रोमानिया की एंजेलिका रोजेनु एक 14 वर्षीय भारतीय लड़की से प्रतिस्पर्धा कर रही थीं.  यह सबको पता था कि एंजेलिका ने प्रतियोगिताओं के इतिहास में कभी कोई मैच नहीं खोया था.  मैच के दौरान सभी खेल संवाददाता उठकर स्नैक्स लेने चले गए, क्योंकि वे परिणाम के बारे में निश्चित थे कि एंजेलिका मैच आराम से जीत रही थीं.  सभी को आश्चर्यचकित करते हुए, कुछ लोग जल्दी ही खेल संवाददाताओं को यह बताने के लिए दौड़ पड़े कि वे एक ऐतिहासिक मोड़ को कवर करने से चूक गए, क्योंकि भारतीय लड़की ने एंजेलिका को एक गेम में हरा दिया है.  अगले दिन, अखबारों ने सलवार-कमीज पहने एक भारतीय लड़की की खबर छापी, जिसने एंजेलिका को परेशान कर दिया था.  उसे टेबल टेनिस का सिंड्रेला कहा जाता था और वह युवा लड़की थी - हैदराबाद की सईद सुल्ताना.

चैंपियन से पहले का जीवन

सईद सुल्ताना का जन्म 14 सितंबर, 1936 को हैदराबाद (डेक्कन) में एक नामी परिवार में हुआ था.  उनके पिता का नाम मुहम्मद अहमद अली था.  छह भाईयों में एकमात्र बहन होने के नाते, वे परिवार में सभी के लिए प्रिय थीं.  वे हैदराबाद के प्रसिद्ध महबूबिया गर्ल्स हाई स्कूल की छात्रा थीं.

भाई घर में टेबल टेनिस सेट लाए

यह सब 1947 में तब शुरू हुआ, जब सईद सुल्ताना के बड़े भाई हामिद अली घर में टेबल टेनिस सेट लाए.  प्रारंभ में, सभी बुजुर्ग अपने खाली समय को खेल में बिताया करते थे.  युवा अल्ताफ और सुल्ताना घंटों बैठे रहते और बुजुर्गों को खेलते हुए देखते थे.  जब घर के बड़े अपना खेल समाप्त कर देते, तो ये दोनों बच्चे उसी तरह टेबल टेनिस में हाथ आजमाते, जिस तरह से उनके बुजुर्ग खेलते थे.

यह 1948 की बात है, जब ये दोनों बच्चे टेबल टेनिस खेल रहे थे और अचानक उनके बड़े भाइयों ने कमरे में प्रवेश किया और उन्हें अच्छा खेलते देखा.  वे विस्मित हो गए.  इसके बाद, सभी बड़े भाइयों ने न केवल इन छोटे बच्चों की हौसलाआफजाई की, बल्कि उनका मार्गदर्शन करना भी शुरू कर दिया.  1949तक, सईद सुल्ताना ने टेबल टेनिस के खेल में महारत हासिल कर ली, और अपने भाइयों को घर पर खेल हुए हराने लगीं.

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सईद सुल्ताना का बचपन


पहला एकल खिताब जीता 

इस बीच, एक परिचित ने सईद सुल्ताना को हैदराबाद स्टेट चैम्पियनशिप में भाग लेने की सलाह दी.  कई लोगों के प्रोत्साहन और उनके भाइयों के प्रयासों के बाद, सईद सुल्ताना को उसके परिवार के सदस्यों ने प्रतियोगिता में भाग लेने की अनुमति दी.  और वहां से, भारत के महिला टेबल टेनिस के इतिहास में एक शानदार बदलाव देखा गया.  सईद सुल्ताना ने न केवल उन सभी खिलाड़ियों को हराया, जिनके साथ वह प्रतिस्पर्धा कर रही थीं, बल्कि पिछले विजेता को हराकर महिला एकल का खिताब भी जीत लिया था.

