Not Dilip Kumar but Yusuf Khan: Some unheard stories from the life of the Tragedy King on his death anniversary
अर्सला खान/नई दिल्ली
हिंदी सिनेमा के ट्रेजेडी किंग कहे जाने वाले अभिनेता दिलीप कुमार की आज पुण्यतिथि है. 7 जुलाई 2021 को 98 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली थी. इस खास मौके पर जानते हैं उनकी जिंदगी के कुछ अनसुने किस्से...
दिलीप कुमार असली नाम मोहम्मद यूसुफ खान था, लेकिन फिल्मी दुनिया में उन्होंने 'दिलीप कुमार' नाम से अपनी पहचान बनाई और भारतीय सिनेमा को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया. उनकी पुण्यतिथि पर आज हम उनकी जिंदगी के कुछ अनसुने पहलुओं और निजी संघर्षों को याद कर रहे हैं, जो उन्हें इंसान और कलाकार दोनों रूपों में खास बनाते हैं.
क्यों बदला नाम?
दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसंबर 1922 को पाकिस्तान के पेशावर (अब खैबर पख्तूनख्वा) में हुआ था. उनका परिवार बाद में मुंबई आ गया. जब उन्हें बॉम्बे टॉकीज की अभिनेत्री और निर्माता देविका रानी ने पहली बार अभिनय का मौका दिया, तो उन्होंने सलाह दी कि यूसुफ खान नाम की बजाय उन्हें एक ऐसा नाम अपनाना चाहिए जो स्क्रीन पर ज्यादा अपीलिंग लगे.
देविका रानी ने ही उन्हें 'दिलीप कुमार' नाम दिया. उस दौर में मुस्लिम अभिनेताओं को हिंदू नाम से पर्दे पर आना आम बात थी, ताकि व्यापक दर्शकों से जुड़ाव बढ़ाया जा सके. दिलीप कुमार ने कभी इसका विरोध नहीं किया और इस नाम से एक ऐसा इतिहास रच डाला जिसे मिटाना नामुमकिन है.
क्यों नहीं हुई संतान?
दिलीप कुमार और अभिनेत्री सायरा बानो की जोड़ी को बॉलीवुड की सबसे खूबसूरत जोड़ियों में शुमार किया जाता है. सायरा बानो उनसे उम्र में 22 साल छोटी थीं, लेकिन शादी के बाद यह अंतर कभी आड़े नहीं आया. हालांकि उनकी निजी जिंदगी में एक अधूरी ख्वाहिश हमेशा रही — संतान की कमी.
एक इंटरव्यू में सायरा बानो ने खुद बताया था कि शादी के कुछ सालों बाद जब वह गर्भवती हुई थीं, तो एक गंभीर मेडिकल जटिलता के चलते गर्भपात हो गया. इसके बाद वह कभी मां नहीं बन सकीं. इस दुख को दोनों ने साथ मिलकर स्वीकार किया और एक-दूसरे का सहारा बनते रहे.
एक औरत से थे खास रिश्ते
सायरा बानो से शादी के पहले दिलीप कुमार का नाम अभिनेत्री मधुबाला से जुड़ा था. दोनों की जोड़ी ‘मुगल-ए-आज़म’ जैसी क्लासिक फिल्मों में भी साथ नजर आई थी. उनका रिश्ता बहुत गहरा था और शादी तक भी पहुंच सकता था, लेकिन कुछ कानूनी विवाद और पारिवारिक अड़चनों के कारण दोनों अलग हो गए. यह दिलीप कुमार के जीवन की सबसे बड़ी भावनात्मक त्रासदियों में से एक थी.
उर्दू-फारसी साहित्य में पकड़ मजबूत
बहुत कम लोग जानते हैं कि दिलीप कुमार ने 1991 में राज्यसभा सदस्य के रूप में भी सेवा दी थी. उन्हें कांग्रेस पार्टी की ओर से उच्च सदन में नामांकित किया गया था. हालांकि वे सक्रिय राजनीति से दूर ही रहे, लेकिन उन्होंने कई सामाजिक मुद्दों पर अपनी राय बेबाकी से रखी.
दिलीप कुमार किताबों के बेहद शौकीन थे और साहित्यिक बातचीत में गहरी रुचि रखते थे. उन्हें शेरो-शायरी से लगाव था और उर्दू-फारसी साहित्य में उनकी पकड़ मजबूत थी. फिल्मों की चमक-दमक से परे वे एक अंतर्मुखी व्यक्ति थे जिन्हें एकांत और विचारों की दुनिया प्रिय थी.
आखिरी समय तक सायरा बनी रहीं ताक़त
दिलीप कुमार की तबीयत लंबे समय तक खराब रही. वे उम्रजनित बीमारियों से जूझते रहे. इस दौरान सायरा बानो ने उनका हर पल ख्याल रखा. अस्पताल से लेकर घर तक, हर जगह सायरा उनके साथ साए की तरह रहीं। जब उन्होंने अंतिम सांस ली, तब भी सायरा उनके पास थीं.
आज जब हम दिलीप कुमार की पुण्यतिथि पर उन्हें याद कर रहे हैं, तो यह सिर्फ एक महान अभिनेता को श्रद्धांजलि नहीं है, बल्कि एक ऐसे इंसान को सलाम है जिसकी जिंदगी कला, प्रेम, त्याग और आत्मसंयम की मिसाल रही। दिलीप साहब ने जो अभिनय की ऊंचाइयां छुईं, वे आने वाली पीढ़ियों के लिए हमेशा प्रेरणा बनी रहेंगी.
जेल का अनुभव जिसने बदल दी सोच
1962 में भारत-पाक युद्ध के दौरान एक पाकिस्तानी अखबार में छपे दिलीप कुमार के एक पुराने बयान को विवादास्पद बनाकर पेश किया गया। इस पर कुछ हिंदू संगठनों ने विरोध किया और उनके खिलाफ प्रदर्शन भी हुए. मामला बढ़ा और उन्हें कुछ घंटों के लिए जेल में रखा गया। बाद में उन्होंने साफ किया कि उनके शब्दों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया था. ये अनुभव उनके लिए काफी झकझोर देने वाला था और उन्होंने इसके बाद मीडिया से दूरी बना ली.
दिलीप कुमार की ज़िंदगी जितनी फिल्मों में बसी, उससे कहीं ज़्यादा गहराई से वह उन किस्सों में बसी है जिन्हें बहुत कम लोग जानते हैं. उनकी पुण्यतिथि पर आज हम उन्हें सिर्फ एक अभिनेता के रूप में नहीं, बल्कि एक इंसान, एक प्रेमी, एक विचारक और एक सच्चे कलाकार के रूप में सलाम करते हैं.
यादगार फिल्में
दिलीप कुमार ने अपने शानदार करियर में कुल 65 हिंदी फिल्मों में काम किया. उनका फिल्मी सफर 1944 में आई फिल्म ‘ज्वार भाटा’ से शुरू हुआ और 1998 में ‘किला’ के साथ समाप्त हुआ.
उनकी फिल्मों में ट्रेजेडी, रोमांस, सामाजिक मुद्दों और देशभक्ति जैसे कई रंग देखने को मिले. उन्हें 'ट्रेजेडी किंग' कहा जाता है क्योंकि उन्होंने भावनात्मक और दर्दभरे किरदारों को इतनी सजीवता से निभाया कि दर्शकों के दिलों में अमिट छाप छोड़ दी.
दिलीप कुमार की कुछ यादगार फिल्में:
अंदाज़ (1949)
दीदार (1951)
दाग (1952)
आन (1952)
देवदास (1955)
नया दौर (1957)
मुग़ल-ए-आज़म (1960)
गंगा जमुना (1961) – जिसमें उन्होंने निर्माता और लेखक के तौर पर भी काम किया।
राम और श्याम (1967)
शक्ति (1982) – अमिताभ बच्चन के साथ
क्रांति (1981)
सौदागर (1991)
किला (1998) – उनकी आखिरी फिल्म
उन्होंने अपने अभिनय जीवन में 6 दशकों तक राज किया और 8 बार फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार जीतने वाले पहले अभिनेता बने. साथ ही भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण (1991), पद्म विभूषण (2015) और दादा साहेब फाल्के पुरस्कार (1994) से सम्मानित किया.
दिलीप कुमार का फिल्मी करियर भले ही संख्यात्मक रूप से सीमित रहा, लेकिन गुणवत्ता और प्रभाव के मामले में वे आज भी भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े स्तंभ माने जाते हैं.