महिलाएं वो भी बेपर्दा

ऑल इंडिया टेबल टेनिस चैम्पियनशिप हैदराबाद में दिसंबर 1949 में आयोजित की जा रही थी, जहां सईद सुल्ताना को महिलाओं की टीम का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया था.  सईद सुल्ताना की मां प्रतियोगिता में उनकी भागीदारी के खिलाफ थीं, क्योंकि तब महिलाओं को बिना घूंघट सार्वजनिक रूप से जाने की अनुमति नहीं थी.  लेकिन अपने भाइ्रयों द्वारा अपनी मां को समझाने के लगातार प्रयासों के बाद, सईद सुल्ताना को आखिरकार बड़े भाई मुजफ्फर अली की देख-रेख में प्रतियोगिता में भाग लेने की अनुमति दी गई.

पहली बार हैदराबाद की महिला टीम ने अच्छा प्रदर्शन किया और फाइनल में पहुंची.  पूरी प्रतियोगिता के दौरान, सईदा सुल्ताना केवल एक मैच हारीं.  उन्होंने महज 13 साल की उम्र में महिला एकल का खिताब जीता.  यह उनकी बड़ी उपलब्धि थी, क्योंकि वह पहली बार किसी राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग ले रही थीं.  और इसके बाद, सईद सुल्ताना ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

सईद सुल्ताना ने 1950 के दौरान कोलंबो, श्रीलंका में ऑल इंडिया टेबल टेनिस चौंपियनशिप में न केवल महिला एकल जीता, बल्कि मिश्रित युगल का खिताब भी जीता.  इसके साथ, वे भारत में नंबर 1 रैंक पर पहुंच गईं और 1951 में अंतर्राष्ट्रीय टेबल टेनिस प्रतियोगिता, वियना (ऑस्ट्रिया) में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुनी गईं.  वियना में, उन्होंने अमेरिका, हॉलैंड और मिस्र के नंबर एक खिलाड़ियों को हराकर 55 में से 40 मैच जीते.  यूरोप के अखबारों में उन्हें टेबल टेनिस की दुनिया में ‘आश्चर्य’ कहा जाता था.  खेल के विशेषज्ञों का मानना था कि 20 साल की उम्र तक, सईद सुल्ताना एक अपराजेय खिलाड़ी बन जाएंगी.  

 

जीत का सफर

बॉम्बे में 1952 में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में उनका प्रदर्शन भी अविस्मरणीय था.  सभी का मानना था कि अगर वह थोड़ा और अभ्यास करती, तो वह किसी भी यूरोपीय चौंपियन को हरा सकती थीं.

1954 में, लंदन में एक अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता हुई.  सईद सुल्ताना टूर्नामेंट के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बनीं.  उस समय के खेल विशेषज्ञों के अनुसार, सईद खुद सर्वश्रेष्ठ थीं, लेकिन टीम से अच्छा समर्थन नहीं मिलने के कारण भारत चौंपियनशिप नहीं जीत सका.  स्मरण रहे कि उन्होंने सभी एकल स्पर्धाएं आसानी से जीत ली थीं.   

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सईद सुल्ताना अपनी ट्राफियों के साथ

प्हले भारत की फिर पाकिस्तान की चैंपियन रहीं

सईद सुल्ताना 1949, 1950, 1951, 1952, 1953और 1954 में भारत की राष्ट्रीय टेबल टेनिस चौंपियन रहीं.  उनका परिवार 1956 में पाकिस्तान चला गया.  वह भी पाकिस्तान चली गईं और 1956, 1957और 1958 में चौंपियनशिप खेली और जीतीं.  फिर वह पाकिस्तान की टेबल टेनिस राष्ट्रीय चौंपियन बनी.  1959 में उन्होंने खेलों से सन्यास ले लिया और 15 सितंबर, 2005 को उनका निधन हो गया.

(इनपुटः मोहम्मद उमर अशरफ)